Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 996
________________ - • अर्थयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण २२ कौसलेयः-कौसल्याजीके पुत्र । २३ सबके गुरु। ५१ ऋक्षवानरसंघाती-वानर और खरध्वंसी-खर नामक राक्षसका नाश करनेवाले। भालुओंकी सेनाका संगठन करनेवाले। ५२ चित्रकूट२४ विराघवध-पण्डितः-विराध नामक दैत्यका समाश्रयः- वनवासके समय चित्रकूटपर्वतपर निवास वध करनेमें कुशल। २५ विभीषणपरित्राता- करनेवाले। ५३ जयन्तत्राणवरदः-जयन्तके प्राणोंकी विभीषणके रक्षक । २६ दशग्रीवशिरोहरः-दशशीश रक्षा करके उसे वर देनेवाले। ५४ सुमित्रापुत्ररावणके मस्तक काटनेवाले। २७ सप्ततालप्रभेत्ता- सेवितः- सुमित्रानन्दन लक्ष्मणके द्वारा सेवित । ५५ सात तालवक्षोको एक ही बाणसे बींध डालनेवाले। २८ सर्वदेवाधिदेवः-सम्पूर्ण देवताओके भी अधिदेवता । हरकोदण्ड-खण्डनः-जनकपुरमें शिवजीके धनुषको ५६ मृतवानरजीवन:-मरे हुए वानरोंको जीवित तोड़नेवाले। २९ जामदग्न्यमहादर्पदलन:- करनेवाले। ५७ मायामारीचहन्ता-मायामय मृगका परशुरामजीके महान् अभिमानको चूर्ण करनेवाले। ३० रूप धारण करके आये हुए मारीच नामक राक्षसका वध ताडकान्तकृत्- ताड़का नामवाली राक्षसीका वध करनेवाले। ५८ महाभाग:-महान् सौभाग्यशाली। करनेवाले। ३१ वेदान्तपारः-वेदान्तके पारङ्गत ५९ महाभुजः-बड़ी-बड़ी बाँहोंवाले। ६० विद्वान् अथवा वेदात्तसे भी अतीत । ३२ वेदात्मा- सर्वदेवस्तुतः-सम्पूर्ण देवता जिनको स्तुति करते हैं, वेदस्वरूप। ३३ भवबन्यैकमेषजः-संसारबन्धनसे ऐसे। ६१ सौम्यः-शान्तस्वभाव। ६२ मुक्त करनेके लिये एकमात्र औषधरूप। ३४ ब्रह्मण्य:-ब्राह्मणोके हितैषी। ६३ दूषणत्रिशिरोऽरि:-दूषण और त्रिशिरा नामक मुनिसत्तमः-मुनियोंमें श्रेष्ठ । ६४ महायोगीराक्षसोंके शत्रु। ३५ त्रिमूर्तिः-ब्रह्मा, विष्णु और सम्पूर्ण योगोंके अधिष्ठान होनेके कारण महान् योगी। शिव-तीन रूप धारण करनेवाले। ३६ त्रिगुण:- ६५ महोदार:-परम उदार। ६६ सुग्रीवस्थिरत्रिगुणस्वरूप अथवा तीनों गुणोंके आश्रय। ३७ राज्यदः-सुग्रीवको स्थिर राज्य प्रदान करनेवाले। ६७ त्रयी-तीन वेदस्वरूप। ३८ त्रिविक्रमः-वामन सर्वपुण्याधिकफल:-समस्त पुण्योंके उत्कृष्ट अवतारमें तीन पगोसे समस्त त्रिलोकीको नाप लेनेवाले। फलरूप। ६८ स्मृतसाधनाशनः-स्मरण करने३९ त्रिलोकात्मा-तीनों लोकोंके आत्मा। ४० मात्रसे ही सम्पूर्ण पापोंका नाश करनेवाले। ६९ पुण्यचारित्रकीर्तन:-जिनकी लीलाओंका कीर्तन आदिपुरुषः-ब्रह्माजीको भी उत्पन्न करनेके कारण परम पवित्र है, ऐसे। ४१ त्रिलोकरक्षकः-तीनों सबके आदिभूत अन्तर्यामी परमात्मा। ७० लोकोकी रक्षा करनेवाले। ४२ धन्वी-धनुष धारण महापुरुषः- समस्त पुरुषोंमें महान्। ७१ परमः करनेवाले । ४३ दण्डकारण्यवासकृत्-दण्डकारण्यमें पुरुषः-सर्वोत्कृष्ट पुरुष । ७२ पुण्योदयः-पुण्यको निवास करनेवाले। ४४ अहल्यापावन:-अहल्याको प्रकट करनेवाले। ७३ महासार:-सर्वश्रेष्ठ सारभूत पवित्र करनेवाले। ४५ पितृभक्तः-पिताके भक्त। परमात्मा। ७४ पुराणपुरुषोत्तमः-पुराणप्रसिद्ध ४६ वरप्रदः-वर देनेवाले। ४७ जितेन्द्रियः- क्षर-अक्षर पुरुषोंसे श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम। ७५ इन्द्रियोंको काबूमें रखनेवाले। ४८ जितक्रोधः- स्मितवक्त्रः-जिनके मुखपर सदा मुसकानकी छटा क्रोधको जीतनेवाले। ४९ जितलोभः-लोभको छायी रहती है, ऐसे। ७६ मितभाषी-कम वृत्तिको परास्त करनेवाले। ५० जगद्गुरुः-अपने बोलनेवाले। ७७ पूर्वभाषी-पूर्ववक्ता। ७८ आदर्श चरित्रोंसे सम्पूर्ण जगत्को शिक्षा देनेके कारण राघवः-रघुकुलमें अवतीर्ण। ७९ अनन्तगुण

Loading...

Page Navigation
1 ... 994 995 996 997 998 999 1000 1001