Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 934
________________ • अर्चयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [संक्षिप्त पयपुराण rrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrr r..... ........................ .... . . ....... .. ऊँचे-ऊँचे महल उसकी शोभा बढ़ाते हैं। वह नगर तरुण सुवर्णमय पीठ है, जिसे आधारशक्ति आदिने धारण कर अवस्थावाले दिव्य स्त्री-पुरुषोंसे सुशोभित है। वहाँकी रखा है तथा जो भांति-भांतिके रत्नोंका बना हुआ एवं स्त्रियाँ और पुरुष समस्त शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न दिखायौ अलौकिक है। उसमें अनेकों रंग जान पड़ते हैं। पीठपर देते हैं। स्त्रियोंका रूप भगवती लक्ष्मीके समान होता है अष्टदल कमल है, जिसपर मन्त्रोंके अक्षर और पद और पुरुषोंका भगवान् विष्णुके समान । वे सब प्रकार अङ्कित है। उसकी सुरम्य कर्णिकामें लक्ष्मी-बीजका शुभ आभूषणोंसे विभूषित होते हैं तथा भक्तिजनित मनोरम अक्षर अङ्कित है। उसमें कमलके आसनपर दिव्यविग्रह आहादसे सदा आनन्दमन रहते हैं। उनका भगवान् भगवान् श्रीनारायण विराजमान है, जो अरबों-खरबों विष्णुके साथ अविच्छिन सम्बन्ध बना रहता है। वे सदा बालसूर्योके समान कान्ति धारण करते हैं। उनके दाहिने उनके समान ही सुख भोगते हैं। जहाँ कहींसे भी श्रीहरिके पार्श्वमें सुवर्णके समान कान्तिमती जगन्माता श्रीलक्ष्मी लोकमें प्रविष्ट हुए शुद्ध अन्तःकरणवाले मानव फिर विराजती हैं, जो समस्त शुध-लक्षणोंसे सम्पत्र और संसारमें जन्म नहीं लेते। मनीषी पुरुष भगवान् विष्णुके दिव्य मालाओंसे सुशोभित है। उनके हाथोंमें सुवर्णपात्र, दास-भावको ही मोक्ष कहते हैं। उनकी दासताका नाम मातुलुङ्ग और सुवर्णमय कमल शोभा पाते हैं। बन्धन नहीं है। भगवान्के भक्त तो सब प्रकारके बन्धनोंसे भगवान्के वामभागमें भूदेवी विराजमान हैं, जिनकी मुक्त और रोग-शोकसे रहित होते हैं। ब्रह्मलोकतकके कान्ति नील कमल-दलके समान श्याम है। वे नाना प्राणी पुनः संसारमें आकर जन्म लेते, कोंक बन्धनमें प्रकारके आभूषणों और विचित्र वस्त्रोंसे विभूषित है। पड़ते और दुःखी तथा भयभीत होते हैं। पार्वती ! उन उनके ऊपरके हाथोंमें दो लाल कमल हैं और नीचेके दो लोकोंमें जो फल मिलता है, वह बड़ा आयाससाध्य होता हाथोंमें उन्होंने दो धान्यपात्र धारण कर रखे हैं। विमला है। वहाँका सुख-भोग विषमिश्रित मधुर अन्नके समान आदि शक्तियाँ दिव्य चैवर लेकर कमलके आठों दलोंमें है। जब पुण्यकर्मीका क्षय हो जाता है, तब मनुष्योंको स्थित हो भगवान्की सेवा करती हैं। वे सभी समस्त स्वर्गमें स्थित देख देवता कुपित हो उठते हैं और उसे शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न है। भगवान् श्रीहरि उन सबके संसारके कर्मबन्धनमें डाल देते हैं; इसलिये स्वर्गका सुख बीचमें विराजते हैं। उनके हाथोंमें शङ्ख, चक्र, गदा और बड़े फेशसे सिद्ध होता है। वह अनित्य, कुटिल और पद्म शोभा पाते हैं। भगवान् केयूर, अङ्गद और हार दुःखमिश्रित होता है; इसलिये योगी पुरुष उसका परित्याग आदि दिव्य आभूषणोंसे विभूषित है। उनके कानोंमें कर दे। भगवान् विष्णु सब दुःखोकी राशिका नाश उदयकालीन सूर्यके समान तेजोमय कुण्डल झिलमिला करनेवाले हैं; अतः सदा उनका स्मरण करना चाहिये। रहे हैं। पूर्वोक्त देवता उन परमेश्वरकी सेवामें सदा भगवानका नाम लेनेमात्रसे मनुष्य परमपदको प्राप्त होते संलग्न रहते हैं। इस प्रकार नित्य वैकुण्ठधाममें भगवान् हैं। इसलिये पार्वती ! विद्वान् पुरुष सदा भगवान् विष्णुके सब भोगोंसे सम्पन्न हो नित्य विराजमान रहते है। वह लोकको पानेकी इच्छा करे। भगवान् दयाके सागर हैं; परम रमणीय लोक अष्टाक्षर-मन्त्रका जप करनेवाले अतः अनन्य भक्तिके साथ उनका भजन करना चाहिये। सिद्ध मनीषी पुरुषों तथा श्रीविष्णु भक्तोंको प्राप्त वे सर्वज्ञ और गुणवान् हैं। निःसन्देह सबकी रक्षा करते होता है। पार्वती ! इस प्रकार मैंने तुमसे प्रथम व्यूहका हैं। जो परम कल्याणकारक और सुखमय अष्टाक्षर वर्णन किया। मन्त्रका जप करता है, वह सब कामनाओंको पूर्ण इसी प्रकार वैष्णवलोक, श्वेतद्वीप और क्षीरसागरकरनेवाले वैकुण्ठधामको प्राप्त होता है। निवासी द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ व्यूहका वर्णन करके वहाँ भगवान् श्रीहरि सहस्रों सूर्योकी किरणोंसे श्रीशिवजीने कहा-'पार्वती ! अब और क्या सुनना सुशोभित दिव्य विमानपर विराजमान रहते हैं। उस चाहती हो? देवि ! भगवान् पुरुषोत्तममें तुम्हारी भक्ति विमानमें मणियोंके खंभे शोभा पाते हैं। उसमें एक है। इसलिये तुम धन्य और कृतार्थ हो।

Loading...

Page Navigation
1 ... 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001