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उत्तरखण]
. श्रीविष्णु-पूजनकी विधि तथा वैष्णवोचित आचारका वर्णन .
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वैष्णव पुरुष निर्मल एवं रमणीय मृत्तिका ले उसे मन्त्रसे साथ तुलसीदल मिला हो। इसके बाद उक्त दोनों ही अभिमन्त्रित करके ललाट आदिमे लगावे। आलस्य प्रकारके मन्त्रोंसे प्रत्युपचार अर्पण करे। सुगन्धित तेलसे छोड़कर परिगणित अङ्गोंमे ऊर्ध्वपुण्ड्र धारण करे । उसके भगवानको अभ्यङ्ग लगावे । कस्तूरी और चन्दनसे उनके बाद विधिपूर्वक सन्ध्योपासना करके गायत्रीका जप करे। श्रीअङ्गमें उबटन लगावे। फिर मन्त्रका पाठ करते हुए तदनन्तर मनको संयममें रखकर घर जाय और पैर धो सुगन्धित जलसे भगवान्को स्नान करावे। तत्पश्चात् मौनभावसे आचमन करके एकाग्रचित्त हो पूजा- दिव्य वस्त्र और आभूषणोंसे विधिपूर्वक भगवानका मण्डपमें प्रवेश करे।
ङ्गार करे। फिर उन्हें मधुपर्क दे तथा भक्तिके साथ एक सुन्दर सिंहासनको फूलोंसे सजाकर भगवान् सुगन्धित चन्दन और सौरभयुक्त सुन्दर पुष्प निवेदन लक्ष्मीनारायणको विराजमान करे। फिर गन्ध, पुष्प और करे। इसके बाद दशाङ्ग या अष्टाङ्ग धूप, मनोहर दीप अक्षत आदिके द्वारा विधिपूर्वक भगवानका पूजन और भाँति-भाँतिके नैवेद्य भेंट करे। नैवेद्यमें खीर और आरम्भ करे। विग्रह स्थापित, स्वयं-व्यक्त अथवा मालपूआ भी होने चाहिये। नैवेद्यके अन्तमें आचमन शालग्रामशिला-कोई भी क्यों न हो, श्रुति, स्मृति और कराकर भक्तियुक्त हृदयसे कर्पूर-मिश्रित ताम्बूल निवेदित आगमोंमें बतायी हुई विधिके अनुसार उसका पूजन करे। फिर घीकी बत्तियोंसे आरती करके भगवानको करना उचित है। वैष्णव पुरुष शुद्धचित्त हो गुरुके फूलोंकी माला पहनावे । तदनन्तर समीप जा विनीतउपदेशके अनुसार भक्तिपूर्वक श्रीविष्णुका यथायोग्य भावसे प्रणाम करके उत्तम स्तोत्रोंद्वारा भगवान्का स्तवन पूजन करे। वेदों तथा ब्राह्मणग्रन्थों में बतायी हुई पूजा करे। फिर उन्हें गरुड़के अङ्कमें शयन कराकर मङ्गलार्घ्य 'श्रौत' कहलाती है। वासिष्ठी पद्धतिके अनुसार को निवेदन करे। उसके बाद पवित्र नामोंका कीर्तन करके जानेवाली पूजाको 'स्मात' कहते हैं। तथा पाश्चरात्रमें होम करे। भगवानको भोग लगाये हुए नैवेद्यसे जो शेष बताया हुआ विधान 'आगम' कहलाता है। भगवान् बचे, उसीसे अग्निमें हवन करे । प्रत्येक आहुतिके साथ विष्णुकी आराधना बहुत ही उत्तम कर्म है। इस क्रियाका पुरुषसूक्त अथवा मङ्गलमय श्रीसूक्तकी एक-एक कभी लोप नहीं करना चाहिये। आवाहन, आसन, ऋचाका पाठ करे। वेदोक्त विधिसे स्थापित अग्निमें अर्घ्य, पाद्य, आचमनीय, खानीय, वस्त्र, यज्ञोपवीत, घृतमिश्रित हविष्यके द्वारा उपर्युक्त मन्त्ररत्नका एक सौ गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल एवं आठ या अट्ठाईस बार जप करके हवन करना चाहिये नमस्कार आदि उपचारोंके द्वारा अपनी शक्तिके अनुसार और हवनकालमें यज्ञस्वरूप महाविष्णुका ध्यान भी प्रसन्नतापूर्वक श्रीविष्णुको आराधना करे।* करना चाहिये। पुरुषसूक्तकी प्रत्येक ऋचा तथा मूलमन्त्र-इन दोनोंहीसे शुद्ध जाम्बूनद नामक सुवर्णके समान जिनका वैष्णव पुरुष षोडशोपचार समर्पण करे। पुनः प्रत्युपचार श्याम वर्ण है, जो शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाले अर्पण करके पुष्पाञ्जलि दे। वैष्णवको चाहिये कि वह है, जिनमें अङ्ग-उपाङ्गोसहित सम्पूर्ण वेद-वेदान्तोंका ज्ञान मुद्राद्वारा भगवान जगन्नाथका आवाहन करे। फिर फूल भरा हुआ है तथा जो श्रीदेवीके साथ सुशोभित हो रहे
और मुद्रासे ही आसन दे। इसी प्रकार क्रमशः पाध, हैं, उस भगवान्का ध्यान करके होम करना चाहिये। अर्ध्य, आचमन और स्रानके लिये भित्र-भिन्न पात्रोंमें मन्त्रद्वारा होम करनेके पश्चात् नामोंका उच्चारण करके निर्मल जल समर्पित करे। उस जलमें माङ्गलिक द्रव्योंके एक-एकके लिये एक-एक आहुति देनी चाहिये।
• आवाहनासनाधैिर्गन्धपुष्पाक्षतादिभिः ।धूपैर्दीपेच नैवेद्यस्ताम्बूलाधनमस्कृतैः ॥
कुर्यादाराधनं विष्णोर्यथाशक्ति मुद्दान्वितः। (२८० । ५७-५८)