Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 966
________________ • अर्जयस्व हृषीकेश यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पद्मपुराण यह देख महाबली नागराज शेष भक्तिवश अपने हजारों उनकी बात सुनकर वे अविनाशी धरणीधर यहाँ कहीं फनोसे भगवानके ऊपर छाया करके पीछे-पीछे चलने मनुष्यरूपमें उत्पन्न हुए हैं। अतः आज इच्छानुसार रूप लगे। उनके चरणोका स्पर्श होते ही नगरद्वारके किवाड़ धारण करनेवाले तुम सभी राक्षस जाओ और जिन खुल गये। वहाँके रक्षक नींदमें बेसुध थे। तीन प्रवाहसे बालकोंमें कुछ बलकी अधिकता जान पड़े, उन्हें बहनेवाली भरी हुई यमुना भी महात्मा वसुदेवजीके बेखटके मार डालो।' ऐसी आज्ञा देकर कसने वसुदेव प्रवेश करनेपर घट गयो। उसमें घुटनेतक ही जल रह और देवकीको आश्वासन दे उन्हें बन्धनसे मुक्त कर दिया गया। यमुनाके पार हो वसुदेवजीने उसके तटपर ही और स्वयं अपने महलमें चला गया। तत्पश्चात् स्थित व्रजमें प्रवेश किया। वसुदेवजी नन्दके उत्तम व्रजम गये। नन्दरायजीने उनका उधर नन्दगोपको पलीके गर्भसे गायोंके व्रजमें ही भलीभाँति स्वागत-सत्कार किया। वहाँ अपने पुत्रको एक कन्या उत्पन्न हुई। किन्तु यशोदा मायासे मोहित एवं देखकर वसुदेवजीको बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने तमोगुणसे आच्छादित हो गाढ़ी नोंदमें सो गयी थी। नन्दरानी यशोदासे कहा- 'देवि ! रोहिणींके पेटसे पैदा वसुदेवजीने उनको शय्यापर भगवान्को सुला दिया और हुए मेरे इस पुत्र (बलराम) को भी तुम अपना ही पुत्र उनकी कन्याको लेकर वे मथुरामें चले आये। वहाँ मानकर इसकी रक्षा करना । यह कंसके डरसे यहाँ लाया पत्रीके हाथमें कन्याको देकर वे निश्चिन्त हो गये। गया है।' दृढ़तापूर्वक उत्तम व्रतका पालन करनेवाली देवकीकी शय्यापर जाते ही वह कन्या बालभावसे रोने नन्दपत्रीने 'बहुत अच्छा' कहकर वसुदेवजीकी आज्ञा लगी। वालकको आवाज सुनकर पहरेदार जाग उठे। शिरोधार्य को और दोनों पुत्रोंको पाकर वे बड़ी प्रसन्नताके उन्होंने कंसको देवकीके प्रसव होनेका समाचार दे दिया। साथ उनका पालन करने लगी। इस प्रकार नन्दगोपके कस तुरंत ही आ पहुँचा और बालिकाको लेकर उसने घर अपने दोनों पुत्रोंको रखकर वसुदेवजी निश्चिन्त हो एक पस्थरपर पटक दिया। किन्तु वह कन्या उसके गये और तुरंत ही मथुरापुरीको चले गये। तदनन्तर हाथसे छूटनेपर तुरंत ही आकाशमें जा खड़ी हुई। वह वसुदेवजीकी प्रेरणासे किसी शुभ दिनको गर्गजी कंसके सिरमें लात मारकर ऊपर गयी और आठ नन्दगोषके व्रजमें गये । वहाँके निवासियोंने उनकी बड़ी भुजावाली देवीके रूपमें दर्शन दे उससे बोली-'ओ आवभगत की। फिर उन्होंने गोकुलमें वसुदेवके दोनों मूर्ख ! मुझे पत्थरपर पटकनेसे क्या हुआ ? जो तुम्हारा पुत्रोंके विधिपूर्वक जातकर्म और नामकरण-संस्कार वध करनेवाले हैं, उनका जन्म तो हो गया । जो सम्पूर्ण कराये। बड़े बालकके नाम उन्होंने सङ्कर्षण, रौहिणेय, जगत्की सृष्टि, पालन तथा संहार करनेवाले हैं, वे बलभद्र, महाबल और राम आदि रखे तथा छोटेके भगवान् इस संसारमें अवतार ले चुके हैं, वे ही तुम्हारे श्रीधर, श्रीकर, श्रीकृष्ण, अनन्त, जगत्पति, वासुदेव और प्राण लेंगे। हषीकेश आदि नाम रखे। 'लोगोंमें ये दोनों बालक इतना कहकर देवीने सहसा अपने तेजसे सम्पूर्ण क्रमशः राम और कृष्णके नामसे विख्यात होंगे। आकाशको आलोकमय कर दिया और वह देवताओं ऐसा कहकर द्विजश्रेष्ठ गर्गने पितरों और देवताओका तथा गन्धर्वोके मुखसे अपनी स्तुति सुनती हुई पूजन किया और स्वयं भी ग्वालोंसे पूजित होकर मथुरामें हिमालयपर्वतपर चली गयी। देवीकी बात सुनकर लौट आये। कसका हृदय उद्विग्न हो उठा। उसने भयसे पीड़ित हो एक दिनकी बात है, बालकोकी हत्या करनेवाली प्रलम्ब आदि दानववीरोंको बुलाकर कहा-'वीरो! पूतना कंसके भेजनेसे रातमें नन्दके घर आयी। उसने हमलोगोंके भयसे समस्त देवताओने क्षीरसागरपर जाकर अपने स्तनों में विष लगा रखा था। अमित तेजस्वी विष्णुसे राक्षसोंके संहारके विषयमें बहुत कुछ कहा है। श्रीकृष्णके मुखमें वही स्तन देकर वह उन्हें दूध पिलाने

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