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उत्तरखण्ड ]
. वैकुण्ठधाममें भगवानकी स्थितिका वर्णन तथा भगवान के द्वारा सृष्टि-रचना .
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परम पुरुष भगवान् विष्णु भगवती लक्ष्मीजीके साथ करनेवाला है। वे सौन्दर्यकी निधि और अपनी महिमासे विराजमान होते है।
कभी च्युत न होनेवाले हैं। उनके सर्वाङ्गमें दिव्य भगवान्का श्रीविग्रह नीलकमलके समान श्याम चन्दनका अनुलेप किया हुआ है। वे दिव्य मालाओंसे तथा कोटि सूर्योक समान प्रकाशमान है। वे तरुण विभूषित हैं। उनके ऊपरकी दोनों भुजाओंमें शङ्ख और कुमार-से जान पड़ते हैं। सारा शरीर चिकना है और चक्र हैं तथा नीचेकी भुजाओंमें वरद और अभयकी प्रत्येक अवयव कोमल। खिले हुए लाल कमल-जैसे मुद्राएँ हैं। हाथ तथा पैर अत्यन्त मृदुल प्रतीत होते है। नेत्र भगवान्के वामाङ्कमें महेश्वरी भगवती महालक्ष्मी विकसित कमलके समान जान पड़ते हैं। ललाटका निम्न विराजमान हैं। उनका श्रीअङ्ग सुवर्णके समान कान्तिमान् भाग दो सुन्दर भूलताओंसे अङ्कित है। सुन्दर नासिका, तथा गौर है। सोने और चाँदीके हार उनकी शोभा बढ़ाते मनोहर कपोल, शोभायुक्त मुखकमल, मोतीके दाने-जैसे हैं। वे समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न है। उनकी अवस्था दाँत और मन्द मुसकानकी छविसे युक्त मूंगे-जैसे ऐसी है, मानो शरीरमें यौवनका आरम्भ हो रहा है। लाल-लाल ओठ हैं। मुखमण्डल पूर्ण चन्द्रमाकी शोभा कानोंमें रत्नोंके कुण्डल और मस्तकपर काली-काली धारण करता है। कमल-जैसे मुखपर मनोहर हास्यकी धुंघराली अलके शोभा पाती है। दिव्य चन्दनसे चर्चित छटा छायी रहती है। कानोंमें तरुण सूर्यकी भाँति अङ्गोका दिव्य पुष्पोंसे शृङ्गार हुआ है। केशोंमें मन्दार, चमकीले कुण्डल उनकी शोभा बढ़ाते हैं। मस्तक केतकी और चमेलीके फूल गुंथे हुए हैं। सुन्दर भौंहें, चिकनी, काली और धुंघराली अलकोंसे सुशोभित है। मनोहर नासिका और शोभायमान कटिभाग हैं। पूर्ण भगवानके बाल मुंथे हुए हैं, जिनमें पारिजात और चन्द्रमाके समान मनोहर मुख-कमलपर मन्द मुसकानकी मन्दारके पुष्प शोभा पाते हैं। गलेमें कौस्तुभमणि शोभा छटा छा रही है। बाल रविके समान चमकीले कुण्डल दे रही है, जो प्रातःकाल उगते हुए सूर्यकी कान्ति धारण कानोंकी शोभा बढ़ा रहे हैं। तपाये हुए सुवर्णक समान करती है। भांति-भांतिके हार और सुवर्णकी मालाओंसे शरीरकी कान्ति और आभूषण हैं। चार हाथ है, जो राङ्ग-जैसी ग्रीवा बड़ी सुन्दर जान पड़ती है। सिंहके सुवर्णमय कमलोंसे विभूषित है। भांति-भांतिके विचित्र कंधोंके समान ऊँचे और मोटे कंधे शोभा दे रहे हैं। रत्रोंसे युक्त सुवर्णमय कमलोकी माला, हार, केयूर, कड़े मोटी और गोलाकार चार भुजाओसे भगवान्का श्रीअङ्ग और अंगूठियोंसे श्रीदेवी सुशोभित हैं। उनके दो हाथों में बड़ा सुन्दर जान पड़ता है। सबमें अंगूठी, कड़े और दो कमल और शेष दो हाथोंमें मातुलुङ्ग (बिजौरा) और भुजबंद है, जो शोभावृद्धिके कारण हो रहे हैं। उनका जाम्बूनद (धतूरा) शोभा पा रहे हैं। इस प्रकार कभी विशाल वक्षःस्थल करोड़ों बालसूर्योक समान तेजोमय विलग न होनेवाली महालक्ष्मीके साथ महेश्वर भगवान् कौस्तुभ आदि सुन्दर आभूषणोंसे देदीप्यमान है। वे विष्णु सनातन परम व्योममें सानन्द विराजमान रहते हैं। वनमालासे विभूषित है। नाभिका वह कमल, जो उनके दोनों पार्श्वमें भूदेवी और लीलादेवी बैठी रहती हैं। ब्रह्माजीकी जन्मभूमि है, श्रीअगोंकी शोभा बढ़ा रहा है। आठों दिशाओंमें अष्टदल कमलके एक-एक दलपर शरीरपर मुलायम पीताम्बर सुशोभित है, जो बाल रविकी क्रमशः विमला आदि शक्तियाँ सुशोभित होती है। उनके प्रभाके समान जान पड़ता है। दोनों चरणोंमें सुन्दर कड़े नाम ये हैं-विमला, उत्कर्षिणी, ज्ञाना, क्रिया, योगा, विराज रहे हैं, जो नाना प्रकारके रत्नोंसे जड़े होनेके कारण प्रही, सत्या तथा ईशाना। ये सब परमात्मा श्रीहरिकी अत्यन्त विचित्र प्रतीत होते हैं। नखोकी श्रेणियाँ पटरानियाँ हैं, जो सब प्रकारके सुन्दर लक्षणोंसे सम्पन्न चाँदनीयुक्त चन्द्रमाके समान उद्भासित हो रही हैं। हैं। ये अपने हाथोंमें चन्द्रमाके समान श्वेत वर्णके दिव्य भगवान्का लावण्य कोटि-कोटि कन्दर्पोका दर्प दलन चैवर लेकर उनके द्वारा सेवा करती हुई अपने पति