Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 948
________________ ९४८ • अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण राम धीरे-धीरे बड़े हुए। उपनयन संस्कारके पश्चात् कहा- 'मैं तुम्हें अपनी उत्तम शक्ति प्रदान करता हूँ। उन्होंने सब विद्याओंमें प्रवीणता प्राप्त कर ली। तदनन्तर मेरी शक्तिसे आविष्ट होकर तुम पृथ्वीका भार उतारने विप्रवर राम शालग्राम पर्वतके शिखरपर तपस्या करनेके और देवताओका हित करनेके लिये दुष्ट राजाओंका वध लिये गये। वहाँ उन्हें परमतेजस्वी ब्रह्मर्षि कश्यपजीका करो। इस समय पृथ्वीपर बहुत-से मदोन्मत्त राजा एकत्र दर्शन हुआ। रामने बड़े हर्षके साथ उनका पूजन किया। हो रहे हैं। उन्हें मारकर समुद्रपर्यन्त सारी पृथ्वी अपने तब उन्होंने रामको विधिपूर्वक अविनाशी वैष्णव मन्त्रका अधिकारमें कर लो और महान् पराक्रमसे सम्पन्न हो उपदेश दिया। महात्मा कश्यपसे मन्त्रका उपदेश पाकर धर्मपूर्वक इसका पालन करो। फिर समय आनेपर मेरी राम विधिपूर्वक लक्ष्मीपति श्रीविष्णुकी आराधना करने ही कपासे मेरे परमपदको प्राप्त होओगे। भगवान् लगे। उन्होंने दिन-रात षडक्षर महामन्त्रका जप करते हुए विष्णके अन्तर्धान होनेपर राम भी तुरंत अपने पिताके सर्वव्यापी कमलनयन श्रीहरिके ध्यानपूर्वक अनेक वर्षों- आश्रमको लौट गये। वहाँ जब उन्होंने अपने पिताको तक तपस्या की। महातपस्वी ब्रह्मर्षि जमदनि जितेन्द्रिय मारा गया देखा तो वे क्रोधसे मचित हो गये और इस एवं मौनभावसे तप करते हुए गङ्गाके सुन्दर तटपर पृथ्वीको क्षत्रियविहीन करनेकी इच्छासे हैहयराजके निवास करते थे। उहोंने यज्ञ, दान आदि महान् धर्मोका का नगरमें जा पहुँचे। वहाँ राजाको ललकारकर महायुद्धमे विधिपूर्वक अनुष्ठान किया। इन्द्रकी दी हुई गौके प्रसादसे प्रवृत्त हुए और उसकी सेनाका संहार करके अन्तमें उनके पास सब सम्पत्तियाँ भरी-पूरी रहती थीं। उन्होंने उसको भी मार डाला। एक समयकी बात है-हैहयराज अर्जुन सब इस प्रकार सहस्रबाहु अर्जुनका वध करनेके राष्ट्रोंको जीतकर अपनी सारी सेनाके साथ जमदग्नि अनन्तर प्रतापी परशुरामजीने कुपित होकर सम्पूर्ण मुनिके आश्रमपर आये। राजाने महाभाग मुनिवरका दर्शन करके उन्हें प्रणाम किया, उनकी कुशल पूछी और राजाओंका संहार कर डाला। केवल राजा इक्ष्वाकुके उन्हें भाँति-भांतिके वस्त्र तथा आभूषण दान किये। महान् कुलपर उन्होंने हाथ नहीं उठाया। एक तो वह मुनिने भी अपने घरपर आये हुए राजाका मधुपर्ककी नानाका कुल था, दूसरे माता रेणुकाने इक्ष्वाकुवंशी विधिसे प्रेमपूर्वक सत्कार किया तथा शक्तिशालिनी क्षत्रियोंको मारनेकी मनाही कर दी थी। इसलिये उक्त सुरभि गौके प्रभावसे सेनासहित राजाको उत्तम भोजन वंशकी उन्होंने रक्षा की। दिया। राजाको उस गौकी शक्ति देखकर बड़ा कौतुहल इस प्रकार क्षत्रियोंका संहार करनेके पश्चात् प्रतापी हुआ और उन्होंने महर्षि जमदग्निसे उस गौको माँगा। परशुरामजीने अश्वमेध नामक महायज्ञका विधिवत् जमदग्नि मुनिके अस्वीकार करनेपर हैहयराजने उस अनुष्ठान किया और उसमें श्रेष्ठ ब्राह्मणोंको सात सबला गौको बलपूर्वक ले लिया। तब महाभागा द्वीपोंसहित पृथ्वी दान कर दी। तदनन्तर वे भगवान् नरसबलाने क्रोधमें भरकर अपने सींगोंसे राजाके सब नारायणके आश्रममें तपस्या करनेके लिये चले गये। सैनिकोंको मार डाला। तदनन्तर स्वयं अन्तर्धान होकर पार्वती ! यह मैंने तुमसे परशुरामजीके चरित्रका वर्णन क्षणभरमें इन्द्रके पास जा पहुँची। इधर अपनी सेनाका किया है। वे भगवान् विष्णुकी शक्तिके आवेशावतार थे। विनाश देखकर राजा अर्जुन क्रोधसे पागल हो उठा। इसीलिये शक्तिके आवेशसे उन्होंने जो कुछ किया, उसकी उसने मुक्कोंसे मार-मारकर मुनि जमदग्निका वध कर उपासना नहीं करनी चाहिये । भगवद्भक्त महात्माओं तथा डाला और लौटकर अपने नगरमें प्रवेश किया। श्रेष्ठ ब्राह्मणोंके लिये भगवान् श्रीराम तथा श्रीकृष्णके उधर रामने देवदेवेश्वर भगवान् विष्णुकी आराधना अवतार ही उपासना करनेयोग्य हैं; क्योंकि वे अपने करके उन्हें प्रसन्न किया। भगवान्ने अपने परशु, वैष्णव ईश्वरीय गुणोंसे परिपूर्ण हैं और उपासना करनेपर महाधनुष और अनेक दिव्यास्त्र प्रदान करके उनसे मनुष्योंको मोक्ष प्रदान करनेवाले हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001