Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 957
________________ उत्तरखण्ड] • श्रीरामके वनवाससे लेकर पुनः अयोध्या आनेतकका प्रसङ्ग. होकर विलाप करने लगे। वनमें घूम-घूमकर उन्होंने गये। वहाँ पम्पा सरोवरके तटपर हनुमान् नामक वानरसे सीताकी खोज आरम्भ की। उसी समय मार्गमें महाबली उनकी भेंट हुई। हनुमानजीके कहनेसे उन्होंने सुग्रीवके जटायु पृथ्वीपर पड़े दिखायी दिये। उनके पैर और पंख साथ मित्रता की और सुग्रीवके अनुरोधसे वानरराज कट गये थे तथा सारा अङ्ग लहू-लुहान हो रहा था। बालिको मारकर सुग्रीवको ही उसके राज्यपर अभिषिक्त उनको इस अवस्था देख श्रीरामचन्द्रजीको बड़ा कर दिया। तत्पश्चात् जानकीजीका पता लगानेके लिये विस्मय हुआ। उन्होंने पूछा-'अहो ! किसने तुम्हारा वानरराज सुग्रीवने हनुमान् आदि वानर-वीरोंको भेजा। वध किया है?' पवननन्दन हनुमान्जीने समुद्रको लाँधकर लङ्का नगरीमें जटायुने श्रीरामचन्द्रजीको देखकर धीरे-धीरे प्रवेश किया और दृढ़तापूर्वक पातिव्रत्यका पालन कहा- 'रघुनन्दन ! आपकी पत्नीको महाबली रावणने करनेवाली सीताजीको देखा। वे उपवास करनेके कारण हर लिया है, उसी राक्षसके हाथसे मैं युद्धमें मारा गया दुर्बल, दीन और अत्यन्त शोकग्रस्त थीं। उनके शरीरपर हूँ।' इतना कहकर जटायुने प्राण त्याग दिया। श्रीरामने मैल जम गयी थी तथा वे मलिन वस्त्र पहने हुए थीं। वैदिक विधिसे उनका दाह-संस्कार किया और उन्हें उन्हें श्रीरामचन्द्रजीकी दी हुई पहचान देकर हनुमान्जीने अपना सनातन धाम प्रदान किया; जो योगियोंको ही प्राप्त उनसे भगवान्का समाचार निवेदन किया। फिर होने योग्य है। श्रीरघुनाथजीके प्रसादसे गीधको भी विदेहराजकुमारीको भलीभाँति आश्वासन दे उन्होंने उस परमपदकी प्राप्ति हुई। उन पक्षिराजको श्रीहरिका सारूप्य सुन्दर उद्यानको नष्ट कर डाला। तदनन्तर दरवाजेका मोक्ष मिला । तदनन्तर माल्यवान् पर्वतपर जाकर मातङ्ग खम्भा उखाड़कर उससे हनुमान्जीने वनकी रक्षा करनेमुनिके आश्रमपर वे महाभागा धर्म-परायणा शवरीसे वाले सेवकों, पाँच सेनापतियों, सात मन्त्रिकुमारों तथा मिले। वह भगवद्भक्तोंमें श्रेष्ठ थी। उसने श्रीराम- रावणके एक पुत्रको मार डाला। इसके बाद रावणके लक्ष्मणको आते देख आगे बढ़कर उनका स्वागत किया दूसरे पुत्र मेघनादके द्वारा वे स्वेच्छासे बैंध गये। फिर और प्रणाम करके आश्रममें कुशके आसनपर उन्हें राक्षसराज रावणसे मिलकर हनुमान्जीने उससे वार्तालाप बिठाया। फिर चरण धोकर वनके सुगन्धित फूलोंसे किया और अपनी पूंछमें लगायी हुई आगसे समूची भक्तिपूर्वक उनका पूजन किया। उस समय शबरीका लङ्कापुरीको दग्ध कर डाला । फिर सीताजीके दिये हुए हृदय आनन्दमन हो रहा था। वह दृढ़तापूर्वक उत्तम चिह्नको लेकर वे लौट आये और कमलनयन व्रतका पालन करनेवाली थी। उसने दोनों रघु-कुमारोंको श्रीरामचन्द्रजीसे मिलकर सारा हाल बताते हुए सुगन्धित एवं मधुर फल-मूल निवेदन किये। उन बोले-'मैंने सीताजीका दर्शन किया है।' फलोंको भोग लगाकर भगवान्ने शबरीको मोक्ष प्रदान इसके बाद सुग्रीवसहित श्रीरामचन्द्रजी बहुत-से किया। पम्पा सरोवरकी ओर जाते समय उन्होंने मार्गमें वानरोंके साथ समुद्रके तटपर गये। वहाँ जाकर उन्होंने भयानक रूपधारी कबन्ध नामक राक्षसका वध किया। अपनी सेनाका पड़ाव डाल दिया। रावणके एक छोटे उसको मारकर महापराक्रमी श्रीरामने उसे जला दिया, भाई थे, जो विभीषणके नामसे प्रसिद्ध थे। वे धर्मात्मा, इससे वह स्वर्गलोकमें चला गया। इसके बाद महाबली सत्यप्रतिज्ञ और महान् भगवद्भक्तोंमें श्रेष्ठ थे। श्रीरघुनाथजीने शबरीतीर्थको अपने शार्ङ्गधनुषको कोटिसे श्रीरामचन्द्रजीको आया जान विभीषण अपने बड़े भाई गङ्गा और गयाके समान पवित्र बना दिया। यह महान् रावणको, राज्यको तथा पुत्र और स्त्रीको भी छोड़कर भगवद्भक्तोंका तीर्थ है, इसका जल जिसके उदरमें उनकी शरणमें चले गये। हनुमान्जीके कहनेसे पड़ेगा, उसका शरीर सम्पूर्ण जगत्के लिये वन्दनीय हो श्रीरामचन्द्रजीने विभीषणको अपनाया। और उन्हें जायगा। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।' ___ अभयदान देकर राक्षसोंके राज्यपर अभिषिक्त किया। ऐसा कहकर श्रीरामचन्द्रजी ऋष्यमूक पर्वतपर तत्पश्चात् समुद्रको पार करनेकी इच्छासे श्रीरामचन्द्रजी

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