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उत्तरखण्ड ]
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• मृगशृङ्ग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
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सागर संगममें दस वर्षोंतक शौच-सन्तोषादि नियमोंका पालन करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वह माघके महीने में तीन दिनोंतक प्रातः स्नान करनेसे ही मिल जाता है। जिनके मनमें दीर्घकालतक स्वर्गलोकके भोग भोगनेकी अभिलाषा हो, उन्हें सूर्यके मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी जल मिले, प्रातःकाल स्नान करना चाहिये। आयु, आरोग्य, रूप, सौभाग्य एवं उत्तम गुणोंमें जिनकी रुचि हो, उन्हें सूर्यके मकर राशिपर रहनेतक प्रातः काल अवश्य स्नान करना चाहिये। जो नरकसे डरते हैं और दरिद्रताके महासागरसे जिन्हें त्रास होता है, उन्हें सर्वथा प्रयत्नपूर्वक माघमासमें प्रातःकाल स्नान करना चाहिये । देवश्रेष्ठ ! दरिद्रता, पाप और दुर्भाग्यरूपी कीचड़ को धोनेके लिये माघस्नानके सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं है। अन्य कमको यदि अश्रद्धापूर्वक किया जाय तो वे बहुत थोड़ा फल देते हैं; किन्तु माघस्नान यदि श्रद्धा के बिना भी विधिपूर्वक किया जाय तो वह पूरा पूरा फल देता है। गाँवसे बाहर नदी या पोखरेके जलमें जहाँ कहीं भी निष्काम या सकामभावसे माघस्नान करनेवाला पुरुष इस लोक और परलोकमें दुःख नहीं देखता। जैसे चन्द्रमा कृष्णपक्षमें क्षीण होता और शुरूपक्षमें बढ़ता है, उसी प्रकार माघमासमें स्नान करनेपर पाप क्षीण होता और पुण्यराशि बढ़ती है। जैसे समुद्रमें नाना प्रकारके रत्न उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार माघस्नानसे आयु, धन और स्त्री आदि सम्पत्तियाँ प्राप्त होती हैं। जैसे कामधेनु और
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वसिष्ठजी कहते हैं— राजन् ! मैं माघ मासका प्रभाव बतलाता हूँ, सुनो। इसे भक्तिपूर्वक सुनकर मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है प्राचीन रथन्तर कल्पके सत्ययुगमें कुत्स नामके एक ऋषि थे, जो ब्रह्माजीके पुत्र थे। वे बड़े ही तेजस्वी और निष्पाप थे। उन्होंने कर्दम ऋषिकी सुन्दरी कन्याके साथ विधिपूर्वक विवाह किया।
चिन्तामणि मनोवाञ्छित भोग देती हैं, उसी प्रकार माघस्नान सब मनोरथोंको पूर्ण करता है। सत्ययुगमें तपस्याको, त्रेतामें ज्ञानको, द्वापरमें भगवान् के पूजनको और कलियुगमें दानको उत्तम माना गया है; परन्तु माघका स्नान सभी युगोंमें श्रेष्ठ समझा गया है। * सबके लिये, समस्त वर्णों और आश्रमोंके लिये माघका स्नान धर्मको धारावाहिक वृष्टि करता है।
भृगुजीके ये वचन सुनकर वह विद्याधर उसी आश्रमपर ठहर गया और माघमासमें भृगुजीके साथ ही उसने विधिपूर्वक पर्वतीय नदीके कुण्डमें पत्नीसहित स्नान किया। महर्षि भृगुके अनुग्रहसे विद्याधरने अपना मनोरथ प्राप्त कर लिया। फिर वह देवमुख होकर मणिपर्वतपर आनन्दपूर्वक रहने लगा। भृगुजी उसपर कृपा करके बहुत प्रसन्न हुए और पुनः विन्ध्यपर्वतपर अपने आश्रम में चले आये। उस विद्याधरका मणिमय पर्वतकी नदीमें माघस्नान करनेमात्रसे कामदेवके समान मुख हो गया। तथा भृगुजी भी नियम समाप्त करके शिष्योंसहित विन्ध्याचल पर्वतको घाटीमें उतरकर नर्मदा तटपर आये ।
वसिष्ठजी कहते हैं— राजन् ! महर्षि भृगुके द्वारा विद्याधरके प्रति कहा हुआ यह माघ माहात्म्य सम्पूर्ण भुवनका सार है तथा नाना प्रकारके फलोंसे विचित्र जान पड़ता है। जो प्रतिदिन इसका श्रवण करता है, वह देवताकी भाँति समस्त सुन्दर भोगोंको प्राप्त कर लेता है। ★ मृगशृङ्ग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
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* * कृते तपः परं ज्ञानं त्रेतायां यजनं तथा द्वापरे च कलौ दानं माघः सर्वयुगेषु च ॥ (२२१ । ८० )
उसके गर्भ से मुनिके वत्स नामक पुत्र हुआ, जो वंशको बढ़ानेवाला था । वत्सकी पाँच वर्षकी अवस्था होनेपर पिताने उनका उपनयन संस्कार करके उन्हें गायत्रीमन्त्रका उपदेश किया। अब वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भृगुकुलमें निवास करने लगे। प्रतिदिन प्रातः काल और सायंकाल अग्निहोत्र, तीनों समय स्नान और भिक्षाके