Book Title: Sankshipta Padma Puran
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 875
________________ उत्तरखण्ड ] . देवल मुनिका शरभको राजा दिलीपकी कथा सुनाना • "तुम्हारी पत्नीकी आज्ञा पाकर सखियाँ पूजाको कृपा करें। सामग्री ले अम्बिकाके मन्दिरमें गयीं। वहां उन्होंने देवलजीने कहा-वैश्यवर ! इसका कारण सुनो; पार्वतीजीको प्रणाम और प्रदक्षिणा करके भक्तिपूर्वक जब तुम्हारी पत्नीकी सखियाँ स्कन्दमाता पार्वतीका पूजन कहा-'जगदम्बे ! तुम्हें नमस्कार है। शिवप्रिये! करके लौट आयीं तब विजयाने कौतूहलवश पार्वतीजीसे हमारा कल्याण करो। शरभ नामक वैश्यकी पत्नी पूछा-'गिरिजे! ललिताकी सखियोंने तुम्हारी श्रद्धाललिताको तुम्हारी कृपासे गर्भ प्राप्त हो गया, अतः उसने पूर्वक पूजा की है; फिर तुम प्रसत्र क्यों नहीं हुई। तुम्हारी पूजाके लिये यह सब सामग्री हमारे हाथ भेजी पार्वतीजीने कहा-सखी विजया ! मैं जानती है। उसके कुलमें गर्भवती स्त्री घरसे बाहर नहीं हूँ, वैश्य-पत्नी घरसे बाहर निकलनेमें असमर्थ थी; निकलती, इसीलिये वह स्वयं नहीं आ सकी है। देवि। इसीलिये उसकी सखियाँ आयी थीं। किन्तु मेरी-जैसी तुम प्रसन्न होकर इस पूजनको ग्रहण करो।' देवियाँ दूसरेके हाथकी पूजा स्वीकार नहीं कर सकतीं। "ऐसा कहकर सखियोंने माता पार्वतीका चन्दन उसका पति आ जाता, तो भी उसका कल्याण होता। आदिसे विधिपूर्वक पूजन किया; परन्तु भगवती गौरीकी पत्नी जिस व्रत और पूजनको करनेमें असमर्थ हो, उसे ओरसे उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला। सखियाँ घर लौट अपने पतिसे ही करा सकती है। इससे उसकी वह पूजा आयीं और तुम्हारी पत्नीसे बोली कि इस पूजासे भन नहीं होती। अथवा अनन्य भावसे पतिसे पूछकर पार्वतीजी प्रसत्र नहीं है। सखियोकी बात सुनकर तुम्हारी किसी श्रेष्ठ ब्राह्मणके द्वारा भी वह पूजा करा सकती थी। स्त्रीके मनमें बड़ी व्याकुलता हुई। वह मन-ही-मन पर उसने न तो स्वयं पूजन किया और न पतिसे चिन्ता करने लगी कि 'उनके सुन्दर मन्दिरमें पूजाके करवाया। इसलिये उसका गर्भ निष्फल हो जायगा। समय मैं स्वयं नहीं जा सकी, यही मेरा अपराध है। यदि दोनों पति-पत्नी श्रद्धापूर्वक यहाँ आकर मेरी पूजा इसके सिवा दूसरी कोई ऐसी बात नहीं जान पड़ती, जो करेंगे, तो उन्हें पुत्रकी प्राप्ति होगी।" उनकी अप्रसत्रताका कारण हो। जो बात बीत गयी, वैश्य ! तुम्हारे सन्तान न होने में यही कारण है, जो उसको तो बदलना असम्भव है; किन्तु मैं गर्भसे छुटकारा तुम्हें बता दिया। जैसे पूर्वकालमें महर्षि वसिष्ठने महाराज पानेपर स्वयं भगवतीको पूजाके लिये उनके मन्दिरमें दिलीपको सन्तान प्राप्तिके लिये नन्दिनीकी सेवा जाऊँगी। महादेवजीकी पत्नी भगवती उमाको नमस्कार बतलायी थी, उसे सुनकर राजाने नन्दिनीको सन्तुष्ट किया है। वे मेरा कल्याण करें।' . . था और राजाकी सेवासे प्रसत्र हुई नन्दिनीने उन्हें पुत्र वैश्यने पूछा-मुने ! मेरी पत्नीने जैसी प्रतिज्ञा प्रदान किया था, उसी प्रकार तुम भी पत्नीसहित जाकर की थी, उसके अनुसार उसने पार्वतीजीका पूजन किया; भगवती पार्वतीकी आराधना करो। इससे वे तुम्हें पुत्र फिर उनकी अप्रसत्रताका क्या कारण है, यह बतानेकी प्रदान करेंगी। देवल मुनिका शरभको राजा दिलीपकी कथा सुनाना-राजाको नन्दिनीकी सेवासे पुत्रकी प्राप्ति .. वैश्यने पूछा-मुने राजा दिलीप कौन थे तथा देवलने कहा-महामते ! वैवस्वत मनुके वंशमें वह नन्दिनी गौ कौन थी, जिसकी आराधना करके एक दिलीप नामके श्रेष्ठ राजा हुए हैं। वे धर्मपूर्वक इस महाराजने पुत्र प्राप्त किया था ? इस कथाके सुननेके बाद पृथ्वीका पालन करते हुए अपने उत्तम गुणोंके द्वारा मैं पत्नीसहित पार्वतीजीकी आराधना करूंगा। समस्त प्रजाको प्रसन्न रखते थे। मगधराजकुमारी

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