________________
८१०
*******................................................
·
HORY
अर्थयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
--------------AND
श्रीनृसिंहचतुर्दशीके व्रत तथा श्रीनृसिंहतीर्थकी महिमा
श्रीमहादेवजी कहते हैं-देवि ! सुनो, अब मैं तुम्हें त्रिलोकदुर्लभ व्रतका वर्णन सुनाता हूँ, जिसके सुननेसे मनुष्य ब्रह्महत्या आदि पातकोंसे मुक्त हो जाता है। स्वयंप्रकाश परमात्मा जब भक्तोंको सुख देनेके लिये अवतार ग्रहण करते हैं, वह तिथि और मास भी पुण्यके कारण बन जाते हैं। देवि! जिनके नामका उच्चारण करनेवाला पुरुष सनातन मोक्षको प्राप्त होता है, वे परमात्मा कारणोंके भी कारण हैं। वे सम्पूर्ण विश्वके आत्मा, विश्वस्वरूप और सबके प्रभु हैं जिन्होंने बारह सूर्योको धारण कर रखा हैं, वे ही भगवान् भक्तोंका अभीष्ट सिद्ध करनेके लिये महात्मा नृसिंहके रूपमें प्रकट हुए थे ।
देवि ! जब हिरण्यकशिपु नामक दैत्यका वध करके देवाधिदेव जगद्गुरु भगवान् नृसिंह सुखपूर्वक विराजमान हुए, तब उनकी गोद में बैठे हुए ज्ञानियोंमें श्रेष्ठ प्रह्लादजीने उनसे इस प्रकार प्रश्न किया- 'सर्वव्यापी भगवान् नारायण! नृसिंहका अद्भुत रूप धारण करनेवाले
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
आपको नमस्कार है। सुरश्रेष्ठ! मैं आपका भक्त हूँ, अतः यथार्थ बात जाननेके लिये आपसे पूछता हूँ। स्वामिन् ! आपके प्रति मेरी अभेद-भक्ति अनेक प्रकारसे स्थिर हुई है। प्रभो! मैं आपको इतना प्रिय कैसे हुआ ? इसका कारण बताइये।'
भगवान् नृसिंह बोले- वत्स ! तुम पूर्वजन्ममें किसी ब्राह्मणके पुत्र थे। फिर भी तुमने वेदोंका अध्ययन नहीं किया। उस समय तुम्हारा नाम वसुदेव था। उस जन्ममें तुमसे कुछ भी पुण्य नहीं बन पड़ा। केवल मेरे व्रतके प्रभावसे मेरे प्रति तुम्हारी भक्ति हुई। पूर्वकालमे ब्रह्माजीने सृष्टि रचनाके लिये इस उत्तम व्रतका अनुष्ठान किया था। मेरे व्रतके प्रभावसे ही उन्होंने चराचर जगत्की रचना की है। और भी बहुत से देवताओं, प्राचीन ऋषियों तथा परम बुद्धिमान् राजाओंने मेरे उत्तम व्रतका पालन किया है और उसके प्रभावसे उन्हें सब प्रकारकी सिद्धियाँ प्राप्त हुई हैं। स्त्री या पुरुष, जो कोई भी इस उत्तम व्रतका अनुष्ठान करते हैं, उन्हें मैं सौख्य, भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करता हूँ ।
प्रह्लादने पूछा- देव ! अब मैं इस व्रतकी उत्तम विधिको सुनना चाहता हूँ। प्रभो! किस महीनेमें और किस दिनको यह व्रत आता है ? यह विस्तारके साथ बतानेकी कृपा कीजिये ।
भगवान् नृसिंह बोले- बेटा ! प्रह्लाद ! तुम्हारा कल्याण हो । एकाग्रचित्त होकर इस व्रतको श्रवण करो। यह व्रत मेरे प्रादुर्भावसे सम्बन्ध रखता है, अतः वैशाखके शुक्लपक्षकी चतुर्दशी तिथिको इसका अनुष्ठान करना चाहिये। इससे मुझे बड़ा सन्तोष होता है। पुत्र! भक्तोंको सुख देनेके लिये जिस प्रकार मेरा आविर्भाव हुआ, वह प्रसङ्ग सुनो। पश्चिम दिशामें एक विशेष कारणसे मैं प्रकट हुआ था। वह स्थान अब मूलस्थान (मुलतान) क्षेत्रके नामसे प्रसिद्ध है, जो परम पवित्र और समस्त पापोंका नाशक है। उस क्षेत्रमें हारीत नामक एक प्रसिद्ध ब्राह्मण रहते थे, जो वेदोंके पारगामी विद्वान् और ज्ञान-ध्यानमें