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उत्तरखण्ड]
• श्रीकृष्णावतारकी कथा-व्रजकी लीलाओंका प्रसङ्ग .
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मुनि क्षीरसागरके उत्तर तटपर जगदीश्वर श्रीविष्णुके पास दिया। गर्भका संकर्षण करने (खींचने) से उस गये और नाना प्रकारके स्तोत्रोद्वारा उनकी स्तुति करने बालकका जन्म हुआ, इसलिये वह संकर्षण नामसे लगे। इससे प्रसन्न होकर भगवान्ने समस्त देवताओं प्रसिद्ध हुआ। भादोंके' कृष्णपक्षकी अष्टमी तिथिको
और मुनिवरोंसे कहा-'देवगण ! तुम सब लोग यहाँ रोहिणी नक्षत्रमें शुभ लग्नका उदय होनेपर रोहिणी देवीने किसलिये आये हो ?' तब पितामह ब्रह्माजीने देवाधिदेव भगवान् संकर्षणको जन्म दिया। तत्पश्चात् साक्षात् जनार्दनसे कहा-'देवदेव ! जगन्नाथ ! पृथ्वी भारी भगवान् श्रीहरि देवकीके गर्भमें आये। आठवें गर्भसे भारसे पीडित है। इस समय संसारमें बहुत-से दुर्द्धर्ष युक्त देवकीको देखकर कंस बहुत भयभीत हुआ। उस राक्षस उत्पन्न हो गये हैं। जरासन्ध, कंस, प्रलम्ब और समय समस्त देवताओंके मनमें उल्लास छा रहा था। वे धेनुक आदि दुरात्मा सब लोगोंको सता रहे हैं; अतः विमानपर बैठे हुए आकाशसे ही देवकी देवीकी स्तुति आप इस पृथ्वीका भार उतारनेकी कृपा करें।' किया करते थे। तदनन्तर दसवाँ महीना आनेपर
ब्रह्माजीके ऐसा कहनेपर सम्पूर्ण जगत्का पालन श्रावणमासकी कृष्णा अष्टमीको आधी रातके समय करनेवाले अविनाशी भगवान् हषीकेशने कहा- श्रीहरिका अवतार हुआ। वसुदेवके पुत्र होनेसे वे 'देवताओ ! मैं मनुष्यलोकके भीतर यदुकुलमें अवतार सनातन भगवान् वासुदेव कहलाये। लेकर पृथ्वीका भार हटाऊँगा।' यह सुनकर सब देवता सम्पूर्ण जगत्के स्वामी भगवान् श्रीकृष्णको देखकर भगवान् जनार्दनको नमस्कार करके अपने-अपने लोकमें वसुदेवजी हाथ जोड़ नमस्कार करके उन जगन्मय जा उन परमेश्वरका ही चिन्तन करने लगे। तत्पश्चात् प्रभुकी स्तुति करने लगे-'जगन्नाथ ! आप भक्तोंकी परमेश्वर श्रीहरिने भगवती मायासे कहा-'देवि! इच्छा पूर्ण करनेके लिये साक्षात् कल्पवृक्ष है। प्रभो ! रसातलसे हिरण्याक्षके छः पुत्रोंको ले आओ और आप स्वयं मेरे यहाँ प्रकट हुए, मैं कितना भाग्यवान् हूँ। क्रमशः वसुदेव-पत्नी देवकीके गर्भमें स्थापित करो। अहो ! आज धरणीधर भगवान् इस घरतीके ऊपर मेरे सातवाँ गर्भ अनन्त (शेषनाग) का अंश होगा, उसे भी पुत्ररूपसे अवतीर्ण हुए हैं। पुरुषोत्तम ! आपके इस खींचकर तुम देवकीकी सौत रोहिणीके उदरमें स्थापित अद्भुत ईश्वरीय रूपको देखकर महाबली एवं पापाचारी कर देना। तदनन्तर देवकीके आठवें गर्भ में मेरा अंश दानव सहन नहीं कर सकेंगे।' वसुदेवजीके इस प्रकार प्रकट होगा। तुम नन्दगोपकी पत्नी यशोदाके गर्भसे स्तुति और प्रार्थना करनेपर सनातन पुरुष भगवान् उत्पन्न होना। इससे इन्द्र आदि देवता तुम्हारी पद्मनाभने अपने चतुर्भुज रूपको तिरोहित कर लिया पूजा करेंगे।'
और मानवरूप धारण करके वे दो भुजाओसे ही शोभा 'बहुत अच्छा' कहकर महाभागा मायाने क्रमशः पाने लगे। उस भवनमें पहरा देनेवाले जो दानव रहते थे, हिरण्याक्षके पुत्रोंको ला-लाकर देवकीके गर्भमें स्थापित वे सब भगवान्की मायासे मोहित और तमोगुणसे किया। महाबली कंसने पैदा होते ही उन बालकोंको मार आच्छादित हो सो गये। इसी समय मौका पाकर डाला। फिर भगवत्प्रेरणावश सातवाँ गर्भ अनन्तके भगवान्के आज्ञानुसार वसुदेवजी भगवानको गोदमें ले अंशसे प्रकट हुआ। वह गर्भ जब बढ़कर कुछ पुष्ट तुरंत ही नगरसे बाहर निकल गये। उस समय सब हुआ तो मायादेवीने उसे रोहिणीके उदरमें स्थापित कर देवता उनकी स्तुति कर रहे थे। मेघ पानी बरसाने लगे,
१-२-यहाँ महीनोंका नाम शुरूपक्षसे मासका आरम्भ मानकर दिया गया है। जहाँ कृष्णपक्षसे महीनोंका आरम्भ होता है, वहाँ भादोंका कृष्णपक्ष कुआरका कृष्णपक्ष होगा और सावनका कृष्णपक्ष भादोका कृष्णपक्ष होगा। अतः बलदेवजीकी जन्माष्टमी आश्विन कृष्णपक्षमें मनानी चाहिये और भगवान् श्रीकृष्णकी जन्माष्टमी भादोंके कृष्णपक्षमें।