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उत्तरखण्ड ]
. पतिव्रता स्त्रियोंके लक्षण एवं सदाचारका वर्णन .
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करनेवाला पुरुष ब्रह्मस्वरूप हो जाता है। ऊपर जो वेदोक्त सदाचारसे युक्त यह गृहस्थ-आश्रमका लक्षण कुछ बतलाया गया, वह सारा कर्म गृहस्थको प्रतिदिन मैंने तुम्हे संक्षेपसे बताया है। अब पतिव्रताओंके करना चाहिये। यही गृहस्थाश्रमका लक्षण है। सम्पूर्ण लक्षण सुनो।
पतिव्रता स्त्रियोंके लक्षण एवं सदाचारका वर्णन
वसिष्ठजी कहते है-राजन् ! मैं सतियोंके उतम परपुरुषकी भी कभी इच्छा नहीं करती, उसे महासती व्रतका वर्णन करता हूँ, सुनो । पति कुरूप हो या दुराचारी, जानना चाहिये। पराया पुरुष देवता, मनुष्य अथवा अच्छे स्वभावका हो या बुरे स्वभावका, रोगी, पिशाच, गन्धर्व कोई भी क्यों न हो, वह सती स्त्रियोंको प्रिय नहीं क्रोधी, बूढ़ा, चालाक, अंधा, बहरा, भयंकर स्वभावका, होता। पत्नीको कभी भी ऐसा कार्य नहीं करना चाहिये, दखि, कंजूस, घृणित, कायर, धूर्त अथवा परस्त्रीलम्पट जो पतिको अप्रिय जान पड़े। जो पतिके भोजन कर हो क्यों न हो, सती-साध्वी स्त्रीके लिये वाणी, शरीर और लेनेपर भोजन करती, उनके दुःखी होनेपर दुःखित होती, क्रियाद्वारा देवताकी भांति पूजनीय है। स्त्रीको कभी पतिके आनन्दमें ही आनन्द मानती, उनके परदेश चले किसी प्रकार भी अपने स्वामीके साथ अनुचित बर्ताव जानेपर मलिन वस्त्र धारण करती, पतिके सो जानेपर नहीं करना चाहिये । स्त्री बालिका हो या युवती अथवा सोती और पहले ही जग जाती, पतिकी मृत्यु हो जानेपर वृद्धा ही क्यों न हो, उसे अपने घरपर भी कोई काम उनके शरीरके साथ ही चितामें जल जाती और दूसरे स्वतन्त्रतासे नहीं करना चाहिये। अहंकार और पुरुषको कभी भी अपने मनमें स्थान नहीं देती, उस काम-क्रोधका सदा ही परित्याग करके केवल अपने स्त्रीको पतिव्रता जानना चाहिये। पतिका ही मनोरञ्जन करना उचित है, दूसरे पुरुषका पतिव्रता स्त्रीको अपने सास-ससुर तथा पतिमें नहीं। परपुरुषोंके कामभावसे देखनेपर, प्रिय लगनेवाले विशेष भक्ति रखनी चाहिये; वह धर्मके कार्यमें सदा वचनोंद्वारा प्रलोभनमें डालनेपर अथवा जनसमूहमें पतिके अनुकूल रहे, धन खर्च करने में संयमसे काम ले, दूसरोके शरीरसे छू जानेपर भी जिसके मनमें कोई विकार सम्भोगकालमें संकोच न रखे और अपने शरीरको सदा नहीं होता तथा जो परपुरुषद्वारा धनका लोभ दिखाकर पवित्र बनाये रखे। पतिकी मङ्गल-कामना करे, उनसे लुभायी जानेपर भी मन, वाणी, शरीर और क्रियासे कभी सदा प्रिय वचन बोले, माङ्गलिक कार्यमें संलग्न रहे, पराये पुरुषका सेवन नहीं करती, वही सती है। वह घरको सजाती रहे और घरकी प्रत्येक वस्तुको प्रतिदिन सम्पूर्ण लोकोंकी शोभा है। सती स्त्री दूतके मुखसे साफ-सुथरी रखनेकी चेष्टा करे। खेतसे, वनसे अथवा प्रार्थना करनेपर, बलपूर्वक पकड़ी जानेपर भी दूसरे गाँवसे लौटकर जब पतिदेव घरपर आवे तो उठकर पुरुषका सेवन नहीं करती। जो पराये पुरुषोंके देखनेपर उनका स्वागत करे। आसन और जल देकर अभिनन्दन भी स्वयं उनकी ओर नहीं देखती, हँसनेपर भी नहीं करे। वर्तन और अत्र साफ रखे। समयपर भोजन हंसती तथा औरोंके बोलनेपर भी स्वयं उनसे नहीं बनाकर दे। संयमसे रहे। अनाजको छिपाकर रखे। बोलती, वह उत्तम लक्षणोंवाली स्त्री साध्वी- पतिव्रता घरको झाड़-बुहारकर स्वच्छ बनाये रखे। गुरुजन, पुत्र, है। रूप और यौवनसे सम्पन्न तथा संगीतकी कलामें मित्र, भाई-बन्धु, काम करनेवाले सेवक, अपने निपुण सती-साध्वी स्त्री अपने-ही-जैसे योग्य पुरुषको आश्रयमें रहनेवाले भृत्य, दास-दासी, अतिथिदेखकर भी कभी मनमें विकार नहीं लाती। जो सुन्दर, अभ्यागत, संन्यासी तथा ब्रह्मचारी लोगोंको आसन और तरुण, रमणीय और कामिनियोंको प्रिय लगनेवाले भोजन देने, सम्मान करने और प्रिय वचन बोलनेमे तत्पर