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• अर्चयस्व इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
भगवान् श्रीकृष्णके चक्र और गरुड़जीके पंखोंकी मारसे देवता परास्त हो गये और इन्द्र भयभीत होकर गजराज ऐरावतसे नीचे उतर पड़े तथा गद्गद वाणीसे भगवान्की स्तुति करके बोले – 'श्रीकृष्ण ! यह पारिजात देवताओंके उपभोगमें आने योग्य है। पूर्वकालमें आपने ही इसे देवताओंके लिये दिया था। अब यह मनुष्यलोकमें कैसे रह सकेगा ?' तब भगवान्ने इन्द्रसे कहा-' - 'देवराज ! तुम्हारे घरमें शचीने सत्यभामाका अपमान किया है। उन्होंने इनको पारिजातके फूल न देकर स्वयं ही उन्हें अपने मस्तकमें धारण किया है। इसलिये मैंने पारिजातका अपहरण किया है। मैंने सत्यभामासे प्रतिज्ञा की है कि मैं तुम्हारे घरमें पारिजातका वृक्ष लगा दूंगा; अतः आज यह पारिजात तुम्हें नहीं मिल सकता। मैं मनुष्योंके हितके लिये उसे भूतलपर ले जाऊँगा । सत्यभामा क्रोधमें भरकर इन्द्राणीके घरसे चली जबतक मैं वहाँ रहूँगा, मेरे भवनमें पारिजात भी रहेगा। आय और अपने स्वामीके पास आकर बोलीं- मेरे परमधाम पधारनेपर तुम अपनी इच्छाके अनुसार इसे यदुश्रेष्ठ ! उस शचीको पारिजातके फूलोंपर बड़ा घमंड ले लेना । इन्द्रने भगवान्को नमस्कार करके कहाहै। उसने मुझे दिये बिना ही सब फूल अपने ही केशोंमें 'अच्छा, ऐसा ही हो' यों कहकर वे देवताओंके साथ धारण कर लिये हैं।' सत्यभामाकी यह बात सुनकर अपनी पुरीमें लौट गये और भगवान् श्रीकृष्ण महाबली वासुदेवने पारिजातका पेड़ उखाड़ लिया और सत्यभामादेवीके साथ गरुड़पर बैठकर द्वारकापुरीमें चले उसे गरुड़की पीठपर रखकर वे सत्यभामाके साथ आये। उस समय मुनिगण उनकी स्तुति करते थे। द्वारकापुरीकी ओर चल दिये। यह देख देवराज इन्द्रको सर्वव्यापी भगवान् श्रीहरि सत्यभामाके निकट देववृक्ष बड़ा क्रोध हुआ। और वे देवताओंको साथ लेकर पारिजातकी स्थापना करके समस्त भार्याओंके साथ भगवान् जनार्दनपर अस्त्र-शस्त्रोंकी वर्षा करने लगे, मानो विहार करने लगे। विश्वरूपधारी मधुसूदन रात्रिमें इन मेघ किसी महान् पर्वतपर जलकी बूँदें बरसा रहे हो। सभी पत्नियोंके घरोंमें रहकर उन्हें सुख प्रदान करते थे। -★ अनिरुद्धका ऊषाके साथ विवाह
पुत्रवत्सला माताने भगवान्को दोनों हाथोंसे पकड़कर छातीसे लगा लिया और एक श्रेष्ठ आसनपर बिठाकर उन्होंने भक्तिपूर्वक भगवान्का पूजन किया। तत्पश्चात् आदित्य, वसु, रुद्र और इन्द्र आदि देवताओंने भी परमेश्वरका यथायोग्य पूजन किया। उस समय यशस्विनी सत्यभामा शचीके महलमें गयीं। वहाँ इन्द्राणीने उन्हें सुखमय आसनपर बिठाकर उनका भलीभांति पूजन किया। उसी समय सेवकोंने इन्द्रकी प्रेरणासे पारिजातके सुन्दर फूल ले जाकर शचीदेवीको भेंट दिये। सुन्दरी शचीने उन फूलोंको लेकर अपने काले एवं चिकने केशोंमें गूँथ लिया और सत्यभामाकी अवहेलना कर दी। उन्होंने सोचा- 'ये फूल देवताओंके योग्य हैं और सत्यभामा मानुषी हैं, अतः ये इन फूलोंकी अधिकारिणी नहीं हैं।' ऐसा विचार करके उन्होंने वे फूल सत्यभामाको नहीं दिये।
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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श्रीकृष्णके रुक्मिणीके गर्भसे प्रद्युम्न उत्पन्न हुए, जो कामदेवके अंशसे प्रकट हुए थे। वे बड़े बलवान् थे। उन्होंने शम्बरासुरका वध किया था। उनके रुक्मीकी पुत्रीके गर्भसे अनिरुद्धका जन्म हुआ। अनिरुद्धने भी बाणासुरकी कन्या ऊषाके साथ विवाह किया। उस विवाहको कथा इस प्रकार है— एक दिन ऊषाने स्वप्रमें
महादेवजी कहते हैं- पार्वती ! भगवान् एक नील कमल दलके समान श्यामसुन्दर तरुण पुरुषको देखा। ऊषाने स्वप्रमें ही उस पुरुषके साथ प्रेमालाप किया और जागनेपर उसे सामने न देख वह पागल सी हो उठी तथा यह कहती हुई कि 'तुम मुझे अकेली छोड़ कहाँ चले गये ?' वह भाँति-भाँति से विलाप करने लगी। ऊषाकी एक चित्रलेखा नामकी सखी थी। उसने उसकी ऐसी अवस्था देखकर पूछा