Book Title: Sankshipta Padma Puran Author(s): Unknown Publisher: Unknown View full book textPage 1
________________ ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ संक्षिप्त पद्मपुराण * सृष्टिखण्ड * ग्रन्थका उपक्रम तथा इसके स्वरूपका परिचय स्वच्छ चन्द्रावदातं करिकरमकरक्षोभसंजातफेर्न ब्रह्मोद्धूतिप्रसक्तैव्रतनियमपरैः सेवितं विप्रमुख्यैः । ॐकारालङ्कृतेन त्रिभुवनगुरुणा ब्रह्मणा दृष्टिपूर्त संभोगाभोगरम्यं जलमशुभहरं पौष्करं नः पुनातु ॥ * श्रीव्यासजी के शिष्य परम बुद्धिमान् लोमहर्षणजीने एकान्तमें बैठे हुए [अपने पुत्र ] उग्रश्रवा नामक सूतसे कहा - "बेटा! तुम ऋषियोंके आश्रमोंपर जाओ और उनके पूछनेपर सम्पूर्ण धर्मोका वर्णन करो। तुमने मुझसे जो संक्षेपमें सुना है, वह उन्हें विस्तारपूर्वक सुनाओ। मैंने महर्षि वेदव्यासजीके मुखसे समस्त पुराणोंका ज्ञान प्राप्त किया है और वह सब तुम्हें बता दिया है; अतः अब मुनियोंके समक्ष तुम उसका विस्तारके साथ वर्णन करो। प्रयागमें कुछ महर्षियोंने, जो उत्तम कुलोंमें उत्पन्न हुए थे, साक्षात् भगवान्से प्रश्न किया था। वे [यज्ञ करनेके योग्य ] किसी पावन प्रदेशको जानना चाहते थे। भगवान् नारायण ही सबके हितैषी हैं, वे धर्मानुष्ठानकी इच्छा रखनेवाले उन महर्षियोंके पूछनेपर बोले— 'मुनिवरो ! यह सामने जो चक्र दिखायी दे रहा है, इसकी कहीं तुलना नहीं है। इसकी नाभि सुन्दर और स्वरूप दिव्य है। यह सत्यकी ओर जानेवाला है। इसकी गति सुन्दर एवं कल्याणमयी है। तुमलोग सावधान होकर नियमपूर्वक इसके पीछे-पीछे जाओ। तुम्हें अपने लिये हितकारी स्थानकी प्राप्ति होगी। यह धर्ममय चक्र यहाँसे जा रहा है। जाते-जाते जिस स्थानपर इसकी नेमि जीर्ण-शीर्ण होकर गिर पड़े, उसीको पुण्यमय प्रदेश समझना।' उन सभी महर्षियोंसे ऐसा कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये और वह धर्म चक्र नैमिषारण्यके गङ्गावर्त नामक स्थानपर गिरा। तब ऋषियोंने निमि शीर्ण होनेके कारण उस स्थानका नाम 'नैमिष' रखा और नैमिषारण्यमें दीर्घकालतक चालू रहनेवाले यज्ञोंका अनुष्ठान आरम्भ कर दिया। वहीं तुम भी जाओ और ऋषियोंके पूछनेपर उनके धर्म-विषयक संशयोंका निवारण करो।" तदनन्तर ज्ञानी उग्रश्रवा पिताकी आज्ञा मानकर उन मुनीश्वरोंके पास गये तथा उनके चरण पकड़कर हाथ जोड़कर उन्होंने प्रणाम किया। सूतजी बड़े बुद्धिमान् थे, चन्द्रमाके समान उज्ज्वल और स्वच्छ है, जिसमें हाथीकी सड़के समान आकारवाले नाकोंके इधर-उधर वेगपूर्वक चलने-फिरनेसे फेन पैदा होता रहता है, ब्रह्माजीके प्रादुर्भावकी कथा वार्तामें लगे हुए व्रत नियम-परायण श्रेष्ठ ब्राह्मण जिसका सदा सेवन करते हैं, ॐकार जपसे विभूषित त्रिभुवनगुरु ब्रह्माजीने जिसे अपनी दृष्टिसे पवित्र किया है, जो पीनेमें स्वादिष्ट है और अपनी विशालताके कारण रमणीय जान पड़ता है, वह पुष्करतीर्थका पापहारी जल हमलोगोंको पवित्र करे ।Page Navigation
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