________________
उत्तरखण्ड ]
• साभ्रमती नदीके अवान्तर तीर्थोका वर्णन .
७९५
सोचने लगा-'अब क्या करना चाहिये?' वह निरन्तर तीरपर जाकर खड़ा हुआ। फिर उसने वहाँ स्नान किया इसी चिन्तामें डूबा रहता था। एक दिन दैवयोगसे और वहाँका उत्तम जल पीया। इससे उसका शरीर दिव्य क्रीड़ाके लिये राजा वनमें गया। वहाँ साभ्रमती नदीके हो गया। पार्वती ! जैसे सोनेकी प्रतिमा देदीप्यमान
दिखायी देती है, उसी प्रकार राजा वैकर्तन भी परम कान्तिमान हो गया। उस दिव्य रूपको पाकर राजाने कुछ कालतक राज्य-भोग किया। इसके बाद वह परमपदको प्राप्त हुआ। तबसे वह तीर्थ राजसाङ्गके नामसे सुप्रसिद्ध हो गया। जो लोग वहाँ स्नान और दान करते हैं, वे इस लोकमें सुख भोगकर भगवान् विष्णुके सनातन धामको प्राप्त होते हैं। उन्हें कभी रोग और शोक नहीं होता। जो प्रतिदिन राजखड्ग तीर्थमें स्रान और श्रद्धापूर्वक पितरोंका तर्पण करते हैं, वे मनुष्य इस पृथ्वीपर पुण्यकर्मा कहलाते हैं। ब्राह्मणों और बालकोंकी हत्या करनेवाले पुरुष भी यदि यहाँ सान करते हैं तो वे पापोंसे रहित हो भगवान् शिवके समीप जाते हैं। जो मनुष्य साश्रमती नदीके तटपर नील वृषका उत्सर्ग करेंगे, उनके पितर प्रलय कालतक तृप्त रहेंगे। राजखड्ग तीर्थका यह दिव्य उपाख्यान जो सुनते हैं, उन्हें कभी भय नहीं प्राप्त होता इसके सुनने और पढ़नेसे समस्त रोग-दोष शान्त हो जाते है। ..
साभ्रमती नदीके अवान्तर तीर्थोका वर्णन
श्रीपार्वतीजीने पूछा-भगवन् ! नन्दिकुण्डसे निकलकर बहती हुई साभ्रमती नदीने किन-किन देशोको पवित्र किया है, यह बतानेकी कृपा करें। . श्रीमहादेवजी बोले-देवि ! परम पावन नन्दि- कुण्ड नामक तीर्थसे निकलनेपर पहले मुनियोद्वारा प्रकाशित कपालमोचन नामक तीर्थ पड़ता है। यह तीर्थ पावनसे भी अत्यन्त पावन और सबसे अधिक तेजस्वी है। पार्वती ! यहाँ मैंने ब्रह्मकपालका परित्याग किया है, अतः मुझसे ही कपालमोचन तीर्थको उत्पत्ति हुई है। यह सम्पूर्ण भूतोंको पवित्र करनेवाला विश्वविख्यात तीर्थ प्रकट हुआ है। इसे कपालकुण्ड तीर्थ भी कहते हैं। यह तीर्थोका राजा है। इस शुभ एवं निर्मल तीर्थमें देवगा, नाग, गन्धर्व, किन्नर आदि तथा महात्मा पुरुष निवास करते है। यह
तीनों लोकोंमें विख्यात, ज्ञानदाता एवं मोक्षदायक तीर्थ है। यहाँ स्रान करके पवित्र हो मेरा पूजन करना चाहिये । एक रात उपवास करके ब्राह्मण-भोजन कराये। यहाँ वस्त्र दान करनेसे मानव अग्निहोत्रका फल पाता है। जो कोई इस तीर्थमें दर्शन-व्रतका अवलम्बन करके रहता है। वह देहत्यागके अनन्तर निश्चय ही शिवलोकमें जाता है।
भगीरथके कुलमें सुदास नामक एक महाबली राजा हुए थे। उनके पुत्रका नाम मित्रसह था। राजा मित्रसह सौदास नामसे भी विख्यात थे। सौदास महर्षि वसिष्ठके शापसे राक्षस हो गये थे। उन्होंने साश्रमती नदीमें स्नान किया। इससे वे शापजनित पापसे मुक्त हो गये। यहाँ नन्दितीर्थमें गङ्गा, यमुना, गोदावरी और सरस्वती आदि पुण्यदायिनी पवित्र नदियाँ निवास करती है। पृथ्वीके