________________
८२२
• अर्जयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
श्रीमद्भगवद्गीताके पाँचवें अध्यायका माहात्म्य
श्रीभगवान् कहते हैं-देवि ! अब सब लोगों- डूबकर प्राण त्याग चुकी थी। फिर वह क्रूर पक्षी भी द्वारा सम्मानित पाँचवें अध्यायका माहात्म्य संक्षेपसे उसीमे गिरकर डूब गया। तब यमराजके दूत उन दोनोंको बतलाता हूँ, सावधान होकर सुनो। मद्रदेशमें पुरुकुत्सपुर यमराजके लोकमें ले गये। वहाँ अपने पूर्वकृत पापनामक एक नगर है। उसमें पिङ्गल नामका एक ब्राह्मण कर्मको याद करके दोनों ही भयभीत हो रहे थे। तदनन्तर रहता था। वह वेदपाठी ब्राह्मणोंके विख्यात वंशमें, जो यमराजने जब उनके घृणित कोपर दृष्टिपात किया, तब सर्वथा निष्कलङ्क था, उत्पन्न हुआ था; किन्तु अपने उन्हें मालूम हुआ कि मृत्युके समय अकस्मात् खोपड़ीके कुलके लिये उचित वेद-शास्त्रोंके स्वाध्यायको छोड़कर जलमें स्नान करनेसे इन दोनोंका पाप नष्ट हो चुका है। ढोल आदि बजाते हुए उसने नाच-गानमें मन लगाया। तब उन्होंने उन दोनोंको मनोवाञ्छित लोकमें जानेकी गीत, नृत्य और बाजा बजानेकी कलामें परिश्रम करके आज्ञा दी। यह सुनकर अपने पापको याद करते हुए वे पिङ्गलने बड़ी प्रसिद्धि प्राप्त कर ली और उसीसे उसका दोनों बड़े विस्मयमें पड़े और पास जाकर धर्मराजके राजभवनमें भी प्रवेश हो गया। अब वह राजाके साथ चरणोंमें प्रणाम करके पूछने लगे-'भगवन् ! हम रहने लगा और परायी स्त्रियोंको बुला-बुलाकर उनका दोनोंने पूर्वजन्ममें अत्यन्त घृणित पापका सशय किया उपभोग करने लगा। स्त्रियोंके सिवा और कहीं इसका है। फिर हमें मनोवाञ्छित लोकोंमें भेजनेका क्या कारण मन नहीं लगता था। धीरे-धीरे अभिमान बढ़ जानेसे है? बताइये।' उच्छृङ्खल होकर वह एकान्तमें राजासे दूसरोंके दोष यमराजने कहा-गङ्गाके किनारे वट नामक एक बतलाने लगा। पिङ्गलकी एक स्त्री थी, जिसका नाम था उत्तम ब्रह्मशानी रहते थे। वे एकान्तसेवी, ममतारहित, अरुणा। वह नीच कुलमें उत्पन्न हुई थी और कामी शान्त, विरक्त और किसीसे भी द्वेष न रखनेवाले थे। पुरुषोंके साथ विहार करनेकी इच्छासे सदा उन्हींकी खोजमें घूमा करती थी। उसने पतिको अपने मार्गका कण्टक समझकर एक दिन आधी रातमें घरके भीतर ही उसका सिर काटकर मार डाला और उसकी लाशको जमीनमें गाड़ दिया। इस प्रकार प्राणोंसे वियुक्त होनेपर वह यमलोकमें पहुंचा और भीषण नरकोंका उपभोग करके निर्जन वनमें गिद्ध हुआ।
अरुणा भी भगन्दर रोगसे अपने सुन्दर शरीरको त्याग कर घोर नरक भोगनेके पश्चात् उसी वनमें शुकी हुई। एक दिन वह दाना चुगनेकी इच्छासे इधर-उधर फुदक रही थी, इतनेमें ही उस गिद्धने पूर्वजन्मके वैरका स्मरण करके उसे अपने तीखे नखोंसे फाड़ डाला। शुकी घायल होकर पानीसे भरी हुई मनुष्यकी खोपड़ी में गिरी। गिद्ध पुनः उसकी ओर झपटा । इतनेमें ही जाल फैलानेवाले बहेलियोंने उसे भी बाणोंका निशाना बनाया। उसकी पूर्वजन्मकी पत्नी शुकी उस खोपड़ीके जलमे
की