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अवयस्य हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
हत्या दूर करनेके उपायपर विचार किया। उन्होंने अग्नि स्वीकृति दे दी। फिर लोकपितामह ब्रह्माजीने अप्सराओको
देवको बुलाकर कहा- अमे! तुम इन्द्रकी ब्रह्महत्याका चौथाई भाग ग्रहण करो।'
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मेरे छूटनेका क्या उपाय है ?
ब्रह्माजी बोले- अग्ने ! जो तुम्हें प्रज्वलित रूपमें पाकर कभी बीज, ओषधि, तिल, फल, मूल, समिधा और कुश आदिके द्वारा तुममें आहुति नहीं डालेगा, उस समय ब्रह्महत्या तुम्हें छोड़कर उसीमें प्रवेश कर जायगी।
यह सुनकर अग्निने ब्रह्माजीकी आज्ञा शिरोधार्य की। तत्पश्चात् पितामहने वृक्ष, ओषधि और तृण आदिको बुलाकर उनके सामने भी यही प्रस्ताव रखा। यह बात सुनकर उन्हें भी अग्रिकी ही भाँति कष्ट हुआ; अतः वे ब्रह्माजीसे इस प्रकार बोले- पितामह हमारी ब्रह्महत्याका अन्त कैसे होगा ?"
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
अग्झिने कहा - प्रभो ! इस ब्रह्महत्याके दोषसे इसके चौथे भागको तुमलोग ग्रहण करो।'
ब्रह्माजीने कहा- जो मनुष्य महान् मोहके वशीभूत होकर अकारण तुम्हें काटे या चीरेगा, ब्रह्महत्या उसीको लग जायगी।
बुलाकर मधुर वाणीमें उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा'अप्सराओ! यह ब्रह्महत्या वृत्रासुरके शरीरसे आयी है;
तब ओषधि और तृण आदिने 'हाँ' कहकर अपनी विचार कीजिये ।
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अप्सराएँ बोलीं- देवेश्वर! आपकी आज्ञासे हम इसे ग्रहण करनेको तैयार हैं; परन्तु हमारे उद्धारका कोई उपाय भी आपको सोचना चाहिये।
ब्रह्माजीने कहा- जो रजस्वला स्त्रीसे मैथुन करेगा, उसीके अंदर यह तुरंत चली जायगी ।
'बहुत अच्छा' कहकर अप्सराओंने हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की और अपने-अपने स्थानपर जाकर वे विहार करने लगीं। तदनन्तर लोकविधाता ब्रह्माजीने जलका स्मरण किया। जब जल उपस्थित हुआ, तब ब्रह्माजीने कहा—'यह भयानक ब्रह्महत्या वृत्रासुरके शरीरसे निकलकर इन्द्रके ऊपर आयी है। इसका चौथा भाग तुम ग्रहण करो।'
जलने कहा - लोकेश्वर! आप हमें जो आज्ञा देते हैं, वही होगा; परन्तु हमारे उद्धारके उपायका भी