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उत्तरखण्ड ]
. माघ-सानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम .
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दृश्य देखे हैं। वरदान पानेके अनन्तर महामुनि इस पृथ्वीपर विचरने लगे। यमराज भी भगवान् शङ्करकी मार्कण्डेयने पुनः अपने आश्रममें लौटकर माता-पिताको स्तुति करके अपने लोकमें चले गये। राजन् ! मृगङ्ग प्रणाम किया। फिर उन्होंने भी पुत्रका अभिनन्दन किया। मुनि सदा माघस्नान किया करते थे। उसीके माहात्म्यसे उसके बाद मार्कण्डेयजी तीर्थयात्रामें प्रवृत्त होकर सदा उनकी सन्तान इस प्रकार सौभाग्यशालिनी हुई।
माघ-नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
राजा दिलीपने पूछा-मुने! आप तीर्थ है, वह पितरोंके लिये तृप्तिदायक और हितकर है। इक्ष्वाकुवंशके गुरु और महात्मा हैं। आपको नमस्कार ये भूमिपर विराजमान तीर्थ हैं, जिनका मैंने तुमसे वर्णन है। माघस्नानमें संलग्न रहनेवाले पुरुषोंके लिये किया है। राजन् ! अब मानस तीर्थ बतलाता हूँ, सुनो। कौन-कौनसे मुख्य तीर्थ है? उनका विस्तारके साथ उनमें भलीभांति स्रान करनेसे मनुष्य परम गतिको प्राप्त वर्णन कीजिये। मैं सुनना चाहता हूँ।
होता है। सत्यतीर्थ, क्षमातीर्थ, इन्द्रिय-निग्रहतीर्थ, वसिष्ठजीने कहा-राजन् ! माघ मास आनेपर सर्वभूतदयातीर्थ, आर्जव (सरलता)-तीर्थ, दानतीर्थ, वस्तीसे बाहर जहाँ-कहीं भी जल हो, उसे सब ऋषियोंने दम (मनोनिग्रह)-तीर्थ, सन्तोषतीर्थ, ब्रह्मचर्यतीर्थ, गङ्गाजलके समान बतलाया है; तथापि मैं तुमसे नियमतीर्थ, मन्त्र-जपतीर्थ, प्रियभाषणतीर्थ, ज्ञानतीर्थ, विशेषतः माघस्रानके लिये मुख्य-मुख्य तीथोंका वर्णन धैर्यतीर्थ, अहिंसातीर्थ, आत्मतीर्थ, ध्यानतीर्थ और करता हूँ। पहला है-तीर्थराज प्रयाग। वह बहुत शिवस्मरण-तीर्थ-ये सभी मानस तीर्थ हैं। मनकी विख्यात तीर्थ है। प्रयाग सब तीर्थोंमें कामनाकी पूर्ति शुद्धि सब तीर्थोसे उत्तम तीर्थ है। शरीरसे जलमें डुबकी करनेवाला तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-चारों लगा लेना ही सान नहीं कहलाता । जिसने मन और पुरुषार्थोको देनेवाला है। उसके सिवा नैमिषारण्य, इन्द्रियोंके संयममें स्नान किया है, वास्तवमें उसीका स्नान कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, उज्जैन, सरयू, यमुना, द्वारका, सफल है; क्योंकि वह पवित्र एवं स्नेहयुक्त चित्तवाला अमरावती, सरस्वती और समुद्रका सङ्गम, गङ्गा-सागर- माना गया है।* संगम, काशी, त्र्यम्बक तीर्थ, सप्त-गोदावरीका तट, जो लोभी, चुगलखोर, क्रूर, दम्भी और विषयकालार, प्रभास, बदरिकाश्रम, महालय, ओंकार क्षेत्र, लोलुप है, वह सम्पूर्ण तीर्थोंमें स्नान करके भी पापी और पुरुषोत्तम क्षेत्र-जगन्नाथपुरी, गोकर्ण, भृगुकर्ण, मलिन ही बना रहता है; केवल शरीरकी मैल छुड़ानेसे भृगुतुङ्ग, पुष्कर, तुङ्गभद्रा, कावेरी, कृष्णा-वेणी, नर्मदा, मनुष्य निर्मल नहीं होता, मनकी मैल धुलनेपर ही वह सुवर्णमुखरी तथा वेगवती नदी-ये सभी माघ मासमें अत्यन्त निर्मल होता है। जलचर जीव जलमें ही जन्म स्रान करनेवालोंके लिये मुख्य तीर्थ है। गया नामक जो लेते और उसीमें मर जाते है किन्तु इससे वे स्वर्गमें नहीं
सय तीर्थक्षमा तीर्थ तीर्थमिन्द्रियनिग्रहः॥ सर्वभूतदया तीर्थ तीर्थमार्जवमेव च । दानं तीर्थ दमस्तीर्थ संतोषस्तीर्थमेव च॥ ब्रह्मचर्य पर तीर्थ नियमस्तीर्थमुच्यते । मन्त्राणां तु जपस्तीर्थ तीर्थ तु प्रियवादिता ।। ज्ञान तीर्थ भृतिस्तीर्थमहिंसा तीर्थमेव च । आत्मतीर्थ ध्यानतीर्थ पुनस्तीर्थ शिवस्मृतिः ॥ . तीर्थानामुत्तमं तीर्थ विशुद्धिर्मनसः पुनः । न जलापुलदेहस्य सानमित्यभिधीयते ॥ स सातो यो दमनातः शुचिस्निग्धमना मतः।
(२३७ । १२-१७)