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उत्तरखण्ड]
• श्रीमद्भगवद्गीताके नवें और दसवें अध्यायोंका माहात्म्य .
जप तथा किस देवताका स्मरण कर रहे थे? वह पुरुष जो स्वर्गरूपी दुर्गमें जानेके लिये सुन्दर सोपान और तथा वह स्त्री कौन थी? वे दोनों कैसे उपस्थित हुए? प्रभावकी चरम सीमा है। काशीपुरीमें धौरबुद्धि नाभसे फिर वे शान्त कैसे हो गये ? यह सब मुझे बतलाइये।' विख्यात एक ब्राह्मण था, जो मुझमें नन्दीके समान भक्ति
रखता था। वह पावन कीर्तिके अर्जनमें तत्पर रहनेवाला, शान्तचित्त और हिंसा, कठोरता एवं दुःसाहससे दूर रहनेवाला था। जितेन्द्रिय होनेके कारण वह निवृत्तिमार्गमें ही स्थित रहता था। उसने वेदरूपी समुद्रका पार पा लिया था। वह सम्पूर्ण शास्त्रोंके तात्पर्यका ज्ञाता था। उसका चित्त सदा मेरे ध्यानमें संलग्न रहता था। वह मनको अन्तरात्मामे लगाकर सदा- आत्मतत्त्वका साक्षात्कार किया करता था; अतः जब वह चलने लगता तो मैं प्रेमवश उसके पीछे दौड़-दौड़कर उसे हाथका सहारा देता रहता था।
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- ब्राह्मणने कहा-राजन् ! चाण्डालका रूप धारण करके भयङ्कर पाप ही प्रकट हुआ था तथा वह स्त्री निन्दाकी साक्षात् मूर्ति थी। मैं इन दोनोंको ऐसा ही समझता हूँ। उस समय मैं गीताके नवें अध्यायके मन्त्रोंकी माला जपता था। उसीका माहात्म्य है कि सारा सङ्कट दूर हो गया। महीपते ! मैं नित्य ही गीताके नवम अध्यायका जप करता हूँ। उसीके प्रभावसे प्रतिग्रहजनित आपत्तियोंके पार हो सका हूँ।
यह सुनकर राजाने उसी ब्राह्मणसे गीताके नवम अध्यायका अभ्यास किया, फिर वे दोनों ही परमशान्ति हर (मोक्ष) को प्राप्त हो गये।
यह देख मेरे पार्षद भूङ्गिरिटिने पूछा., [यह कथा सुनकर ब्राह्मणने बकरेको बन्धनसे भगवन् ! इस प्रकार भला, किसने आपका दर्शन किया मुक्त कर दिया और गीताके अभ्याससे परमगतिको होगा। इस महात्माने कौन-सा तप, होम अथवा जप प्राप्त किया। कार
किया है कि स्वयं आप ही पद-पदपर इसे हाथका सहारा भगवान् शिव कहते है-सुन्दरि ! अब तुम देते चलते है? - ARE .. दशम अध्यायके माहात्म्यको परम पावन कथा सुनो, या, भृङ्गिरिटिका यह प्रश्न सुनकर मैंने इस प्रकार उत्तर