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. . अर्चयाव हावीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्यपुराण
सुव्रत ! जो सहस्रनाम परम गोपनीय है, उसका वर्णन देवेश्वर ' इसे जाननेको मेरे मनमें बड़ी उत्कण्ठा है। कीजिये । वह परम पवित्र एवं सदा सर्वतीर्थमय है; अतः सुव्रत ! यदि मैं आपकी प्रियतमा और कृपापात्र हूँ तो मैं उसका श्रवण करना चाहता हूँ। प्रभो ! विश्वेश्वर ! मुझसे यथार्थ बात कहिये। कृपया उस सहस्रनामका उपदेश कीजिये।
नारदजीके वचन सुनकर भगवान् शङ्करके नेत्र आचर्यसे चकित हो उठे। भगवान् विष्णुके नामका बारम्बार स्मरण करके उनके शरीरमें रोमाश हो आया। वे बोले-'ब्रह्मन् ! भगवान् विष्णुके सहस्रनाम परम गोपनीय है। इन्हें सुनकर मनुष्य कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता।' यो कहकर भगवान् शङ्करने नारदजीको विष्णुसहस्रनामका उपदेश दिया, जिसे पूर्वकालमें वे भगवती पार्वतीजीको सुना चुके थे। इस प्रकार नारदजीने कैलास पर्वतपर भगवान् महेश्वरसे श्रीविष्णुसहस्रनामका ज्ञान प्राप्त किया। फिर दैवयोगसे एक बार वे कैलाससे उतरकर नैमिषारण्य नामक तीर्थमें आये। वहाँके ऋषियोंने ऋषिश्रेष्ठ महात्मा नारदको आया देख विशेषरूपसे उनका स्वागत-सत्कार किया। उन्होंने विष्णुभक्त विप्रवर नारदजीके ऊपर फूल बरसाये, पाद्य और अर्घ्य निवेदन किया, उनकी आरती उतारी और फल-मल IMWARENES, निवेदन करके पृथ्वीपर साष्टाङ्ग प्रणाम किया। तत्पश्चात् महादेवजी बोले-देवि ! पहले सत्ययुगमें वे बोले-'महामुने ! हमलोग इस वंशमें जन्म लेकर विशुद्ध चित्तवाले सब पुरुष सम्पूर्ण ईश्वरोंके भी ईश्वर आज कृतार्थ हो गये; क्योंकि आज हमें परम पवित्र और एकमात्र भगवान् विष्णुका तत्त्व जानकर उन्हींके नामोका पापोंका नाश करनेवाला आपका दर्शन प्राप्त हुआ। जप किया करते थे और उसीके प्रभावसे इस लोक तथा देवर्षे ! आपके प्रसादसे हमने पुराणोका श्रवण किया है। परलोकमें भी परम ऐश्वर्यको प्राप्त करते थे। प्रिये ! ब्रह्मन् ! अव आप यह बताइये कि किस प्रकारसे समस्त तुलादान, अश्वमेध आदि यज्ञ, काशी, प्रयाग आदि पापोका क्षय हो सकता है। दान, तपस्या, तीर्थ, यज्ञ, तीर्थोमें किये हुए स्नान आदि शुभकर्म, गयामें किये हुए योग, ध्यान, इन्द्रिय-निग्रह और शास्त्र-समुदायके बिना पितरोंके श्राद्ध-तर्पण आदि, वेदोंके स्वाध्याय आदि, ही कैसे मुक्ति प्राप्त हो सकती है?'
जप, उप तप, नियम, यम, जीवोंपर दया, गुरुशुश्रूषा, नारदजी बोले-मुनिवरो ! एक समय भगवती सत्यभाषण, वर्ण और आश्रमके धोका पालन, ज्ञान पार्वतीने कैलासशिखरपर बैठे हुए अपने प्रियतम तथा ध्यान आदि साधनोंका कोटि जन्मोतक भलीभांति देवाधिदेव जगद्गुरु महादेवजीसे इस प्रकार प्रश्न किया। अनुष्ठान करनेपर भी मनुष्य परम कल्याणमय सर्वेश्वरेश्वर
पार्वती बोली-भगवन् ! आप सर्वज्ञ और भगवान् विष्णुको नहीं पाते। परन्तु जो दूसरेका भरोसा सर्वपूजित श्रेष्ठ देवता हैं। जन्म और मृत्युसे रहित, न करके सर्वभावसे पुराण पुरुषोत्तम श्रीनारायणकी शरण स्वयम्भू एवं सर्वशक्तिमान् हैं। स्वामिन् ! आप सदा ग्रहण करते है, वे उन्हें प्राप्त कर लेते हैं। जो लोग किसका ध्यान करते हैं ? किस मन्त्रका जप करते हैं? एकमात्र श्रीभगवान् विष्णुके नामोंका कीर्तन करते हैं, वे