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. अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . ...
[संक्षिप्त पद्मपुराण
तीखा होता है। कहीं बहुत दूरतक कीचड़-ही-कीचड़ और सब प्रकारके दुःखोका आश्रय है। ऐसे ही मार्गसे भरी रहती है। कहीं घातक अङ्कर उगे होते है और यमकी आज्ञाका पालन करनेवाले अत्यन्त भयङ्कर कहीं-कहीं लोहेकी सुईके समान नुकीले कुशोसे सारा यमदूतोंद्वारा समस्त पाप-परायण मूढ़ जीव बलपूर्वक मार्ग ढका होता है। इतना ही नहीं, कहीं-कहीं बीच लाये जाते हैं। रास्तेमें वृक्षोंसे भरे हुए पर्वत होते हैं, जो किनारेपर भारी वे एकाकी, पराधीन तथा मित्र और बन्धुजल-प्रपातके कारण अत्यन्त दुर्गम जान पड़ते हैं। कहीं बान्धवोंसे रहित होते हैं। अपने कर्मोके लिये बारम्बार रास्तेपर दहकते हुए अंगारे बिछे रहते हैं। ऐसे मार्गसे शोक करते और रोते हैं। उनका आकार प्रेत-जैसा होता पापी जीवोंको दुःखित होकर जाना पड़ता है। कहीं है। उनके शरीरपर वस्त्र नहीं रहता। कण्ठ, ओठ और ऊँचे-नीचे गड्ढे, कहीं फिसला देनेवाले चिकने देले, तालू सूखे होते हैं। वे शरीरसे दुर्बल और भयभीत होते कहीं खूब तपी हई बालू और कहीं तीखी कीलोंसे वह हैं तथा क्षधाकी आगसे जलते रहते हैं। बलोन्मत्त मार्ग व्याप्त रहता है। कहीं-कहीं अनेक शाखाओंमें फैले यमदूत किन्हीं-किन्हीं पापी मनुष्योंको चित सुलाकर हुए सैकड़ों वन और दुःखदायी अन्धकार हैं, जहाँ कोई उनके पैरोंमें साँकल बाँध देते हैं और उन्हें घसीटते हुए सहारा देनेवाला भी नहीं रहता । कहीं तपे हुए लोहेके खींचते हैं। कितने ही दूसरे जीव ललाटमें अङ्कश चुभाये काटेदार वृक्ष, कहीं दावानल, कहीं तपी हुई शिला और जानेके कारण क्लेश भोगते हैं। कितनोंकी यौह पीठको कहीं हिमसे वह मार्ग आच्छादित रहता है। कहीं ऐसी ओर घुमाकर बांध दी जाती और उनके हाथोंमें कील बालू भरी रहती है, जिसमें चलनेवाला जीव कण्ठतक ठोक दी जाती हैसाथ ही पैरोंमें बेड़ी भी पड़ी होती है। भैंस जाता है और बालू कानके पासतक आ जाती है। इस दशामें भूखका कष्ट सहन करते हुए उन्हें जाना कहीं गरम जल और कहीं कंडोंकी आगसे यमलोकका पड़ता है। कुछ दूसरे जीवोंके गलेमें रस्सी बाँधकर उन्हें मार्ग व्याप्त रहता है । कहीं धूल मिली हुई प्रचण्ड वायुका पशुओंकी भाँति घसीटा जाता है और वे अत्यन्त दुःख बवंडर उठता है और कहीं बड़े-बड़े पत्थरोंको वर्षा होती उठाते रहते हैं। कितने ही दुष्ट मनुष्योंकी जिह्वामें रस्सी है। उन सबकी पीड़ा सहते हए पापी जीव यमलोकमें बाँधकर उन्हें खींचा जाता है। किन्हींकी कमरमें भी रस्सी जाते हैं। रेतको भारी वृष्टि से सारा अङ्ग भर जानेके बांधी जाती और उन्हें गरदनियाँ देकर इधर-उधर ढकेला कारण पापी जीव रोते है। महान् मेघोंकी भयङ्कर जाता है। यमदूत किन्हींकी नाक बाँधकर खींचते हैं और गर्जनासे वे बारम्बार थर्रा उठते हैं। कहीं तीखे अस्त्र- किन्हींके गाल तथा ओठ छेदकर उनमें रस्सी डाल देते शस्त्रोंकी वर्षा होती है, जिससे उनके सारे शरीरमें घाव और उन्हें खींचकर ले जाते हैं। तपे हुए सींकचोंसे कितने हो जाते हैं। तत्पश्चात् उनके ऊपर नमक मिले हुए ही पापियोंके पेट छिदे होते हैं। कुछ लोगोंके कानों और पानीको मोटी धाराएँ बरसायी जाती है। इस प्रकार कष्ट ठोढ़ियोंमें छेद करके उनमें रस्सी डालकर खींचा जाता सहन करते हुए उन्हें जाना पड़ता है। कहीं अत्यन्त ठंडी, है। किन्हींके पैरों और हाथोंके अग्रभाग काट लिये जाते कहीं रूखी और कहीं कठोर वायुका सब ओरसे आघात हैं। किन्हींक कण्ठ, ओठ और तालुओंमें छेद कर दिया सहते हुए पापी जीव सूखते और रोते हैं। इस प्रकार वह जाता है। किन्हीं-किन्हींक अण्डकोश कट जाते हैं और मार्ग बड़ा ही भयङ्कर है। वहाँ राहखर्च नहीं मिलता। कुछ लोगोंके समस्त अङ्गोंकी सन्धियाँ काट दी जाती हैं। कोई सहारा देनेवाला नहीं रहता। वह सब ओरसे दुर्गम किन्हींको भालोसे छेदा जाता है, कुछ याणोंसे घायल
और निर्जन है। वहाँ और कोई मार्ग आकर नहीं मिला किये जाते हैं और कुछ लोगोंको मुद्रों तथा लोहेके है। वह बहुत बड़ा और आश्रयरहित है। वहाँ इंडोसे बारम्बार पीटा जाता है और वे निराश्रय होकर अन्धकार-ही-अन्धकार भरा रहता है। वह महान् कष्टप्रद चीखते-चिल्लाते हुए इधर-उधर भागा करते हैं।