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उत्तरखण्ड ]
MAHADUR
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सनकादिद्वारा श्रीमद्भागवतकी महिमाका वर्णन तथा वैराग्यका प्रकट होना
जहाँ श्रीमद्भागवतकी कथा होती है, वहाँ ये भक्ति आदि स्वतः पहुँच जाते हैं। वहाँ कानोंमें कथाका शब्द पड़नेसे तीनों ही तरुण हो जायेंगे।
ऐसा कहकर देवर्षि नारदजीके साथ सनकादि भी भागवत कथारूपी अमृतका पान करनेके लिये शीघ्र ही हरद्वारमें गङ्गाजीके तटपर आ गये। जिस समय वे वहाँ तटपर पहुँचे भूलोक, देवलोक तथा ब्रह्मलोकमेंसब जगह इस कथाका शोर हो गया। रसिक भक्त श्रीमद्भागवतामृतका पान करनेके लिये वहाँ सबसे पहले दौड़-दौड़कर आने लगे। भृगु, वसिष्ठ, च्यवन, गौतम, मेधातिथि, देवल, देवरात, परशुराम, विश्वामित्र शाकल, मार्कण्डेय, दत्तात्रेय, पिप्पलाद, योगेश्वर व्यास और पराशर, श्रीमान् छायाशुक, जाजलि और जद्दु आदि सभी प्रधान मुनिगण अपने पुत्र, मित्र और स्त्रियोंको साथ लिये बड़े प्रेमसे वहाँ आये। इनके सिवा वेद, वेदान्त, मन्त्र तन्त्र, सतरह पुराण और छहों शास्त्र भी वहाँ मूर्तिमान् होकर उपस्थित हुए। गङ्गा आदि नदियाँ, पुष्कर आदि सरोवर, समस्त क्षेत्र, सम्पूर्ण दिशाएँ, दण्डक आदि वन, नाग आदि गण, देव, गन्धर्व और किन्नर - सभी कथा सुननेके लिये चले आये। जो लोग अपनेको बड़ा माननेके कारण संकोचवश वहाँ नहीं उपस्थित हुए थे, उन्हें महर्षि भृगु समझा-बुझाकर ले आये।
तदनन्तर, कथा सुनानेके लिये दीक्षा ग्रहण कर लेनेपर श्रीकृष्ण-परायण सनकादि नारदजीके दिये हुए उत्तम आसनपर विराजमान हुए। उस समय सभी श्रोताओंने उनको मस्तक झुकाया। श्रोताओंमें वैष्णव, विरक्त, संन्यासी और ब्रह्मचारी ये सबसे आगे बैठे और उनके भी आगे देवर्षि नारदजी विराजमान हुए। एक ओर ऋषि बैठे थे और दूसरी ओर देवता। वेदों और उपनिषदोंका अलग आसन था। एक ओर तीर्थ विराजमान हुए और दूसरी ओर स्त्रियाँ उस समय सब ओर जय-जयकार, नमस्कार और शङ्खोंका शब्द होने लगा। अबीर-गुलाल आदि चूर्ण, स्वील और फूलोंकी खूब वर्षा हुई। कितने ही देवेश्वर विमानोंपर बैठकर वहाँ
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उपस्थित हुए सब लोगोंपर कल्पवृक्षके फूलोंकी वर्षा करने लगे ।
इस प्रकार जब पूजा समाप्त हुई और सब लोग एकाग्रचित्त होकर बैठ गये, तब सनकादि मुनि महात्मा नारदको श्रीमद्भागवतका माहात्म्य स्पष्ट करके बतलाने लगे ।
श्रीसनकादिने कहा- नारदजी ! अब हम आपसे इस भागवत - शास्त्रकी महिमाका वर्णन करते हैं। इसके सुननेमात्रसे ही मुक्ति हाथ लग जाती है। श्रीमद्भागवतकी कथाका सदा ही सेवन करना चाहिये, सदा ही सेवन करना चाहिये। इसके श्रवणमात्रसे मुक्तिरत्नकी प्राप्ति हो जाती है। यह ग्रन्थ अठारह हजार श्लोकोंका है। इसमें बारह स्कन्ध हैं। यह राजा परीक्षित् और श्रीशुकदेव मुनिका संवादरूप है। हम इस श्रीमद्भागवतको सुनाते हैं, आप ध्यान देकर सुनें। जीव तभीतक अज्ञानवश इस संसार-चक्रमें भटकता है, जबतक कि क्षणभरके लिये भी यह श्रीमद्भागवत कथा उसके कानोंमें नहीं पड़ती। बहुत से शास्त्रों और पुराणोंके सुननेसे क्या लाभ इससे तो भ्रम ही बढ़ता है। भागवत-शास्त्र अकेला ही मोक्ष देनेके लिये गरज रहा है। जिस घरमें प्रतिदिन श्रीमद्भागवतकी कथा होती है, वह घर तीर्थस्वरूप हो जाता है। जो लोग उसमें निवास करते हैं, उनके पापका नाश कर देता है। सहस्रों अश्वमेध और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ भी इस श्रीमद्भागवतकी कथाका सोलहवाँ अंश भी नहीं हो सकते । तपोधनो ! मनुष्य जबतक श्रीमद्भागवतकथाका भलीभाँति श्रवण नहीं करते, तभीतक उनके शरीर में पाप ठहर सकते हैं। गङ्गा, गया, काशी, पुष्कर और प्रयाग – ये श्रीमद्भागवत कथाके फलकी बराबरी नहीं कर सकते। ॐकार, गायत्रीमन्त्र, पुरुषसूक्त, ऋक्, साम और यजुः- ये तीनों वेद, श्रीमद्भागवत, ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' यह द्वादशाक्षर मन्त्र, बारह मूर्तियोंवाले सूर्य, प्रयाग, संवत्सररूप काल, ब्राह्मण, अग्रिहोत्र, गौ, द्वादशी तिथि, तुलसी, वसन्त ऋतु और भगवान् पुरुषोत्तम – इन सबमें विद्वान् पुरुष वस्तुतः
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