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• अर्चयस्व हवीकेशं यदीलसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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अनुरक्त रहना चाहिये। पार्वती ! श्रीरङ्ग क्षेत्रमें शयन भगवत्प्राप्तिके सिवा और किसी फलके साधक नहीं है, करनेवाले भगवान् विष्णुका विधिपूर्वक पूजन करना जो वेदवेत्ता, ब्रह्मतत्त्वज्ञ, वीतराग, मुमुक्षु गुरुभक्त, चाहिये। काशीपुरीमें पापहारी भगवान् माधव मेरे भी प्रसन्नात्मा, साधु, ब्राह्मण अथवा इतर मनुष्य है, उन पूजनीय हैं। जिस-जिस रमणीय भवनमें सनातन भगवान् सबको सदा श्रीहरिका पूजन करना चाहिये। बुद्धिमान् स्वयं व्यक्त होते हैं, वहाँ-वहाँ जाकर मैं आनन्दका पुरुषको चाहिये कि वह वेद और स्मृतियोंमें बताये हुए अनुभव किया करता हूँ। भगवान्का दर्शन हो जानेपर वे उत्तम सदाचारका सदा पालन करे। उनमें बताये हए मनोवाञ्छित वरदान देते हैं। इस पृथ्वीपर प्रतिमा कोका कभी उल्लङ्गन न करे । शम (मनोनिग्रह), दम अज्ञानीजनोंको भी सदा भगवान्का सानिध्य प्राप्त होता (इन्द्रियसंयम), तप (धर्मके लिये क्लेशसहन एवं रहता है। परम पुण्यमय जम्बूद्वीप और उसमें भी तितिक्षा), शौच (बाहर-भीतरकी पवित्रता), सत्य भारतवर्षके भीतर प्रतिमा भगवान् विष्णु सदा सन्निहित (मन, वाणी और क्रियाद्वारा सत्यका पालन), मांस न रहते हैं: अतः मुनियों तथा देवताओंने भारतवर्षमें ही तप, खाना, चोरी न करना और किसी भी जीवकी हिंसा न यज्ञ और क्रिया आदिके द्वारा सदा श्रीविष्णुका सेवन
वष्णुका संवन करना-यह सबके लिये धर्मका साधन है।*
_ किया है। इन्द्रद्युमसरोवर, कूर्मस्थान, सिंहाचल,
रातके अन्तमें उठकर विधिपूर्वक आचमन करे। करवीरक, काशी, प्रयाग, सौम्य, शालग्रामार्चन, द्वारका,
फिर गुरुजनोंको नमस्कार करके मन-ही-मन भगवान् नैमिषारण्य, बदरिकाश्रम, कृतशौचतीर्थ, पुण्डरीकतीर्थ,
विष्णुका स्मरण करे। मौन हो पवित्रभावसे भक्तिपूर्वक दण्डकवन, मथुरा, वेङ्कटाचल, श्वेताद्रि, गरुडाचल,
सहस्रनामका पाठ करे। तत्पश्चात् गाँवसे बाहर जाकर काशी, अनन्तशयन, श्रीरङ्ग, भैरवगिरि, नारायणाचल,
विधिपूर्वक मल-मूत्रका त्याग करे। फिर उचित रूपसे वाराहतीर्थ और वामनाश्रम-इन सब स्थानोंमें भगवान् श्रीहरि स्वयं व्यक्त हुए हैं; अतः उपर्युक्त स्थान सम्पूर्ण
शरीरकी शुद्धि करके कुल्ला करे और शुद्ध एवं पवित्र कामनाओं तथा फलोको देनेवाले हैं। इनमें श्रीजनार्दन
हो दन्तधावन करके विधिपूर्वक स्नान करे । तुलसीके स्वयं ही सन्निहित होते हैं। ऐसे ही स्थानोंमें जो भगवान्का
मूलभागकी मिट्टी और तुलसीदल लेकर मूलमन्त्रसे' विग्रह है, उसे मुनिजन 'स्वयं व्यक्त' कहते हैं। महान्
और गायत्रीमन्त्रसे अभिमन्त्रित करके मन्त्रसे ही उसको भगवद्भक्तोंमें श्रेष्ठ पुरुष यदि विधिपूर्वक भगवानकी सम्पूर्ण शरीरमें लगावे। फिर अघमर्षण करके स्रान स्थापना करके मन्त्रके द्वारा उनका सानिध्य प्राप्त करे। गङ्गाजी भगवान्के चरणोंसे प्रकट हुई हैं। अतः करावे तो उस स्थापनाका विशेष महत्त्व है। गाँवोमे उनके निर्मल जलमें गोता लगाकर अघमर्षण-सूक्तका अथवा घरोंमें जो ऐसे विग्रह हो, उनमें भगवानका पूजन जप करे। फिर आचमन करके पुरुषसूक्तके मन्त्रोंसे करना चाहिये । सत्पुरुषोंने घरपर शालग्रामशिलाकी पूजा क्रमशः मार्जन करे। पुनः जलमें डुबकी लगाकर उत्तम बतायी है।
अट्ठाईस या एक सौ आठ बार मूलमन्त्रका जप करे। 1. पार्वती ! भगवान्की मानसिक पूजाका सबके लिये इसके बाद वैष्णव-पुरुष उक्त मन्त्रसे ही जलको समानरूपसे विधान है, अतः अपने-अपने अधिकारके अभिमन्त्रित करके उससे आचमन करे। तदनन्तर अनुसार सबको जगदीश्वरकी पूजा करनी चाहिये। जो देवताओं, ऋषियों और पितरोंका तर्पण करे । फिर वस्त्र भगवान्के सिवा दूसरे किसी देवताके भक्त नहीं है; निचोड़ ले। उसके बाद आचमन करके धौतवस्त्र पहने।
* शमो दमस्तपः शौच सत्यमामिषवर्जनम् । अस्तेयमेवाहिसा च सर्वेषां धर्मसाधनम् ॥ (२८० । ३९) १-ॐ नमो नारायणाय' यह अष्टाक्षर मन्त्र ही मूलमन्त्र है।