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उत्तरखण्ड ]
• भगवान् श्रीकृष्णकी मथुरा-यात्रा, कंसवध और उप्रसेनका राज्याभिषेक .
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सड़कपर खड़े होकर उन्हें बहुत-से कटुवचन भी कर दिया और सब ओर बड़े-बड़े बलोन्मत्त पहलवान सुनाये। तब महाबली श्रीकृष्णने रैंगरेजके मुँहपर एक बिठा दिये। यह सब कुछ जानते हुए भी भगवान् तमाचा जड़ दिया। फिर तो वह मुँहसे रक्त वमन करता श्रीकृष्ण परम बुद्धिमान् बलरामजी तथा अपने अनुयायी हुआ मार्गमें ही मर गया। बलराम और श्रीकृष्णने अपने बाल-बालोंके साथ रातभर उस यज्ञशालामें ही ठहरे बन्धु-बान्धव ग्वाल-बालोंके साथ उन सुन्दर वस्त्रोंको रहे। रात बीतनेपर जब निर्मल प्रभात आया तो बलराम यथायोग्य धारण किया। फिर वे मालीके घरपर गये। और श्रीकृष्ण दोनों वीर शय्यासे उठकर स्नान आदिसे उसने उन्हें देखते ही नमस्कार किया और दिव्य सुगन्धित निवृत्त हुए। फिर भोजन करके वस्त्र और आभूषणोंसे पुष्पोंसे प्रसन्नतापूर्वक उनकी पूजा की। तब उन दोनों विभूषित हो युद्धके लिये उत्सुक होकर वे उस यादव-वीरोंने मालीको मनोवाञ्छित वरदान दिया। अब यज्ञशालासे चले; मानो दो सिंह किसी बड़ी गुफासे बाहर वे गलीकी राहसे घूमने लगे। सामनेसे एक सुन्दर निकले हो। राजमहलके दरवाजेपर कुवलयापीड़ हाथी मुखवाली युवती आती दिखायी दी, जो हाथमें चन्दनका खड़ा था, जो हिमालय पर्वतके शिखर-सा जान पड़ता पात्र लिये हुए थी। वह स्त्री कुब्जा थी। उन दोनों था। वही कंसकी विजयाभिलाषाको बढ़ानेवाला था। भाइयोंने उससे चन्दन माँगा । कुब्जाने मुसकराते हुए उन्हें उसने ऐरावतके भी दाँत खट्टे कर दिये थे। उस महाकाय उत्तम चन्दन प्रदान किया। चन्दन लेकर उन्होंने और मतवाले गजराजको देखकर भगवान् श्रीकृष्ण इच्छानुसार अपने शरीरमें लगाया और कुब्जाको परम सिंहकी भाँति उछल पड़े और अपने हाथसे उसकी सूंड मनोहर रूप देकर वे आगेके मार्गपर बढ़ गये। नगरकी पकड़कर वे लीलापूर्वक उसे घुमाने लगे। घुमातेस्त्रियाँ सुन्दर मुखवाले उन दोनों सुन्दर कुमारोंको घुमाते ही भगवान् धरणीधरने उसे धरतीपर पटक दिया। प्रेमपूर्वक निहारती थीं। इस प्रकार वे अपने हाथीका सारा अङ्ग चूर-चूर हो गया और वह डरावनी अनुयायियोसहित यज्ञशाला में पहुँचे। वहाँ दिव्य धनुष आवाजमें चिग्घाड़ता हुआ मर गया । इस प्रकार हाधीको रखा था। उसकी पूजा की गयी थी। भगवान् मधुसूदनने मारकर बलराम और श्रीकृष्णने उसके दोनों दाँत उखाड़ देखते ही उस धनुषको उठा लिया और खेल-खेल में ही लिये और पहलवानोंसे युद्ध करनेके लिये वे रंगभूमिमें उसे तोड़ डाला। धनुष टूटनेको आवाज सुनकर कंस पहुँचे। वहाँ जितने दानव थे, वे सब गोविन्दका पराक्रम अत्यन्त व्याकुल हो उठा और उसने चाणूर आदि देख भयभीत हो भाग खड़े हुए। तब कसके भवनमे मुख्य-मुख्य मल्लोंको बुलाकर मन्त्रियोंकी सलाह ले प्रवेश करके वे महाबली वीर युद्धके लिये उत्कण्ठित हो चाणूरसे कहा-'देखो, सब दैत्योंका विनाश करनेवाले हाथोके दाँत घुमाने लगे। वहाँ उन महात्माओंने कंसके बलराम और श्रीकृष्ण आ पहुंचे हैं। कल सबेरे दो मल्ल चाणूर और मुष्टिकको उपस्थित देखा । कंस भी मल्लयुद्ध करके इन दोनोंको बेखटके मार डालो। इन महाबली बलराम और गोविन्दको देखकर भयभीत हो दोनोको अपने बलपर बड़ा घमण्ड है। मतवाले उठा तथा अपने प्रधान मल्ल चाणूरसे बोला-'वीर ! हाथियोंको भिड़ाकर अथवा बड़े-बड़े पहलवानोंको इस समय तुम इन ग्वाल-बालोंको अवश्य मार डालो। लगाकर जिस किसी उपायसे भी हो सके इन दोनोंको मैं तुम्हें अपना आधा राज्य बाँटकर दे दूंगा। यत्नपूर्वक मार डालना चाहिये।
। उस समय उन दोनों मल्लोको भगवान् श्रीकृष्ण इस प्रकार आदेश देकर राजा कस भाई और अभेद्य कवचसे युक्त और दूसरे मेरुपर्वतके समान मन्नियोंके साथ शीघ्र ही सुन्दर राजभवनकी छतपर चढ़ विशालकाय दिखायी दिये । कंसकी दृष्टि में प्रलयकालीन गया। नीचे रहनेमें उसे भय लग रहा था। सम्पूर्ण अग्नि-से जान पड़े। स्त्रियोंको साक्षात् कामदेव प्रतीत दरवाजों और मार्गोपर उसने मतवाले हाथियोको नियुक्त हुए। माता-पिताने उन्हें नन्हें शिशुके रूपमें ही देखा।