Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 12
________________ • अयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण व्यवसायको, शान्तिने क्षेमको, सिद्धिने सुखको और तथा वेदना नामकी कन्याओंको उत्पन्न किया। माया कीर्तिने यशको उत्पन्न किया। ये ही धर्मके पुत्र हैं। भयकी और वेदना नरककी पत्नी हुई। उनमेंसे मायाने कामसे उसकी पत्नी नन्दीने हर्ष नामक पुत्रको जन्म दिया, समस्त प्राणियोंका संहार करनेवाले मृत्यु नामक पुत्रको यह धर्मका पौत्र था। भृगुकी पत्नी ख्यातिने लक्ष्मीको जन्म दिया और वेदनासे नरकके अंशसे दुःखकी उत्पत्ति जन्म दिया, जो देवाधिदेव भगवान् नारायणकी पत्नी है। हुई। फिर मृत्युसे व्याधि, जरा, शोक, तृष्णा और भगवान् रुद्रने दक्षसुता सतीको पत्नीरूपमें ग्रहण किया, क्रोधका जन्म हुआ। ये सभी अधर्मस्वरूप हैं और जिन्होंने अपने पितापर खीझकर शरीर त्याग दिया। दुःखोत्तर नामसे प्रसिद्ध है। इनके न कोई स्त्री है न पुत्र । अधर्मकी स्त्रीका नाम हिंसा है। उससे अनृत ये सब-के-सब नैष्ठिक ब्रह्मचारी हैं। राजकुमार भीष्म ! नामक पुत्र और निकृति नामवाली कन्याकी उत्पत्ति हुई। ये ब्रह्माजीके रौद्र रूप है और ये ही संसारके नित्य फिर उन दोनोंने भय और नरक नामक पुत्र और माया प्रलयमें कारण होते हैं। __लक्ष्मीजीके प्रादुर्भावकी कथा, समुद्र-मन्थन और अमृत-प्राप्ति भीष्मजीने कहा-मुने ! मैंने तो सुना था डाल दो। फिर मन्दराचलको मथानी और वासुकि लक्ष्मीजी क्षीर-समुद्रसे प्रकट हुई है; फिर आपने यह कैसे नागको नेती (रस्सी) बनाकर समुद्रका मन्थन करते हुए कहा कि वे भृगुकी पत्नी ख्यातिके गर्भसे उत्पन्न हुई? उससे अमृत निकालो। इस कार्यमें मैं तुमलोगोंकी पुलस्त्यजी बोले-राजन् ! तुमने मुझसे जो प्रश्न सहायता करूँगा। समुद्रका मन्थन करनेपर जो अमृत किया है, उसका उत्तर सुनो। लक्ष्मीजीके जन्मका निकलेगा, उसका पान करनेसे तुमलोग बलवान् और सम्बन्ध समुद्रसे है, यह बात मैंने भी ब्रह्माजीके मुखसे अमर हो जाओगे।' सुन रखी है। एक समयकी बात है, दैत्यों और दानवोंने बड़ी भारी सेना लेकर देवताओंपर चढ़ाई की। उस युद्धमें दैत्योंके सामने देवता परास्त हो गये। तब इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता अग्निको आगे करके ब्रह्माजीकी शरणमें गये। वहाँ उन्होंने अपना सारा हाल ठीक-ठीक कह सुनाया। ब्रह्माजीने कहा-'तुमलोग मेरे साथ भगवानकी शरणमें चलो।' यह कहकर वे सम्पूर्ण देवताओंको साथ ले क्षीर-सागरके उत्तर-तटपर गये और भगवान् वासुदेवको सम्बोधित करके बोले'विष्णो ! शीघ्र उठिये और इन देवताओंका कल्याण कीजिये | आपकी सहायता न मिलनेसे दानव इन्हें बारम्बार परास्त करते हैं। उनके ऐसा कहनेपर कमलके समान नेत्रवाले भगवान् अन्तर्यामी पुरुषोत्तमने देवताओंके शरीरकी अपूर्व अवस्था देखकर कहा'देवगण ! मैं तुम्हारे तेजकी वृद्धि करूँमा। मैं जो उपाय बतलाता है, उसे तुमलोग करो। दैत्योंके साथ मिलकर देवाधिदेव भगवानके ऐसा कहनेपर सम्पूर्ण देवता सब प्रकारकी ओषधियाँ ले आओ और उन्हें क्षीरसागरमे दैत्योंके साथ सन्धि करके अमृत निकालनेके यत्नमें लग

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