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. अर्चयस्व हषीकेश यदीच्छसि पर पदम् ,
[संक्षिप्त पापुराण
इन्द्रप्रस्थके द्वारका, कोसला, मधुवन, वदरी, हरिद्वार, पुष्कर, प्रयाग, काशी, काशी
और गोकर्ण आदि तीर्थोका माहात्म्य
राजा शिबि बोले-मुने ! अब मुझे इन्द्रप्रस्थके इसी इन्द्रप्रस्थमें कोसला (अयोध्या) नामक एक सैकड़ों तीर्थोमसे अन्य तीर्थोका भी माहात्म्य बतलाइये। तीर्थ है । इसके विषयमें भी एक पुण्यमय उपाख्यान है। नारदजीने कहा-राजन् ! इन्द्रप्रस्थके भीतर यह द्वारका चन्द्रभागा नदीके किनारे एक पुरीमें चण्डक नामक एक नामक तीर्थ है। इसकी महिमा सुनो । काम्पिल्य नगरमें जुआरी, शराबखोर, व्यभिचारी, डकैत, हत्यारा और एक बहुत सुन्दर और संगीतज्ञ ब्राह्मण रहता था। उसके मन्दिरोंका सामान चुरानेमें चतुर एक नाई रहता था। गानको सुरीली ध्वनिसे नगरको स्त्रियोंके मनोंमें उसके उसने एक दिन अपने समीप ही रहनेवाले मुकुन्द नामक प्रति पाप-वासनायुक्त बड़ा आकर्षण हो गया। नगरके धार्मिक और धनवान् ब्राह्मणके घरमें चोरी करनेके लिये लोगोंने जाकर राजासे शिकायत की। राजाके पूछनेपर प्रवेश करके ब्राह्मणको मार डाला। इससे उनकी ब्राह्मणने अपनेको निर्दोष बताया और नगरको स्त्रियोंको स्नेहमयी माता और सती पत्रीको बड़ा दुःख हुआ और उच्छृङ्खल। इतने में कुछ स्त्रियाँ भी वहाँ आ गयीं और वे आर्तस्वरसे विलाप करने लगीं। इतनेमें ही मुकुन्दके निर्लज्जतापूर्ण बातें करने लगीं। ब्राह्मणने कामवासनाकी गुरु वेदायन नामक संन्यासी वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने
और पति-वञ्चनाकी निन्दा करते हुए पातिव्रतकी महिमा शरीरको नश्वरताका वर्णन करते हुए आत्मज्ञानका उपदेश बताकर उन स्त्रियोंको समझाया। वे ब्राह्मणको बात देकर उन लोगोंको समझाया और मुकुन्दका अन्त्येष्टिसुनकर बहुत लज्जित हुई और परस्पर पापो कामको संस्कार करवाया। मुकुन्दकी गर्भवती पत्नीको विद्वान् निन्दा करती हुई अपने घरोंको लौट आयौं । कुछ समय संन्यासीने सती होनेसे रोक दिया। मुकुन्दका छोटा भाई बाद कारूष देशके राजाने काम्पिल्य नगरपर आक्रमण मुकुन्दको अस्थियोंको लेकर गङ्गाजीमें छोड़नेके लिये किया और युद्धमें काम्पिल्यराज मारे गये। उनका नगर चला, चलते-चलते वह इस कोसलातीर्थमें आया। लुट गया। शूरवीर मारे गये और नगरकी स्त्रियाँ जहर आधी रातको यहाँ अस्थिकी गठरीको एक कुत्तेने उठाकर खाकर मर गयीं। जिन स्त्रियोंने संगीतज्ञ ब्राह्मणके प्रति कोसलाके जलमें फेंक दिया। अस्थियोंके जलमें पड़ते आकर्षित होनेके पापका प्रायश्चित्त नहीं किया था, वे ही मुकुन्द दिव्य विमानपर चढ़कर वहाँ आया और उसने सब-की-सब बड़ी भयानक राक्षसियाँ होकर भूख- तीर्थके माहात्यका वर्णन करते हुए यह बताया कि 'मेरी प्याससे पीड़ित रहने लगी। वाणी और मनके किये हुए हड्डियोंके तीर्थमें पड़ते ही मैं नरकसे निकलकर इस उत्तम एक ही पापसे उन्हें दो जन्मोतक राक्षसी योनिमें रहना गतिको प्राप्त हुआ हूँ। नरक मुझे इसीलिये प्राप्त हुआ था पड़ा। अतएव पापसे डरनेवाली किसी भी स्त्रीको कि मैं गुरुद्रोही था। अब मैं उस पापसे मुक्त होकर मन-वाणीसे कभी किसी भी पराये पतिका सेवन नहीं चौदह इन्द्रोंके कालतक सुखपूर्वक स्वर्गमें निवास करना चाहिये। अपना पति रोगी, मूर्ख, दरिद्र और अंधा करूंगा।' यों कहकर वह देवताके समान सुन्दर हो, तो भी उत्तम गतिको इच्छा रखनेवाली खियोंको शरीरवाला ब्राह्मण देखते-ही-देखते तत्काल स्वर्गको उसका त्याग नहीं करना चाहिये। ये राक्षसियाँ इन्द्र- चला गया। प्रस्थके द्वारका नामक तीर्थसे जल लेकर पुष्कर जाते हुए अब उस चण्डक नाईकी कथा सुनो। मुकुन्दको ब्राह्मणके कमण्डलुसे जलकी कुछ बूंदे पड़ते ही निष्पाप हत्याका समाचार पाकर राजाने चण्डकको पकड़ हो गयीं और भयानक राक्षसी-शरीरसे मुक्त होकर स्वर्गमें मैंगवाया और उसे चन्द्रभागासे आठ कोसकी दूरीपर ले चली गयीं।
जाकर चाण्डालोंके द्वारा मरवा डाला। वह मारवाड़