Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 947
________________ .परशरामावतारकी कथा निर्मल जल मेरुपर्वतके शिखरपर गिरा और जगतको कल्याणमयी वैष्णवी गङ्गाका जल उन दोनों महानुभावोंक पवित्र करनेके लिये चारों दिशाओमे बह चला । वे चारो लिये प्रसन्नतापूर्वक दान किया। महर्षि गौतम जिस धाराएँ क्रमशः सीता, अलकनन्दा, चक्षु और भद्राके गङ्गाको ले गये, वे गौतमी (गोदावरी) कही गयी हैं नामसे प्रसिद्ध हुई। मेरुके दक्षिण ओर जो धारा चली, और राजा भगीरथने जिनको भूमिपर उतारा, वे भागीरथी उसका नाम अलकनन्दा हुआ। वह तीन धाराओमे गङ्गाके नामसे प्रसिद्ध हुई। यह मैंने प्रसङ्गवश तुमसे विभक्त होनेके कारण त्रिपथगा और त्रिस्नोता कहलायी। गङ्गाजीके प्रादुर्भावकी उत्तम कथा सुनायी है। तदनन्तर वह लोकपावनी गङ्गा तीन नामोंसे प्रसिद्ध हुई। ऊपर- भक्तवत्सल भगवान् नारायणने दैत्यराज बलिको स्वर्गलोकमें मन्दाकिनी, नीचे-पाताललोकमें भोगवती रसातलका उत्तम लोक प्रदान किया और उन्हें सब तथा मध्य अर्थात् मर्त्यलोकमें वेगवती गङ्गा कहलाने दानवों, नागों तथा जल-जन्तुओंका कल्पभरके लिये लगी। ये गङ्गा मनुष्योंको पवित्र करनेके लिये प्रकट हुई राजा बना दिया। इस प्रकार कश्यपनन्दन वामनका वेष है। इनका स्वरूप कल्याणमय है। पार्वती ! जब गङ्गा धारण करके अविनाशी भगवान् विष्णुने बलिसे तीनों मेरुपर्वतसे नीचे गिर रही थीं, उस समय मैंने अपनेको लोक लेकर उन्हें प्रसन्नतापूर्वक इन्द्रको दे दिया। तब पवित्र करनेके लिये उन्हें मस्तकपर धारण कर लिया। जो देवता, गन्धर्व तथा परम तेजस्वी ऋषियोंने दिव्य स्तोत्रोंसे श्रीविष्णुचरणोसे निकली हुई गङ्गाका पावन जल अपने भगवान्का स्तवन और पूजन किया। तत्पश्चात् अपना मस्तकपर धारण करेगा अथवा उनके जलका पान करेगा, विराट रूप समेटकर भगवान् अच्युत वहीं अन्तर्धान हो वह निःसन्देह सम्पूर्ण जगत्का पूज्य होगा। गये। इस तरह प्रभावशाली श्रीविष्णुने इन्द्रकी रक्षा की । तदनन्तर राजा भगीरथ और महातपस्वी गौतमने और इन्द्रने उनकी कृपासे तीनों लोकोंका महान् ऐश्वर्य तपस्याके द्वारा मेरी पूजा करके गङ्गाजीके लिये मुझसे प्राप्त किया। शुभे! यह मैंने तुमसे वामन अवतारके याचना की। तब मैंने सम्पूर्ण विश्वका हित करनेके लिये वैभवका वर्णन किया है। - परशुरामावतारकी कथा श्रीमहादेवजी कहते हैं-पार्वती ! भृगुवंशमें रेणुककी सुन्दरी कन्या रेणुकाके साथ विधिपूर्वक विवाह द्विजवर जमदग्नि अच्छे महात्मा हो गये हैं। वे सम्पूर्ण किया। तत्पश्चात् परम धार्मिक जमदग्निने पुत्रको वेद-वेदाङ्गोंके पारगामी विद्वान् और महान् तपस्वी थे। कामनासे पुत्रेष्टि नामक यज्ञ किया और उस यज्ञके द्वारा धर्मात्मा जमदग्निने इन्द्रको प्रसन्न करनेके लिये गङ्गाके देवराज इन्द्रको सन्तुष्ट किया । सन्तुष्ट होनेपर शचीपति किनारे एक हजार वर्षातक भारी तपस्या की। इससे इन्द्रने जमदग्निको एक महावाहु, महातेजस्वी और प्रसन्न होकर देवराज इन्द्रने कहा-'विप्रवर ! तुम्हारे महाबलवान् पुत्र होनेका वरदान दिया। समय आनेपर मनमें जैसी इच्छा हो, उसके अनुसार वर मांगो। विप्रवर जमदग्निने रेणुकाके गर्भसे एक महापराक्रमी और जमदग्नि बोले-देव! मुझे सदा सब बलवान् पुत्र उत्पत्र किया, जो भगवान् विष्णुके अंशके कामनाओंको पूर्ण करनेवाली सुरभि गौ प्रदान कीजिये। अंशसे प्रकट हुआ था। उसमें सब प्रकारके शुभ लक्षण तब देवराज इन्द्रने प्रसत्रतापूर्वक उन्हें सब मौजूद थे। पितामह भृगुने आकर उस महापराक्रमी कामनाओंको पूर्ण करनेवाली सुरभि गौ प्रदान की। पुत्रका नामकरण-संस्कार किया और बड़ी प्रसन्नताके सुरभिको पाकर महातपस्वी जमदग्नि दूसरे इन्द्रको भांति साथ उसका नाम 'राम' रखा। जमदग्निका पुत्र होनेके महान् ऐश्वर्यसे सम्पन्न होकर रहने लगे। उन्होंने राजा कारण वह जामदग्न्य भी कहलाया। भार्गववंशी बालक संध्या ३१

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