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उत्तरखण्ड र
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साभ्रमती तटके कपीश्वर आदि तीथोंकी महिमाका वर्णन •
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वह मनुष्य यदि उस तीर्थमें जाय तो भगवान् मालार्क उसकी कोढ़को दूर कर देते हैं। जो नारी शास्त्रोक्तविधिसे वहाँ अभिषेक करती है, वह मृतवत्सा हो या वन्ध्या शीघ्र ही पुत्र प्राप्त करती है। उस तीर्थमें रविवारके दिन यदि स्नान, सन्ध्या, जप, होम, स्वाध्याय और देवपूजन किये जायें तो वे अक्षय हो जाते हैं। देवेश्वरि वहाँ जाकर श्रीसूर्यका व्रत करना चाहिये। ऐसा करनेसे मनुष्य इस लोकमें सुख भोगकर सूर्यलोकको जाता है। जो उस तीर्थमें जाकर विशेषरूपसे उपवास करता और इन्द्रियोंको वशमें करके भगवान् मालार्कका पूजन करता है, वह निश्चय ही मोक्षका भागी होता है।
इस तीर्थके बाद दूसरे तीर्थमें जाय, जो मालार्कसे उत्तरमें स्थित है। उसका नाम है-चन्दनेश्वर तीर्थ। वह उत्तम स्थान सदा चन्दनकी सुगन्धसे सुवासित रहता है। वहाँ स्नान, जलपान और पितृतर्पण करनेसे मनुष्य कभी नरकमें नहीं पड़ता और रुद्रलोकको प्राप्त होता है। वहाँ जगत्का कल्याण करनेवाले विश्वके स्वामी भगवान् चन्दनेश्वरका दर्शन करके रुद्रलोककी इच्छा रखनेवाला पुरुष यथाशक्ति उनका पूजन करे। उस तीर्थमें कल्याण प्रदान करनेवाले साक्षात् परमात्मा श्रीविष्णु नित्य निवास करते हैं। धन्य है साभ्रमती नदी और धन्य है विश्वके स्वामी भगवान् शिव एवं विष्णु !
वहाँसे पापनाशक जम्बूतीर्थमें स्नान करनेके लिये जाय। कलियुगमें वह तीर्थ मनुष्योंके लिये स्वर्गकी सीढ़ीके समान स्थित है। पूर्वकालमें जाम्बवान्ने वहाँ दशाङ्ग पर्वतपर अपने नामसे एक शिवलिङ्गकी स्थापना की थी। वहाँ स्नान करके मनुष्य तत्काल श्रीरामचन्द्रजी और लक्ष्मणका स्मरण करे तथा जाम्बवतेश्वर शिवको मस्तक झुकाये तो वह रुद्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है। देवि ! जहाँ-जहाँ श्रीरामचन्द्रजीका स्मरण किया जाता है, वहाँ-वहाँ सम्पूर्ण चराचर जगत्में भव-बन्धनसे छुटकारा देखा जाता है। मुझे ही श्रीराम जानना चाहिये और श्रीराम ही रुद्र हैं-यों जानकर कहीं भेददृष्टि नहीं रखनी चाहिये। जो मन-ही-मन 'राम राम! राम !' इस प्रकार जप किया करते हैं, उनके समस्त मनोरथोंकी
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प्रत्येक युगमें सिद्धि हुआ करती है। देवि! मैं सदा श्रीरामचन्द्रजीका स्मरण किया करता हूँ। श्रीरामचन्द्रजीका नाम श्रवण करनेसे कभी भव-बन्धनकी प्राप्ति नहीं होती। पार्वती! मैं काशीमें रहकर प्रतिदिन भक्तिपूर्वक कमलनयन श्रीरघुनाथजीका निरन्तर स्मरण किया करता हूँ। जाम्बवान्ने पूर्वकालमें परम सुन्दर श्रीरामचन्द्रजीका स्मरण करके जम्बूतीर्थमें जाम्बवत नामसे प्रसिद्ध शिवलिङ्गको स्थापित किया था। वहाँ स्नान, देवपूजन तथा भोजन करके मनुष्य शिवलोकको प्राप्त होता है और वहाँ चौदह इन्द्रोंकी आयुपर्यन्त निवास करता है। वहाँसे इन्द्रग्राम नामक उत्तम तीर्थमें जाना चाहिये, जहाँ पूर्वकालमें स्नान करके इन्द्र घोर पापसे मुक्त हुए थे।
श्रीपार्वतीजीने पूछा- भगवन् ! इन्द्रको किस कर्मसे घोर पर लगा था और किस प्रकार वे पापरहित हुए ! उस प्रसङ्गको विस्तारके साथ सुनाइये ।
श्रीमहादेवजी बोले – देवि ! पूर्वकालमें देवराज इन्द्र और असुरोंके स्वामी नमुचिने परस्पर यह प्रतिज्ञा की कि हम दोनों एक-दूसरेका बिना किसी शस्त्रकी सहायता लिये वध करें; परन्तु इन्द्रने आकाशवाणीके कथनानुसार जलका फेन लेकर उसीसे नमुचिको मार डाला। तब इन्द्रको ब्रह्महत्या लगी। उन्होंने गुरुके पास जाकर अपने पापकी शान्तिका उपाय पूछा। फिर बृहस्पतिजीके आज्ञानुसार वे साभ्रमती नदीके उत्तर तटपर आये और वहाँ उन्होंने स्नान किया। इससे उनका सारा पाप तत्काल दूर हो गया। शरीरमें पूर्ण चन्द्रमाके समान उज्ज्वल कान्ति छा गयी। तब इन्द्रने वहाँ धवलेश्वर नामक शिवकी स्थापना की ।
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वह शिवलिङ्ग इस पृथ्वीपर इन्द्रके ही नामसे प्रसिद्ध हुआ। वहाँ पूर्णिमा, अमावास्या, संक्रान्ति और ग्रहणके दिन श्राद्ध करनेपर पितरोंको बारह वर्षोंतक तृप्ति बनी रहती है जो धवलेश्वरके पास जाकर ब्राह्मण भोजन कराता है, उसके एक ब्राह्मणको भोजन करानेपर सहस्र ब्राह्मणोंको भोजन करानेका फल होता है। वहाँ अपनी शक्तिके अनुसार सुवर्ण, भूमि और वस्त्रका दान करना चाहिये। ब्राह्मणको श्वेत रंगकी दूध देनेवाली गौ