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उत्तरखण्ड ]
- अन्नदान, जलदान, तडाग-निर्माण, वृक्षारोपण तथा सत्यभाषण आदिकी महिमा .
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परब्रहाका स्वरूप बताया गया है। इसलिये मैं तुम्हें मुनि स्वर्गमें रहकर देवताओके साथ आनन्द भोग रहे सत्यका उपदेश करता हूँ। सत्यपरायण मुनि अत्यन्त हैं। तपस्यासे राज्य प्राप्त होता है। इन्द्र तथा सम्पूर्ण देवता दुष्कर तपस्या करके सत्यधर्मका पालन करते हुए इस और असुरोने तपस्यासे ही सदा सबका पालन किया है। लोकसे स्वर्गको प्राप्त हुए हैं। सदा सत्य ही बोलना तपस्यासे ही वे वृत्तिदाता हुए हैं। सम्पूर्ण लोकोंके हितमे चाहिये, सत्यसे बढ़कर दूसरी कोई वस्तु नहीं है। लगे रहनेवाले दोनों देवता सूर्य और चन्द्रमा तपसे ही सत्यरूपी तीर्थ अगाध, विस्तृत एवं पवित्र हद (कुण्ड) प्रकाशित होते हैं। नक्षत्र और ग्रह भी तपस्यासे ही से युक्त है; योगयुक्त पुरुषोंको उसमें मनसे स्नान करना कान्तिमान् हुए है। तपस्यासे मनुष्य सब कुछ पा लेता है, चाहिये। यही सान उत्तम माना गया है। जो मनुष्य सब सुखोंका अनुभव करता है। अपने, पराये अथवा पुत्रके लिये भी असत्य भाषण नहीं । मुने ! जो जंगलमें फल-मूल खाकर तपस्या करता करते, वे स्वर्गगामी होते हैं। ब्राह्मणोंमें वेद, यज्ञ तथा है तथा जो पहले केवल वेदका अध्ययन ही करता मन्त्र नित्य निवास करते हैं; किन्तु जो ब्राह्मण सत्यका है-वे दोनों समान हैं। वह अध्ययन तपस्याके ही तुल्य परित्याग कर देते हैं, उनमें वेद आदि शोभा नहीं देते; है। श्रेष्ठ द्विज वेद पढ़ानेसे जो पुण्य प्राप्त करता है, अतः सत्य-भाषण करना चाहिये।
स्वाध्याय और जपसे इसकी अपेक्षा दूना फल पा जाता नारदजीने कहा-भगवन् ! अब मुझे विशेषतः है। जो सदा तपस्या करते हुए शास्त्रके अभ्याससे तपस्याका फल बताइये; क्योंकि प्रायः सभी वर्गोका तथा ज्ञानोपार्जन करता है और लोकको उस ज्ञानका बोध मुख्यतः ब्राह्मणोंका तपस्या ही बल है।
कराता है, वह परम पूजनीय गुरु है। पुराणवेत्ता पुरुष महादेवजी बोले-नारद ! तपस्याको श्रेष्ठ दानका सबसे श्रेष्ठ पात्र है। वह पतनसे त्राण करता है, बताया गया है। तपसे उत्तम फल की प्राप्ति होती है। जो इसलिये पात्र कहलाता है। जो लोग सुपात्रको धन, सदा तपस्या में संलग्न रहते हैं, वे सदा देवताओंके साथ धान्य, सुवर्ण तथा भाँति-भाँतिके वस्त्र-दान करते हैं, वे आनन्द भोगते हैं। तपसे मनुष्य मोक्ष पा लेता है, तपसे परम गतिको प्राप्त होते हैं। जो श्रेष्ठ पात्रको गौ, भैस, 'महत्' पदकी प्राप्ति होती है। मनुष्य अपने मनसे हाथी और सुन्दर-सुन्दर घोड़े दान करता है, वह सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञानका खजाना, सौभाग्य और रूप आदि लोकोंमें अश्वमेधके अक्षय फलको प्राप्त होता है। जो जिस-जिस वस्तुको इच्छा करता है, वह सब उसे सुपात्रको जोती-बोयी एवं फलसे भरी हुई सुन्दर भूमि तपस्यासे मिल जाती है। जिन्होंने तपस्या नहीं की है, वे दान करता है, वह अपने दस पीढ़ी पहलेके पूर्वजों और कभी ब्रह्मलोकमें नहीं जाते। पुरुष जिस किसी कार्यका दस पीढ़ी बादतककी संतानोंको तार देता है तथा दिव्य उद्देश्य लेकर तप करता है, वह सब इस लोक और विमानसे विष्णुलोकको जाता है। देवगण पुस्तक बाँचनेसे परलोकमें उसे प्राप्त हो जाता है। शराबी, परस्त्रीगामी, जितना संतुष्ट होते हैं, उतना संतोष उन्हें यज्ञोसे, प्रोक्षण ब्रह्महत्यारा तथा गुरुपलीगामी-जैसा पापी भी तपस्याके (अभिषेक) से तथा फूलोंद्वारा की हुई पूजाओंसे भी बलसे सबसे पार हो जाता है-सब पापोंसे छुटकारा पा नहीं होता। जो भगवान् विष्णुके मन्दिरमें धर्म-ग्रन्थका लेता है।* तपस्याके प्रभावसे छियासी हजार ऊर्वरता पाठ कराता है तथा देवी, शिव, गणेश और सूर्यके
* तपो हि परमं प्रोक्तं तपसा विन्दते फलम्। तपोरता हि ये नित्यं मोदन्ते सह दैवतैः॥
तपसा मोक्षमाप्रोति तपसा विन्दते महत् । ज्ञानविज्ञानसम्पत्तिः सौभाग्य रूपमेव च। तपसा लभ्यते सर्व मनसा यद्यदिच्छति । नातमतपसो यान्ति ब्रह्मलोकं कदाचन ॥ यत्कार्य किञ्चिदास्थाय पुरुषस्तप्यते तपः । तत्सर्व समवाप्रोति परह च मानवः ॥ सुरापः परदारी च ब्रह्महा गुरुतल्पगः । तपसा तस्ते सर्व सर्वतश्च विमुच्यते ॥ (२८ । ३५-३९)