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उत्तरखण्ड ]
.श्रीराम-नामकी महिमा तथा श्रीरामके १०८ नामका माहात्म्य .
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लक्ष्मीपतिका पूजन अवश्य करो। भद्रे ! मैं तुम-जैसी सहस्रनामोंमें भी श्रीरामके एक सौ आठ नामोंकी वैष्णवी पत्नीको पाकर अपनेको कृतकृत्य मानता हूँ। प्रधानता अधिक है। श्रीविष्णुका एक-एक नाम ही सब
वसिष्ठजी कहते हैं-तदनन्तर वामदेवजीके वेदोंसे अधिक माना गया है। वैसे ही एक हजार नामोंके उपदेशानुसार पार्वतीजी प्रतिदिन श्रीविष्णुसहस्रनामका समान अकेला श्रीराम-नाम माना गया है। पार्वती ! जो पाठ करनेके पश्चात् भोजन करने लगी। एक दिन परम सम्पूर्ण मन्त्रों और समस्त वेदोंका जप करता है, उसकी मनोहर कैलासशिखरपर भगवान् श्रीविष्णुकी आराधना अपेक्षा कोटिगुना पुण्य केवल राम-नामसे उपलब्ध होता करके भगवान् शङ्करने पार्वतीदेवीको अपने साथ भोजन है। शुभे! अव श्रीरामके उन मुख्य नामोंका वर्णन करनेके लिये बुलाया । तब पार्वतीदेवीने कहा—'प्रभो ! सुनो, जिनका महर्षियोंने गान किया है। १ ॐ मैं श्रीविष्णुसहस्रनामका पाठ करनेके पश्चात् भोजन श्रीरामः-जिनमें योगीजन रमण करते हैं, ऐसे करूँगी, तबतक आप भोजन कर लें।' यह सुनकर सच्चिदानन्दघनस्वरूप श्रीराम अथवा सीता-सहित राम । महादेवजीने हँसते हुए कहा–'पार्वती ! तुम धन्य हो, २ रामचन्द्रः-चन्द्रमाके समान आनन्ददायी एवं पुण्यात्मा हो; क्योंकि भगवान् विष्णुमें तुम्हारी भक्ति है। मनोहर राम। ३ रामभद्रः-कल्याणमय राम। ४ देवि ! भाग्यके बिना श्रीविष्णु-भक्तिका प्राप्त होना बहुत शाश्वत:-सनातन भगवान्। ५ राजीवलोचन:कठिन है। सुमुखि ! मैं तो 'राम ! राम ! राम !' इस कमलके समान नेत्रोंवाले। ६ श्रीमान् प्रकार जप करते हुए परम मनोहर श्रीराम-नाममें ही राजेन्द्रः-श्रीसम्पत्र राजाओंके भी राजा, चक्रवती निरन्तर रमण किया करता हूँ। राम-नाम सम्पूर्ण सम्राट्। ७ रघुपुङ्गवः-रघुकुलमें सर्वश्रेष्ठ। ८ सहस्रनामके समान है। पार्वती ! रकारादि जितने नाम जानकीवल्लभः-जनककिशोरी सीताके प्रियतम । ९ हैं, उन्हें सुनकर रामनामकी आशङ्कासे मेरा मन प्रसन्न हो जैत्रः-विजयशील। १० जितामित्रः-शत्रुओंको जाता है।* अतः महादेवि ! तुम राम-नामका उच्चारण जीतनेवाले। ११ जनार्दनः-सम्पूर्ण मनुष्योंद्वारा करके इस समय मेरे साथ भोजन करो।'
याचना करने योग्य। १२ विश्वामित्रप्रियःयह सुनकर पार्वतीजीने राम-नामका उच्चारण करके विश्वामित्रजीके प्रियतम । १३ दान्तः-जितेन्द्रिय । १४ भगवान् शङ्करके साथ बैठकर भोजन किया। इसके बाद शरण्यत्राणतत्परः- शरणागतोंकी रक्षामें संलग्न। उन्होंने प्रसन्नचित्त होकर पूछा-'देवेश्वर ! आपने १५ बालिप्रमथन:-बालि नामक वानरको राम-नामको सम्पूर्ण सहस्रनामके तुल्य बतलाया है। यह मारनेवाले। १६ वाग्मी-अच्छे वक्ता। १७ सुनकर राम-नाममें मेरी बड़ी भक्ति हो गयी है; अतः सत्यवाक्- सत्यवादी। १८ सत्यविक्रमःभगवान् श्रीरामके यदि और भी नाम हों तो बताइये।' सत्य-पराक्रमी। १९ सत्यव्रतः-सत्यका दृढ़तापूर्वक
महादेवजी बोले-पार्वती! सुनो, मैं पालन करनेवाले। २० व्रतफल:- सम्पूर्ण व्रतोंके श्रीरामचन्द्रजीके नामोंका वर्णन करता हूँ। लौकिक और प्राप्त होने योग्य फलस्वरूप। २१ सदा वैदिक जितने भी शब्द है, वे सब श्रीरामचन्द्रजीके ही हनुमदाश्रयः- निरन्तर हनुमान्जीके आश्रय अथवा नाम हैं। किन्तु सहस्रनाम उन सबमें अधिक है और उन हनुमान्जीके हृदयकमलमें सदा निवास करनेवाले।
* राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।
रकारादीनि नामानि पृण्वतो मम पार्वति । मनः प्रसन्नतां याति रामनामाभिशङ्कया । (२८१ । २१-२२) + विष्णोरेकैकनामैव सर्ववेदाधिक मतम् । तादृङ्नामसहस्राणि रामनाम समं मतम् ।। जपतः सर्वमन्त्रांच सर्वदाश्च पार्वति । तस्मात् कोटिगुणं पुण्यं रामनानैव लभ्यते ॥ (२८१ । २७-२८)