Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 976
________________ ९७६ अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • उठाकर उससे जरासन्धके सारथिसहित रथको चौपट कर डाला और महाबली जरासन्धको भी पकड़कर वे मूसल उठा उसे मार डालने को तैयार हो गये। जैसे सिंह महान् गजराजको दबोच ले, उसी प्रकार बलरामजीने नृपश्रेष्ठ जरासन्धको प्राणसंकटकी अवस्थामें डाल दिया। यह देख भगवान् श्रीकृष्णने अपने बड़े भाई बलरामजीसे कहा- 'भैया ! इसका वध न कीजिये।' इस प्रकार महामति धर्मात्मा श्रीकृष्णने जरासन्धको छुड़वा दिया। श्रीकृष्णके कहनेसे अविनाशी वोर संकर्षणने शत्रुको छोड़ दिया। इसके बाद वे दोनों भाई रथपर बैठकर मथुरापुरीमें लौट आये। उधर जरासन्ध महापराक्रमी कालयवनके यहाँ गया। कालयवनके पास बहुत बड़ी सेना थी। वहाँ पहुँचकर उसने वसुदेवके दोनों पुत्रोंके पराक्रमका वर्णन किया। दानवोंका वध, कंसका मारा जाना, अनेक अक्षौहिणी सेनाका संहार तथा अपनी पराजय आदि श्रीकृष्णके सारे चरित्रोंका हाल कह सुनाया। यह सब सुनकर कालयवनको बड़ा क्रोध हुआ और उसने महान् बली एवं पराक्रमी म्लेच्छोंकी बड़ी भारी सेनाके साथ मथुरापर आक्रमण किया । मगधराजके महाबली सैनिक भी उसकी सहायता के लिये आये थे। जरासन्धको साथ लेकर महान् अभिमानी कालयवन बड़ी तेजीके साथ चला। उसकी विशाल सेनासे अनेक जनपदोंकी भूमि आच्छादित हो गयी थी। उस बलवान् वीरने मथुराको चारों ओरसे घेरकर अपनी महासेनाका पड़ाव डाल दिया। उस समय भगवान् श्रीकृष्णने पुरवासियोंके कुशलक्षेमका विचार करके सबके रहनेके लिये समुद्रसे भूमि माँगी। समुद्रने उन्हें तीस योजन विस्तृत भूमि दी। तब श्रीकृष्णने वहीं द्वारका नामकी सुन्दर पुरी बनवायी, जो अपनी शोभासे इन्द्रकी अमरावतीपुरीको मात करती थी। भगवान् जनार्दनने मथुरामें सोये हुए पुरवासियोंको उसी अवस्थामें उठाकर रातभरमें ही द्वारका पहुँचा दिया। सबेरे जागनेपर उन्होंने स्त्री- पुत्रोंसहित अपनेको सोनेके महलोंमें बैठा पाया। इससे उनके आश्चर्यका ठिकाना न रहा। प्रचुर धन-धान्य और दिव्य वस्त्र- आभूषणोंसे भरे हुए सुन्दर गृह, जहाँ [ संक्षिप्त पद्मपुराण *********** भयका नाम भी नहीं था, पाकर सम्पूर्ण यादव बड़ी प्रसन्नताके साथ वहाँ रहने लगे। जैसे स्वर्गमें देवता सुखी रहते हैं, उसी प्रकार द्वारकापुरीमें वहाँके सभी निवासी अत्यन्त प्रसन्न थे। मथुरावासियोंको द्वारकामें पहुँचानेके बाद महाबली बलराम और श्रीकृष्ण कालयवनसे युद्ध करनेके लिये मथुरासे बाहर निकले। एक ओर महारथी बलरामजीने हल और मूसल लेकर बड़े रोषके साथ यवनोंकी विशाल सेनाका संहार आरम्भ किया तथा दूसरी ओर देवकीनन्दन भगवान् श्रीकृष्णने शार्ङ्गधनुष लेकर उससे छूटे हुए अग्निशिखाके सदृश तेजस्वी बाणोंद्वारा म्लेच्छोंकी सम्पूर्ण विशाल वाहिनीको भस्म कर डाला। महाबली कालयवनने अपनी सेनाको मारी गयी देख भगवान् वासुदेवके साथ गदायुद्ध आरम्भ किया। भगवान् श्रीकृष्ण भी बहुत देरतक यवनोंका संहार करके युद्धसे विमुख होकर भागे। कालयवनने 'ठहरो ठहरों' की पुकार लगाते हुए बड़े वेगसे उनका पीछा किया। परम बुद्धिमान् भगवान् श्रीकृष्ण शीघ्र ही एक पर्वतकी कन्दरामें घुस गये। वहाँ महामुनि राजा मुचुकुन्द सोये थे। भगवान् श्रीकृष्ण, जहाँ कालयवनकी दृष्टि न पड़ सके, ऐसे स्थानमें खड़े हो गये। कालयवन भी महान् धीर-वीर था। वह हाथमें गदा लिये श्रीकृष्णको मारनेके लिये उस कन्दरामें घुसा। उसमें सोये हुए महामुनि राजा मुचुकुन्दको श्रीकृष्ण समझकर उसने लात मारी। इससे उनकी नींद खुल गयी और उन्होंने क्रोधसे लाल-लाल आँखें करके हुंकार किया। उनके हुंकार शब्दसे तथा उनकी रोषभरी दृष्टि पड़नेसे कालयवन प्राणहीन हो जलकर भस्म हो गया। तत्पश्चात् राजर्षि मुचुकुन्दने अपने सामने खड़े हुए भगवान् श्रीकृष्णको 'देखा। अमित तेजस्वी भगवान्पर दृष्टि पड़ते ही वे सहसा उठकर खड़े हो गये और बोले— 'मेरा अहोभाग्य, अहोभाग्य, जो प्रभुका दर्शन मिला।' इतना कहते-कहते उनके सारे शरीरमें रोमाञ्च हो आया और नेत्रोंमें आनन्दके आँसू छलक आये। उन्होंने जय-जयकार करके भगवान्‌को बारंबार प्रणाम किया और स्तवन करते हुए कहा- 'परमेश्वर! आपके दर्शनसे मैं धन्य और

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