Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 993
________________ उत्तरखण्ड ] श्रीविष्णु पूजनकी विधि तथा वैष्णवोचित आचारका वर्णन. ******************************************** वह नीचे मुँह किये घोर कालसूत्र नामक नरकमें गिरती है। * अतः यक्ष आदि तामस देवताओंकी पूजा त्याग देनी चाहिये। तथा नैमित्तिक और काम्य । इसी प्रकार मुनियोंने शानके भेदोंका भी वर्णन किया है— कृत्याकृत्यविवेक ज्ञान, परलोकचिन्तन-ज्ञान, विष्णुप्राप्तिसाधन- ज्ञान विष्णुस्वरूप-ज्ञान- -ये चार प्रकारके ज्ञान हैं। पार्वती । नैमित्तिक कृत्यमें भगवान्‌का विशेषरूपसे विधिवत् पूजन करना चाहिये। कार्तिकमासमें प्रतिदिन चमेलीके फूलोंसे श्रीहरिकी पूजा करे, उन्हें अखण्ड दीप दे तथा मन और इन्द्रियोंको संयममें रखकर दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रतका पालन करे। फिर कार्तिकके अन्तमें ब्राह्मणोंको भोजन करावे, इससे वह श्रीहरिके सायुज्यको प्राप्त होता है। पौषमासमें सूर्योदयके पहले उठकर लगातार एक मासतक उत्पल तथा श्याम श्वेत कनेर पुष्पोंसे भगवान् विष्णुका पूजन करे। तत्पश्चात् यथाशक्ति धूप, दीप और नैवेद्य निवेदन करे। मासकी समाप्ति होनेपर श्रेष्ठ भगवद्भक्तोंको भोजन करावे। ऐसा करनेसे मनुष्य निश्चय ही एक हजार अश्वमेध यज्ञोंका फल प्राप्त करता है। माघमासमें सूर्योदयके समय विशेषतः नदीके जलमें स्नान करके उत्पल (कमल) के पुष्पोंसे माधवकी पूजा करनी चाहिये और उन्हें भक्तिपूर्वक घृतमिश्रित दिव्य खीरका भोग लगाना चाहिये। चैत्रमासमें वकुल (मौलसिरी) और चम्पाके फूलोंसे भगवान्‌की पूजा करके गुड़मिश्रित अन्नका भोग लगावे तदनन्तर मासकी समाप्ति होनेपर एकाग्रचित्त हो वैष्णव ब्राह्मणोंको भोजन करावे। ऐसा करनेसे प्रतिदिन एक हजार वर्षोंकी पूजाका पुण्य प्राप्त होता है। वैशाखमासमें शतपत्र' और महोत्पलके' पुष्पोंसे विधिवत् भगवान्‌का पूजन करके उन्हें दही, अन्न और फलके साथ गुड़ और जल भक्तिपूर्वक निवेदन करे। इससे लक्ष्मीसहित जगदीश्वर श्रीविष्णु प्रसन्न होते हैं। ज्येष्ठमासमें श्वेत कमल, गुलाब, कुमुद और उत्पलके पुष्पोंसे भगवान् हृषीकेशका पूजन करके उन्हें आमके फलोंके साथ अन्न भोग लगावे । 1 कर्म तीन प्रकारका माना गया है— नित्य, भक्तिपूर्वक ऐसा करनेसे मनुष्यको कोटि गोदानका फल वैष्णव पुरुष विश्ववन्द्य भगवान् नारायणका पूजन करके उनके चारों ओर विराजमान देवताओंका पूजन करे । भगवान्को भोग लगाये हुए अनमेंसे निकालकर उसीसे उनके लिये बलि निवेदन करे। भगवत्प्रसादसे ही उनके निमित्त होम भी करे। देवताओंके लिये भी भगवत् प्रसादस्वरूप हविष्यका ही हवन करे। पितरोंको ही प्रसाद अर्पण करे; इससे वह सब फल प्राप्त करता है। प्राणियोंको पीड़ा देना विद्वानोंकी दृष्टिमें नरकका कारण है। पार्वती ! मनुष्य दूसरोंकी वस्तुको जो बिना दिये ही ले लेता है, वह भी नरकका कारण है। अगम्या (परायी) स्त्रीके साथ संभोग, दूसरोंके धनका अपहरण तथा अभक्ष्य वस्तुका भक्षण करनेसे तत्काल नरककी प्राप्ति होती है जो अपनी विवाहिता पत्नीको छोड़कर दूसरी स्त्रीके साथ संभोग करता है, उसका वह कर्म 'अगम्यागमन' कहलाता है, जो तत्काल नरककी प्राप्तिका कारण है। पतित, पाखण्डी और पापी मनुष्योंके संसर्गसे मनुष्य अवश्य नरकमें पड़ता है। उनसे सम्पर्क रखनेवालेका भी संसर्ग छोड़ देना चाहिये। एकान्ती पुरुष महापातकयुक्त ग्रामको छोड़ दे और परमैकान्ती मनुष्य वैसे देशका भी परित्याग कर दे। अपने वर्ण तथा आश्रमके अनुसार कर्म, ज्ञान और भक्ति आदिका साधन वैष्णव साधन माना गया है। जो भगवान्‌की आज्ञाके अनुसार कर्म, ज्ञान आदिका अनुष्ठान करता है, वह वासुदेवपरायण ब्राह्मण 'एकान्ती' कहलाता है। वैष्णव पुरुष निषिद्ध कर्मको मन-बुद्धिसे भी त्याग दे। एकान्ती पुरुष अपने धर्मकी निन्दा करनेवाले शास्त्रको मनसे भी त्याग दे और परम एकान्ती भक्त हेय बुद्धिसे उसका परित्याग करे। ९९३ * या नारी पूजयेद् यक्षान् पिशाचोरगराक्षसान् । सा याति नरकं घोरं कालसूत्रमधोमुखी ॥ (२८० | १०१) १-२ कमलके भेद |

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