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2 . अर्चयस्व हबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्यपुराण
कार्तिक मासकी 'रमा' और 'प्रबोधिनी' एकादशीका माहात्म्य
युधिष्ठिरने पूछा-जनार्दन ! मुझपर आपका गया। रात्रि आयी, जो हरिपूजापरायण तथा जागरणमें नेह है; अतः कृपा करके बताइये। कार्तिकके कृष्ण- आसक्त वैष्णव मनुष्योंका हर्ष बढ़ानेवाली थी; परन्तु पक्षमें कौन-सी एकादशी होती है?
वही रात्रि शोभनके लिये अत्यन्त दुःखदायिनी हुई। भगवान् श्रीकृष्ण बोले-राजन् ! कार्तिकके सूर्योदय होते-होते उनका प्राणान्त हो गया। राजा कृष्णपक्षमें जो परम कल्याणमयी एकादशी होती है, वह मुचुकुन्दने राजोचित काष्ठोंसे शोभनका दाह-संस्कार 'रमा' के नामसे विख्यात है। 'रमा' परम उत्तम है और कराया। चन्द्रभागा पतिका पारलौकिक कर्म करके बड़े-बड़े पापोंको हरनेवाली है।
पिताके ही घरपर रहने लगी। नृपश्रेष्ठ ! 'रमा' नामक . पूर्वकालमें मुचुकुन्द नामसे विख्यात एक राजा हो एकादशीके व्रतके प्रभावसे शोभन मन्दराचलके चुके हैं, जो भगवान् श्रीविष्णुके भक्त और सत्यप्रतिज्ञ शिखरपर बसे हुए परम रमणीय देवपुरको प्राप्त हुआ। थे। निष्कण्टक राज्यका शासन करते हुए उस राजाके वहाँ शोभन द्वितीय कुबेरकी भाँति शोभा पाने लगा। यहाँ नदियोंमें श्रेष्ठ चन्द्रभागा कन्याके रूप में उत्पन्न हुई। राजा मुचुकुन्दके नगरमे सोमशर्मा नामसे विख्यात एक राजाने चन्द्रसेनकुमार शोभनके साथ उसका विवाह कर ब्राह्मण रहते थे, वे तीर्थयात्राके प्रसङ्गसे घूमते हुए कभी दिया। एक समयकी बात है, शोभन अपने ससुरके घर मन्दराचल पर्वतपर गये। वहाँ उन्हें शोभन दिखायी
आये। उनके यहाँ दशमीका दिन आनेपर समूचे नगरमें दिये। राजाके दामादको पहचानकर वे उनके समीप दिवोरा पिटवाया जाता था कि एकादशीके दिन कोई भी गये। शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्माको आया भोजन न करे, कोई भी भोजन न करे। यह डंकेको जान शीघ्र ही आसनसे उठकर खड़े हो गये और उन्हें घोषणा सुनकर शोभनने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागासे प्रणाम किया। फिर क्रमशः अपने श्वशुर राजा कहा-'प्रिये ! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिये, ELITEREST इसकी शिक्षा दो।' र, चन्द्रभागा बोली-प्रभो ! मेरे पिताके घरपर तो एकादशीको कोई भी भोजन नहीं कर सकता। हाथी, घोड़े, हाथियोंके बच्चे तथा अन्यान्य पशु भी अन्न, घास तथा जलतकका आहार नहीं करने पाते; फिर मनुष्य एकादशीके दिन कैसे भोजन कर सकते हैं। प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी। इस प्रकार मनमें विचार करके अपने चित्तको दृढ़ कीजिये।
शोभनने कहा-प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है, मैं भी आज उपवास करूँगा। दैवका जैसा विधान है, वैसा ही होगा।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभनने व्रतके नियमका पालन किया। क्षुधासे उनके शरीरमें पीड़ा होने लगी; अतः वे बहुत दुःखी हुए। भूखकी चिन्तामें पड़े-पड़े सूर्यास्त हो :
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