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• अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
श्रीमहादेवजीने भगवान् विष्णुकी आराधना करके भक्तराजकी पदवी पायी है। हेरम्ब नामक एक धर्मात्मा ब्राह्मण बड़े शिवभक्त थे। वे शिवतीर्थों में घूमते हुए यहाँ शिवकाशी में आये और यहीं उनके प्राण छूटे। वे भगवान् शिवजीके लोकमें जाकर पश्चात् वैकुण्ठको प्राप्त हुए। इसके सिवा इन्द्रप्रस्थमें कपिलाश्रम, केदार और प्रभास आदि और भी बहुत-से तीर्थ हैं। उनका भी बड़ा माहात्म्य है।
सौभरि कहते हैं- - राजा शिविसे यों कहकर मुनिश्रेष्ठ नारदजी भगवान् के गुणोंका गान करते हुए वहाँसे चले गये । राजा शिखिने मुनिके मुखसे इन्द्रप्रस्थका यह वैभव सुनकर अपनेको कृतार्थ माना और विधिपूर्वक स्नान करके अपनी धार्मिक क्रियाएँ पूरी की। तदनन्तर वे अपने नगरको चले गये। राजा युधिष्ठिर ! यह मैंने यमुना तीरवतीं इन्द्रप्रस्थके लोक-पावन माहात्म्यका तुमसे वर्णन किया है।
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सूतजी कहते हैं— शौनकजी ! इस प्रकार सौभरि मुनिसे इन्द्रप्रस्थका माहात्म्य सुनकर राजा युधिष्ठिर हस्तिनापुरको गये और वहाँसे अपने दुर्योधन आदि भाइयोंको साथ ले राजसूय यज्ञ करनेकी इच्छासे
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पुण्यमय इन्द्रप्रस्थमें आये। राजाने अपने कुलदेवता भगवान् गोविन्दको द्वारकासे बुलाकर राजसूय यज्ञके द्वारा उनका यजन किया। 'यह तीर्थ मुक्ति देनेवाला है; अतः यहाँ मुँहसे कुत्सित वचन कहनेपर भी शिशुपालकी मुक्ति हो जायगी। यह सोचकर ही श्रीहरिने वहाँ शिशुपालका वध किया। शिशुपालने भी उस तीर्थमें मरनेके कारण समस्त पुरुषार्थोके दाता भगवान् श्रीकृष्णका सायुज्य प्राप्त कर लिया। जहाँ शिशुपाल मारा गया और जहाँ राजा युधिष्ठिरने यज्ञ किया, उस स्थानपर भीमसेनने अपनी गदासे एक विस्तृत कुण्ड बना दिया था। वह पावन कुण्ड इस पृथ्वीपर भीमकुण्डके नामसे विख्यात हुआ। वह यमुनाके दक्षिण एक कोसके भूभागमें है। इन्द्रप्रस्थकी यमुनामें स्नान करनेसे जो फल होता है, वही फल उस कुण्डमें स्नान करनेसे मिल जाता है - इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। जो मनुष्य प्रतिवर्ष इस तीर्थकी परिक्रमा करता है, वह क्षेत्रापराधजनित दोषों और पातकोंसे मुक्त हो जाता है। जो भगवान्के नामोंका जप करते हुए इस तीर्थकी प्रदक्षिणा करता है, उसे पग-पगपर कपिलादानका फल मिलता है जो मनुष्य चैत्र कृष्णा चतुर्दशीको इन्द्रप्रस्थकी प्रदक्षिणा करता है, वह धन्य एवं सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। ★ वसिष्ठजीका दिलीपसे तथा भृगुजीका विद्याधरसे माघस्त्रानकी महिमा बताना तथा माघस्नानसे विद्याधरकी कुरूपताका दूर होना
ऋषियोंने कहा - लोमहर्षण सूतजी ! अब हमें माघका माहात्म्य सुनाइये, जिसको सुननेसे लोगोंका महान् संशय दूर हो जाय।
सूतजी बोले – मुनिवरो! आपलोगोंको साधुवाद देता हूँ। आप भगवान् श्रीकृष्णके शरणागत भक्त हैं; इसीलिये प्रसन्नता और भक्तिके साथ आपलोग बार-बार भगवान्की कथाएँ पूछा करते हैं। मैं आपके कथनानुसार माघ माहात्यका वर्णन करूँगा; जो अरुणोदयकालमें स्नान करके इसका श्रवण करते हैं, उनके पुण्यकी वृद्धि और पापका नाश होता है। एक समयकी बात है,
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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राजाओंमें श्रेष्ठ महाराज दिलीपने यज्ञका अनुष्ठान पूरा करके ऋषियोंद्वारा मङ्गल-विधान होनेके पश्चात् अवभृथ स्नान किया। उस समय सम्पूर्ण नगरनिवासियोंने उनका बड़ा सम्मान किया। तदनन्तर राजा अयोध्यामें रहकर प्रजाजनोंकी रक्षा करने लगे। वे समय-समयपर वसिष्ठजोकी अनुमति लेकर प्रजावर्गका पालन किया करते थे। एक दिन उन्होंने वसिष्ठजीसे कहा'भगवन्! आपके प्रसादसे मैंने आचार, दण्डनीति, नाना प्रकारके राजधर्म, चारों वर्णों और आश्रमोंके कर्म, दान, दानकी विधि, यज्ञ, यज्ञके विधान, अनेकों व्रत, उनके