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सृष्टिखण्ड ] • सत्सङ्गके प्रभावसे पाँच प्रेतोंका उद्धार और पुष्कर तथा प्राची सरस्वतीका माहात्म्य •
ब्राह्मण बोले- इस पृथ्वीपर जितने भी जीव रहते हैं, उन सबकी स्थिति आहारपर ही निर्भर है। अतः मैं तुमलोगों का भी आहार जानना चाहता हूँ।
प्रेत बोले- विप्रवर! हमारे आहारकी बात सुनिये। हमलोगोंका आहार सभी प्राणियोंके लिये निन्दित है। उसे सुनकर आप भी बारम्बार निन्दा करेंगे। बलगम, पेशाब, पाखाना और स्त्रीके शरीरका मैल इन्हींसे हमारा भोजन चलता है। जिन घरोंमें पवित्रता नहीं है, वहीं प्रेत भोजन करते हैं। जो घर स्त्रियोंके द्वारा दग्ध और छिन्न-भिन्न है, जिनके सामान इधर-उधर बिखरे पड़े रहते हैं तथा मल-मूत्रके द्वारा जो घृणित अवस्थाको पहुँच चुके हैं, उन्हीं घरोंमें प्रेत भोजन करते हैं। जिन घरोंमें मानसिक लज्जाका अभाव है, पतितोंका निवास है तथा जहाँकै निवासी लूट-पाटका काम करते है, वहीं प्रेत भोजन करते हैं। जहाँ बलिवैश्वदेव तथा वेद मन्त्रोंका उच्चारण नहीं होता, होम और व्रत नहीं होते, वहाँ प्रेत भोजन करते हैं। जहाँ गुरुजनोंका आदर नहीं होता, जिन घरोंमें स्त्रियोंका प्रभुत्व है, जहाँ क्रोध और लोभने अधिकार जमा लिया है, वहीं प्रेत भोजन करते हैं। तात ! मुझे अपने भोजनका परिचय देते लज्जा हो रही है, अतः इससे अधिक मैं कुछ नहीं कह सकता। तपोधन! तुम नियमोंका दृढ़तापूर्वक पालन करनेवाले हो, इसलिये प्रेतयोनिसे दुःखी होकर हम तुमसे पूछ रहे हैं। बताओ, कौन-सा कर्म करनेसे जीव प्रेतयोनिमें नहीं पड़ता ?
ब्राह्मणने कहा- जो मनुष्य एक रात्रिका, तीन रात्रियोंका तथा कृच्छ्र-चान्द्रायण आदि अन्य व्रतोंका अनुष्ठान करता है, वह कभी प्रेतयोनिमें नहीं पड़ता। जो प्रतिदिन तीन, पाँच या एक अफ्रिका सेवन करता है तथा जिसके हृदयमें सम्पूर्ण प्राणियोंके प्रति दया भरी हुई है, वह मनुष्य प्रेत नहीं होता। जो मान और अपमानमें, सुवर्ण और मिट्टीके ढेलेमें तथा शत्रु और मित्रमें समान भाव रखता है, वह प्रेत नहीं होता। देवता, अतिथि, गुरु तथा पितरोंकी पूजामें सदा प्रवृत्त रहनेवाला मनुष्य भी प्रेतयोनिमें नहीं पड़ता। शुक्ल पक्षमें मंगलवारके दिन
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चतुर्थी तिथि आनेपर उसमें जो श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, वह मनुष्य प्रेत नहीं होता। जिसने क्रोधको जीत लिया है, जिसमें डाहका सर्वथा अभाव है, जो तृष्णा और आसक्तिसे रहित, क्षमावान् और दानशील है, वह प्रेतयोनिमें नहीं जाता। जो गौ, ब्राह्मण, तीर्थ, पर्वत, नदी और देवताओंको प्रणाम करता है, वह मनुष्य प्रेत नहीं होता।
प्रेत बोले- महामुने! आपके मुखसे नाना प्रकारके धर्म सुननेको मिले; हम दुःखी जीव हैं, इसलिये पुनः पूछते हैं- जिस कर्मसे प्रेतयोनिमें जाना पड़ता है, वह हमें बताइये ।
ब्राह्मणने कहा - यदि कोई द्विज और विशेषतः ब्राह्मण शूद्रका अन्न खाकर उसे पेटमें लिये ही मर जाय तो वह प्रेत होता है। जो आश्रमधर्मका त्याग करके मदिरा पीता, परायी स्त्रीका सेवन करता तथा प्रतिदिन मांस खाता है, उस मनुष्यको प्रेत होना पड़ता है। जो ब्राह्मण यज्ञके अनधिकारी पुरुषोंसे यज्ञ करवाता अधिकारी पुरुषोंका त्याग करता और शूद्रकी सेवामें रत रहता है, वह प्रेतयोनिमें जाता है। जो मित्रकी धरोहरको हड़प लेता, शूद्रका भोजन बनाता, विश्वासघात करता और कूटनीतिका आश्रय लेता है, वह निश्चय ही प्रेत होता है। ब्रह्महत्यारा, गोघाती, चोर, शराबी, गुरुपत्लीके साथ सम्भोग करनेवाला तथा भूमि और कन्याका अपहरण करनेवाला निश्चय ही प्रेत होता है। जो पुरोहित नास्तिकतामें प्रवृत्त होकर अनेकों ऋत्विजोंके लिये मिली हुई दक्षिणाको अकेले ही हड़प लेता है, उसे निश्चय ही प्रेत होना पड़ता है।
विप्रवर पृथु जब इस प्रकार उपदेश कर रहे थे, उसी समय आकाशमें सहसा नगारे बजने लगे। हजारों देवताओंके हाथसे छोड़े हुए फूलोंकी वर्षा होने लगी। प्रेतोंके लिये चारों ओरसे विमान आ गये। आकाशवाणी हुई— 'इन ब्राह्मणदेवताके साथ वार्तालाप और पुण्यकथाका कीर्तन करनेसे तुम सब प्रेतोंको दिव्यगति प्राप्त हुई है।' [ इस प्रकार सत्सङ्गके प्रभावसे उन प्रेतोंका उद्धार हो गया ।] गङ्गानन्दन ! यदि तुम्हें कल्याण