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उत्तरखण्ड]
. बार्बनी आदि तीथोकी महिमा .
स्तुति कर रहे थे। उधर युद्धके मुहानेपर खड़े हुए देवलोकको राजधानीमें प्रवेश किया। वृत्रासुरके शरीरमें जो सहसा पराजयके चिह्न प्रकट हुए, । तदनन्तर अत्यन्त भयङ्कर ब्रह्महत्या रौद्ररूप धारण उनका वर्णन करता हूँ सुनो। वृत्रासुरका मुख अत्यन्त किये वृत्रके शरीरसे निकली और इन्द्रको ढूँढ़ने लगी। भयानक और जलता हुआ-सा प्रतीत होने लगा। उसके उसने दौड़कर महातेजस्वी इन्द्रका पीछा किया और जब शरीरका तेज फीका पड़ गया। सारे अङ्ग काँपने लगे। वे दिखायी दिये, तब उसने उनका गला पकड़ लिया। जोर-जोरसे गरम साँस चलने लगी। वृत्रासुरके रोंगटे इन्द्रको ब्रह्महत्या लग गयी। वे किसी तरह उसे हटानेमें खड़े हो गये। उसके उच्छ्वासकी गति अत्यन्त तीव्र हो समर्थ न हो सके। उसी दशा में ब्रह्माजीके पास जाकर गयी। आकाशसे महाभयानक उल्कापात हुआ। उस उन्होंने मस्तक झुकाया। इन्द्रको ब्रह्महत्यासे गृहीत दैत्यके पास गिद्ध, बाज और कडू आदि पक्षी आकर अत्यन्त कठोर शब्द करने लगे। वे सब वृत्रासुरके ऊपर मण्डल बनाकर घूमने लगे। इतनेमें ही इन्द्र ऐरावत हाथीपर चढ़कर वहाँ आये। उनके उठे हुए हाथमें वज्र शोभा पा रहा था। इन्द्र ज्यों ही दैत्यके समीप पहुँचे, उसने अमानुषिक गर्जना की और वह उनके ऊपर टूट पड़ा। वृत्रासुरको अपनी ओर आते देख इन्द्रने उसके ऊपर वनका प्रहार किया और उस दैत्यको समुद्रके तटपर मार गिराया। उस समय इन्द्रके मस्तकपर फूलोंकी वर्षा होने लगी। उस भयङ्कर दानवराजका
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जानकर ब्रह्माजीने उसका स्मरण किया। उनके स्मरण करते ही ब्रह्महत्या ब्रह्माजीके पास उपस्थित हुई।
ब्रह्माजीने कहा-देवि ! मेरा प्रिय कार्य करो। देवराज इन्द्रको छोड़ दो। बताओ, तुम क्या चाहती हो? मैं तुम्हारी कौन-सी इच्छा पूर्ण करूं? 1 ब्रह्महत्या बोली-सुरश्रेष्ठ ! मैं आपकी आज्ञा मानकर इन्द्रके शरीरसे अलग हो जाऊँगी, किन्तु देवदेव ! मुझे कोई दूसरा निवासस्थान दीजिये। आपको नमस्कार है। भगवन् ! आपने ही तो लोकरक्षाके लिये यह मर्यादा बनायी है।
तब ब्रह्माजीने ब्रह्महत्यासे 'तथास्तु',कहकर इन्द्रकी
वध करके अमरोंके मुखसे अपनी स्तुति सुनते हुए इन्द्रने