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उत्तरखण्ड ]
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• नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन •
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तथा भगवान् विष्णु सर्वयज्ञमय हैं। * यह सब मैंने सम्पूर्ण विश्वका सर्वस्वभूत सार तत्त्व बतलाया है। पार्वती बोलीं- जगत्पते! आज मैं धन्य हो गयी। आपने मुझपर बड़ा अनुग्रह किया। मैं कृतार्थ हो गयी, क्योंकि आपके मुखसे यह परम दुर्लभ एवं गोपनीय स्तोत्र मुझे सुननेको मिला है। देवेश! मुझे तो संसारकी अवस्था देखकर आश्चर्य होता है हाय! कितने महान् कष्टको बात है कि सम्पूर्ण सुखोंके दाता श्रीहरिके विद्यमान रहते हुए भी मूर्ख मनुष्य संसारमें क्लेश उठा रहे हैं। भला, लक्ष्मीके प्रियतम भगवान् मधुसूदनसे बढ़कर दूसरा कौन देवता है। आप जैसे योगीश्वर भी जिनके तत्त्वका निरन्तर चिन्तन करते रहते हैं, उन श्रीपुरुषोत्तमसे बड़ा दूसरा कौन-सा पद है। उनको जाने बिना ही अपनेको ज्ञानी माननेवाले मूक मनुष्य दूसरे किस देवताकी आराधना करते हैं। अहो ! सर्वेश्वर भगवान् विष्णु सम्पूर्ण श्रेष्ठ देवताओंसे भी उत्तम हैं। स्वामिन्! जो आपके भी आदिगुरु हैं, उन्हें मूढ़ मनुष्य सामान्य दृष्टिसे देखते हैं; किन्तु प्रभो ! सर्वेश्वर ! यदि मैं अर्थ कामादिमें आसक्त होने या केवल आपमें ही मन लगाये रहने के कारण अथवा प्रमादवश ही समूचे सहस्रनामस्तोत्रका पाठ न कर सकूँ, तो उस अवस्थामें जिस किसी भी एक नामसे मुझे सम्पूर्ण सहस्रनामका फल प्राप्त हो जाय, उसे बतानेकी कृपा कीजिये । महादेवजी बोले- सुमुखि ! मैं तो 'राम राम! राम! इस प्रकार जप करते हुए परम मनोहर
श्रीरामनाममें ही निरन्तर रमण किया करता हूँ। रामनाम सम्पूर्ण सहस्रनामके समान हैं। ॐ पार्वती ! यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र भी प्रतिदिन विशेषरूपसे इस श्रीविष्णुसहस्रनामका पाठ करें तो वे धन-धान्यसे युक्त होकर भगवान् विष्णुके परमपदको प्राप्त होते हैं। $ देवि! जो लोग पूर्वोक्त अङ्गन्याससे युक्त श्रीविष्णुसहस्त्रनामका पाठ करते हैं, वे श्रेष्ठ पुरुष अविनाशी पदको प्राप्त होते हैं। सुमुखि ! बार-बार बहुत कहनेसे क्या लाभ थोड़ेमें इतना ही जान लो कि भगवान् विष्णुका सहस्रनाम परम मोक्ष प्रदान करनेवाला है। इसके पाठमें उतावली नहीं करनी चाहिये । यदि उतावली की जाती है, तो आयु और धनका नाश होता है। इस पृथ्वीपर जम्बूद्वीपके अंदर जितने भी तीर्थ हैं, वे सब सदा वहीं निवास करते हैं, जहाँ श्रीविष्णुसहस्रनामका पाठ होता है। जहाँ श्रीविष्णुसहस्रनामकी स्थिति होती है, वहीं गङ्गा, यमुना, कृष्णवेणी, गोदावरी, सरस्वती और समस्त तीर्थ निवास करते हैं। यह परम पवित्र स्तोत्र भक्तोंको सदा प्रिय है। भक्तिभावसे भावित चित्तके द्वारा सदा ही इस स्तोत्रका चिन्तन करना चाहिये। जो मनीषी पुरुष परम उत्तम श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका पाठ करते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त होकर श्रीहरिके समीप जाते हैं। जो लोग सूर्योदयके समय इसका पाठ और जप करते हैं, उनके बल, आयु और लक्ष्मीकी प्रतिदिन वृद्धि होती है। एक-एक नामका उच्चारण करके श्रीहरिको तुलसीदल अर्पण करनेसे जो पूजा सम्पन्न होती
* नास्ति विष्णोः परं धाम नास्ति विष्णोः परं तपः । नास्ति विष्णोः परो धर्मो नास्ति मन्त्रो हावैष्णवः ॥ नास्ति विष्णोः परं सत्यं नास्ति विष्णोः परो जपः नास्ति विष्णोः परं ध्यानं नास्ति विष्णोः परा गतिः ॥ किं तस्य बहुभिर्मन्त्रैः शास्त्रैः किं बहुविस्तरैः । वाजपेयसहस्रैर्वा भक्तिर्यस्य जनार्दने ॥ सर्वतीर्थमयो विष्णुः सर्वशास्त्रमयः प्रभुः । सर्वक्रतुमयो विष्णुः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥ ( ७२ । ३१३ – ३१६) अहो यत महत्कष्टं समस्तसुखदे हरौ विद्यमानेऽपि देवेश मूढाः क्लिश्यन्ति संसृतौ ॥ ( ७२ । ३१८)
कामाद्यासक्तचित्तत्वात्किन्तु सर्वेश्वर
प्रभो। त्वन्मयत्वात्प्रमादाद्वा शक्रोमि पठितुं न चेत् ॥ विष्णोः सहस्त्रनामैतत्प्रत्यहं वृषभध्वज। नामैकेन तु येन स्वात्तत्फलं ब्रूहि मे ॐ राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्ये $ ब्राह्मणा वा क्षत्रिया या वैश्या या गिरिकन्यके। शूद्रा वाथ विशेषेण धनधान्यसमायुक्ता यान्ति विष्णोः परं पदम् ।
संप०पु० २४
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प्रभो ।। ७२ । ३३३-३३४) वरानने ।। ७२ । ३३५)
रामनाम
पठन्त्यनुदिनं यदि ॥
(७३|१-३)