Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 958
________________ ९५८ स्वहृषीकेश यदीच्छसिप [ संक्षिप्त पयपुराण उसकी शरणमें गये, किन्तु प्रार्थना करनेपर भी उसकी अङ्ग बिंध गये और वह भयभीत होकर रणभूमिसे गति-विधिमें कोई अन्तर होता न देख महाबली श्रीरामने लङ्कामे भाग गया। उसे सारा संसार श्रीराममय दिखायी शार्ङ्गधनुष हाथमें लिया और बाणसमूहोंकी वर्षा करके देता था; अतः वह खिन्न होकर घरमें घुस गया । इसके समुद्रको सुखा दिया। तब सरिताओंके स्वामी समुद्रने याद हनुमानजी श्रेष्ठ ओषधियोंसे युक्त महान् पर्वत उठा करुणासागर भगवान्को शरणमें जा उनका विधिवत् ले आये। इससे लक्ष्मणजीको तुरंत ही चेत हो गया। पूजन किया। इससे श्रीरघुनाथजीने वारुणास्त्रका प्रयोग उधर रावणने विजयकी इच्छासे होम करना आरम्भ करके पुनः सागरको जलसे भर दिया। फिर समुद्रके ही किया; किन्तु बड़े-बड़े वानरोंने जाकर शत्रुके उस कहनेसे उन्होंने उसपर वानरोंके लाये हुए पर्वतोंके द्वारा अभिचारात्मक यज्ञका विध्वंस कर दिया। तब रावण पुल बैंधवाया। उसीसे सेनासहित लङ्कापुरीमें जाकर पुनः श्रीरामचन्द्रजीसे युद्ध करनेके लिये निकला। उस अपनी बहुत बड़ी सेनाको ठहराया । उसके बाद वानरों समय वह दिव्य रथपर बैठा था और यहुत-से राक्षस और राक्षसोंमें सूब युद्ध हुआ। उसके साथ थे। यह देख इन्द्रने भी अपने दिव्य अधोसे तदनन्तर रावणके पुत्र महाबली इन्द्रजित् नामक जुते हुए सारथिसहित दिव्य रथको श्रीरामचन्द्रजीके लिये राक्षसने नागपाशसे श्रीराम और लक्ष्मण दोनों भाइयोंको भेजा। मातलिके लाये हुए उस रथपर बैठकर बाँध लिया। उस समय गरुड़ने आकर उन्हें उन अस्त्रोके श्रीरघुनाथजी देवताओंके मुखसे अपनी स्तुति सुनते हुए बन्धनसे मुक्त किया। महाबली वानरोंके द्वारा बहुत-से राक्षसके साथ युद्ध करने लगे। तदनन्तर श्रीराम और राक्षस मारे गये। रावणका छोटा भाई कुम्भकर्ण बड़ा रावणमें भयंकर शस्त्रास्त्रोद्वारा सात दिन और सात बलवान् वीर था । उसको श्रीरामने युद्ध में अग्निशिखाके रातोंतक घोर युद्ध हुआ। सब देवता विमानोंपर बैठकर समान तेजस्वी बाणोंसे मौतके घाट उतार दिया। तब उस महायुद्धको देख रहे थे। इन्द्रजित्को बड़ा क्रोध हुआ और उसने ब्रहास्त्रके द्वारा रघुकुलश्रेष्ठ श्रीरामचन्द्रजीने अनेको बार रावणके वानरोको मार गिराया। उस समय हनुमानजी श्रेष्ठ मस्तक काटे, किन्तु मेरे (महादेवजीके) वरदानसे उसके ओषधियोंसे युक्त पर्वतको उठा ले आये। उसको छूकर फिर नये-नये मस्तक निकल आते थे। तब श्रीरघुनाथजीने बहनेवाली वायुके स्पर्शसे सभी वानर जी उठे। तब परम उस दुरात्माका वध करनेके लिये महाभयंकर और उदार लक्ष्मणने अपने तीखे बाणोंसे जैसे इन्द्रने कालानिके समान तेजस्वी ब्रह्मास्त्रका प्रयोग किया। वृत्रासुरको मारा था, उसी प्रकार इन्द्रजित्को मार श्रीरामचन्द्रजीका छोड़ा हुआ वह अस्त्र रावणको छाती गिराया। अब स्वयं रावण ही संग्राममें श्रीरामचन्द्रजीके छेदकर घरतीको चीरता हुआ रसातलमें चला गया। साथ युद्ध करने के लिये निकला । उसके साथ चतुरङ्गिणी वहाँ सर्पोने उस बाणका पूजन किया। वह महाराक्षस सेना और महाबली मन्त्री भी थे। फिर तो वानरों और प्राणहीन होकर पृथ्वीपर गिरा और मर गया। इससे राक्षसोम तथा लक्ष्मणसहित श्रीराम और रावणमें भयङ्कर सम्पूर्ण देवताओंका हृदय हर्षसे भर गया। वे सम्पूर्ण युद्ध छिड़ गया। उस समय राक्षसराज रावणने शक्तिका जगत्के गुरु महात्मा श्रीरामपर फूलोंकी वर्षा करने लगे। प्रहार करके लक्ष्मणको रणभूमिमें गिरा दिया। इससे गन्धर्वराज गाने और अप्सराएँ नाचने लगीं। पवित्र वायु महातेजस्वी रघुनाथजी, जो राक्षसोंके काल थे, कुपित हो चलने लगी और सूर्यकी प्रभा स्वच्छ हो गयी। मुनि, उठे और काल एवं मृत्युके समान तीखे बाणोंसे सिद्ध, देवता, गन्धर्व और किन्नर भगवान्की स्तुति करने राक्षस-वीरोंका संहार करने लगे। उन्होंने कालदण्डके लगे। श्रीरघुनाथजीने लङ्काके राज्यपर विभीषणको समान सहस्रों तेजस्वी बाण मारकर राक्षसराज रावणको अभिषिक्त करके अपनेको कृतार्थ-सा माना और इस ढक दिया। श्रीरघुनाथजीके बाणोंसे उस निशाचरके सारे प्रकार कहा-'विभीषण ! जबतक सूर्य, चन्द्रमा और

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