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* अर्थयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
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बछड़ेसहित दान करनी चाहिये जो ब्राह्मण यहाँ आकर रुद्रमन्त्रका जप आदि करता है, उसका शुभ कर्म वहाँ भगवान् शङ्करजीके प्रसादसे कोटिगुना फल देनेवाला होता है । जो मनुष्य उस तीर्थमें आकर उपवास आदि करता है, वह अपनी सम्पूर्ण कामनाओंको निस्सन्देह प्राप्त कर लेता है। जो बिल्वपत्र लाकर भगवान् धवलेश्वरकी पूजा करता है, वह मानव इस पृथ्वीपर धर्म, अर्थ और काम - तीनों प्राप्त करता है, विशेषतः सोमवारको जो श्रेष्ठ मनुष्य वहाँकी यात्रा करते हैं, उनके रोग-दोषको भगवान् धवलेश्वर शान्त कर देते हैं। जो सदा रविवारको उनका विशेषरूपसे पूजन करता है, उसकी महिमाका ज्ञान मुझे कभी नहीं हुआ। जो दूर्वादल, मदारके फूल, कहार पुष्प तथा कोमल पत्तियोंसे श्रीधवलेश्वरका पूजन करते हैं, वे मनुष्य पुण्यके भागी होते हैं। श्वेत मदारका
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श्रीमहादेवजी कहते हैं-साभ्रमतीके तटपर बालार्क नामका श्रेष्ठ तीर्थ है, जो भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला है। मनुष्य उस बालार्कतीर्थमें स्नान करके पवित्रतापूर्वक तीन रात निवास करे और सूर्योदयके समय बाल-सूर्यके मुखका दर्शन करे। ऐसा करनेसे वह निश्चय ही सूर्यलोकको प्राप्त होता है। रविवार, संक्रान्ति, सप्तमी तिथि, विषुव योग, अयनके आरम्भ-दिवस, चन्द्रग्रहण तथा सूर्यग्रहणके दिन स्नान करके देवताओं, पितरों और पितामहोंका तर्पण करे। फिर ब्राह्मणोंको गुड़मयी धेनु और गुड़-भात दान करे। तत्पश्चात् कनेर और जपाके फूलोंसे बाल सूर्यका पूजन करना चाहिये। जो मनुष्य ऐसा करते हैं, वे सूर्यलोकमें निवास करते हैं। जो मानव वहाँ दूध देनेवाली लाल गौ तथा बोझ ढोनेमें समर्थ एक बैल दान करता है, वह यज्ञका फल पाता है और कभी भी नरकमें नहीं पड़ता। इतना ही नहीं, यदि वह रोगी हो तो रोगसे और कैदी हो तो बन्धनसे मुक्त हो जाता है। इस तीर्थमें पिण्डदान करनेसे पितामहगण पूर्ण तृप्त होते हैं।
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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साभ्रमती तटके बालार्क, दुर्धर्षेश्वर तथा खड्गधार आदि तीथोंकी महिमाका वर्णन
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फूल लाकर उसके द्वारा धवलेश्वरकी पूजा करके उन्होंके प्रसादसे मनुष्य सदा मनोवाञ्छित फल पाता है। सत्ययुगमें भगवान् नीलकण्ठके नामसे प्रसिद्ध होकर सबका कल्याण करते थे। फिर त्रेतायुगमें वे भगवान् हरके नामसे विख्यात हुए, द्वापरमें उनकी शर्व संज्ञा होती है और कलियुगमें वे घवलेश्वर नामसे प्रसिद्ध होते हैं। जो श्रेष्ठ मानव यहाँ स्नान और दान करते हैं, वे धर्म, अर्थ और कामका उपभोग करके शिवधामको जाते हैं। चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण तथा पिताकी वार्षिक तिथिको श्राद्ध करनेसे जो फल मिलता है, उसे धवलेश्वर तीर्थमें मनुष्य अनायास ही प्राप्त कर लेता है। देवि ! धवलेश्वर में कालसे प्रेरित होकर सदा ही जो प्राणी मृत्युको प्राप्त होते हैं, वे जबतक सूर्य और चन्द्रमा हैं तबतक शिवधाममें निवास करते हैं।
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पूर्वकालकी बात है, एक बुड्डा भैंसा, जो वृद्धावस्थाके कारण जर्जर हो रहा था, बोझ ढोनेमें असमर्थ हो गया। यह देख व्यापारीने उसको रास्तेमें ही त्याग दिया । गर्मीका महीना था, वह पानी पीनेके लिये महानदी साभ्रमतीके तटपर आया। दैववश वह भैंसा कीचड़ में फँस गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। नदीके पवित्र जलमें उसकी हड्डियाँ बह गयीं। उस तीर्थके प्रभावसे वह भैंसा कान्यकुब्ज देशके राजाका पुत्र हुआ। क्रमशः बड़े होनेपर उसे राज्यसिंहासनपर बिठाया गया। उसे अपने पूर्वजन्मका स्मरण बना रहा। वहाँ अपने पूर्व वृत्तान्तको याद करके उस तीर्थके प्रभावका विचार कर वह राजा उक्त तीर्थमें आया और वहाँके जलमें स्नान करके उसने अनेक प्रकारके दान किये। साथ ही उस तीर्थमें राजाने देवाधिदेव महेश्वरकी स्थापना की। वहाँ स्नान करके महिषेश्वरका पूजन तथा बाल सूर्यके मुखका दर्शन करके मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। यों तो समूची साभ्रमती नदी ही परम पवित्र है, किन्तु बालार्क क्षेत्रमें उसकी पावनता विशेष बढ़ गयी है।