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अर्चयस्य इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
नमस्कार है, विशुद्ध सत्त्वमय महाहंसस्वरूप श्रीविष्णुका हम ध्यान करते हैं; अतः श्रीविष्णु देवता हमें सत्कार्यमें प्रेरित करें ।। ११८ ॥
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[ संक्षिप्त पद्मपुराण
श्रेष्ठ, नित्य-शुद्ध
परमात्मा ३ परमात्मा परम बुद्धमुक्तस्वभाव, ४ परात्परः पर अर्थात् प्रकृतिसे भी परे विराजमान परमात्मा ।। १२३ ।।
ह्रीं कृष्णाय विग्रहे, ह्रीं रामाय धीमहि, तन्नो देवः परं धाम परं ज्योतिः परं तत्त्वं परं पदम् । परः शिवः परो ध्येयः परं ज्ञानं परा गतिः ॥ १२४ ॥
प्रचोदयात् ॥ ११९ ॥
'ह्रीं' रूप श्रीकृष्णतत्त्वको समझनेके लिये हम ज्ञान प्राप्त करते हैं; 'ह्रीं' रूप श्रीरामका हम ध्यान करते हैं: वे देव श्रीरघुनाथजी हमें प्रेरित करें ॥ ११९ ॥
विष्णुः प्रचोदयात् ॥ १२० ॥
५ परं धाम - सर्वोत्तम वैकुण्ठधाम, निर्गुण परमात्मा, ६ परं ज्योतिः - सूर्य आदि ज्योतियोंको भी प्रकाशित करनेवाले सर्वोत्कृष्ट ज्योतिःस्वरूप, ७ परं शं नृसिंहाय विग्रहे, श्रीकण्ठाय धीमहि, तत्रो तत्त्वम्— परम तत्त्व उपनिषदोंसे जाननेयोग्य सर्वोत्तम रहस्य ८ परं पदम् — प्राप्त करनेयोग्य सर्वोत्कृष्ट पद, मोक्षस्वरूप, ९ परः शिवः - परम कल्याणरूप, १० परो ध्येयः- -ध्यान करनेयोग्य सर्वोत्तम देव, चिन्तनके सर्वश्रेष्ठ आश्रय, ११ परं ज्ञानम् - भ्रान्तिशून्य उत्कृष्ट बोधस्वरूप परमात्मा, १२ परा गतिः - सर्वोत्तम गति
शम् – कल्याणमय भगवान् नृसिंहका तत्त्व जाननेके लिये हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, श्रीकण्ठका ध्यान करते हैं; वे श्रीनृसिंहरूप भगवान् विष्णु हमें प्रेरित करें ॥ १२० ॥
ॐ वासुदेवाय विराहे, देवकीसुताय धीमहि, मोक्षस्वरूप ॥ १२४ ॥ तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥ १२१ ॥
ॐकाररूप श्रीवासुदेवका तत्त्व जाननेके लिये हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, श्रीदेवकीनन्दन श्रीकृष्णका हम ध्यान करते हैं, वे श्रीकृष्ण हमें प्रेरित करें ॥ १२१ ॥
ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं ह्रः क्रीं कृष्णाय गोविन्दाय गोपीजनवल्लभाय नमः स्वाहा ॥ १२२ ॥
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ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रीं ह्रः क्लीं – सच्चिदानन्दस्वरूप, गोपीजनोंके प्रियतम भगवान् गोविन्दको नमस्कार है; हम उनकी तृप्तिके लिये उत्तम रीतिसे हवन करते हैं— अपना सब कुछ अर्पण करते हैं ।॥ १२२ ॥ इति मन्त्र समुच्चार्य यजेद् वा विष्णुमव्ययम् । श्रीनिवासं जगन्नाथं ततः स्तोत्रं पठेत् सुधीः । ॐ वासुदेवः परं ब्रह्म परमात्मा परात्परः ।। १२३ ।। - उपर्युक्त मन्त्रोंका उच्चारण करके लक्ष्मीके निवासस्थान और संसारके स्वामी अविनाशी भगवान् श्रीविष्णुका पूजन करे; इसके बाद विद्वान् पुरुष सहस्रनामस्तोत्रका पाठ करे। ॐ सच्चिदानन्दस्वरूप, १ वासुदेवः - सम्पूर्ण प्राणियोंको अपनेमें बसानेवाले तथा समस्त भूतोंमें सर्वात्मारूपसे बसनेवाले, चतुर्व्यूहमें वासुदेवस्वरूप, २ परं ब्रह्म- सर्वोत्कृष्ट ब्रह्म - निर्गुण और आसक्तिरूपी मलसे
परमार्थः परश्रेष्ठः परानन्दः परोदयः । परोऽव्यक्तात्परं व्योम परमर्द्धिः परेश्वरः ॥ १२५ ॥
१३ परमार्थः - मोक्षरूप परम पुरुषार्थ, परम सत्य १४ परश्रेष्ठः श्रेष्ठसे भी श्रेष्ठ, १५ परानन्दः - परम आनन्दमय, असीम आनन्दकी निधि, १६ परोदयः – सर्वाधिक अभ्युदयशाली, १७ अव्यक्तात्परः -अव्यक्तपदवाच्य मूलप्रकृतिसे परे, १८ परं व्योम - नित्य एवं अनन्त आकाशस्वरूप निर्गुण परमात्मा १९ परमर्द्धिः - सर्वोत्तम ऐश्वर्य से सम्पन्न, २० परेश्वरः - पर अर्थात् ब्रह्मादि देवताओंके भी ईश्वर ॥ १२५ ॥
निरामयो निर्विकारो निर्विकल्पो निराश्रयः । निरञ्जनो निरालम्बो निर्लेपो निरवग्रहः ।। १२६ ।।
२१ निरामयः - रोग-शोकसे रहित, २२ निर्विकारः - उत्पत्तिः, सत्ता, वृद्धि, विपरिणाम, अपक्षय और विनाश- इन छः विकारोंसे शून्य, २३ निर्विकल्पः – सन्देहरहित, संकल्पशून्य, २४ निराश्रयः - स्वयं ही सबके आश्रय होनेके कारण अन्य किसी आश्रयसे रहित २५ निरञ्जन:- वासना शून्य, तमोगुणरहित,