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• अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
एकत्व ही सबके द्वारा जाननेयोग्य है। गीताशास्त्रमें वाटिकामें घूम रहा था। इसी बीच में कालरूपधारी काले इसीका प्रतिपादन हुआ है।
म साँपने उसे डंस लिया। सुशर्माकी मृत्यु हो गयी। __ अमिततेजस्वी भगवान् विष्णुके ये वचन सुनकर तदनन्तर वह अनेक नरकोंमें जा वहाँकी यातनाएँ लक्ष्मीदेवीने शङ्का उपस्थित करते हुए कहा- भोगकर मर्त्यलोकमें लौट आया और यहाँ बोझ 'भगवन् ! यदि आपका स्वरूप स्वयं परमानन्दमय और ढोनेवाला बैल हुआ। उस समय किसी पङ्गने अपने मन-वाणीको पहुँचके बाहर है तो गीता कैसे उसका बोध जीवनको आरामसे व्यतीत करनेके लिये उसे खरीद कराती है? मेरे इस सन्देहका आप निवारण कीजिये। लिया। बैलने अपनी पीठपर पङ्गका भार ढोते हुए बड़े
श्रीभगवान् बोले-सुन्दरि ! सुनो, मैं गोतामें कष्टसे सात-आठ वर्ष बिताये। एक दिन पङ्गने किसी अपनी स्थितिका वर्णन करता हूँ। क्रमशः पाँच ऊँचे स्थानपर बहुत देरतक बड़ी तेजीके साथ उस अध्यायोंको तुम पाँच मुख जानो, दस अध्यायोंको दस बैलको घुमाया। इससे वह थककर बड़े वेगसे पृथ्वीपर भुजाएँ समझो तथा एक अध्यायको उदर और दो गिरा और मूर्छित हो गया। उस समय वहाँ कुतूहलवश अध्यायोंको दोनों चरणकमल जानो। इस प्रकार यह आकृष्ट हो बहुत-से लोग एकत्रित हो गये। उस अठारह अध्यायोंकी वाङ्गयी ईश्वरीय मूर्ति ही समझनी जनसमुदायमेंसे किसी पुण्यात्मा व्यक्तिने उस बैलका चाहिये।* यह ज्ञानमात्रसे ही महान् पातकोंका नाश कल्याण करनेके लिये उसे अपना पुण्य दान किया। करनेवाली है। जो उत्तम बुद्धिवाला पुरुष गौताके एक तत्पश्चात् कुछ दूसरे लोगोंने भी अपने-अपने पुण्योंको या आधे अध्यायका अथवा एक, आधे या चौथाई याद करके उन्हें उसके लिये दान किया। उस भीड़में श्लोकका भी प्रतिदिन अभ्यास करता है, वह सुशर्माके एक वेश्या भी खड़ी थी। उसे अपने पुण्यका पता नहीं समान मुक्त हो जाता है।
था, तो भी उसने लोगोंकी देखा-देखी उस बैलके लिये श्रीलक्ष्मीजीने पूछा-देव ! सुशर्मा कौन कुछ त्याग किया। था? किस जातिका था? और किस कारणसे उसकी तदनन्तर यमराजके दूत उस मरे हुए प्राणीको पहले मुक्ति हुई?
___ यमपुरी ले गये। वहाँ यह विचारकर कि यह वेश्याके श्रीभगवान् बोले-प्रिये ! सुशर्मा बड़ी खोटी दिये हुए पुण्यसे पुण्यवान् हो गया है, उसे छोड़ दिया बुद्धिका मनुष्य था। पापियोंका तो वह शिरोमणि ही था। गया। फिर वह भूलोकमें आकर उत्तम कुल और उसका जन्म वैदिक ज्ञानसे शून्य एवं क्रूरतापूर्ण कर्म शीलवाले ब्राह्मणोंके घरमें उत्पन्न हुआ। उस समय भी करनेवाले ब्राह्मणोंके कुलमें हुआ था। वह न ध्यान उसे अपने पूर्वजन्मकी बातोंका स्मरण बना रहा। बहुत करता था न जप; न होम करता था न अतिथियोंका दिनोंके बाद अपने अज्ञानको दूर करनेवाले कल्याणसत्कार। वह लम्पट होनेके कारण सदा विषयोंके तत्वका जिज्ञासु होकर वह उस वेश्याके पास गया और सेवनमें ही आसक्त रहता था। हल जोतता और पत्ते उसके दानकी बात बतलाते हुए उसने पूछा-'तुमने बेंचकर जीविका चलाता था। उसे मदिरा पीनेका व्यसन कौन-सा पुण्य दान किया था ?' वेश्याने उत्तर दियाथा तथा वह मांस भी खाया करता था। इस प्रकार उसने 'वह पिंजरेमें बैठा हुआ तोता प्रतिदिन कुछ पढ़ता है। अपने जीवनका दीर्घकाल व्यतीत कर दिया। एक दिन उससे मेरा अन्तःकरण पवित्र हो गया है। उसीका पुण्य मूढबुद्धि सुशर्मा पत्ते लानेके लिये किसी ऋषिकी मैने तुम्हारे लिये दान किया था। इसके बाद उन दोनोंने
•णु सुश्रोणि वक्ष्यामि गोतासु स्थितिमात्मनः । वक्वाणि पञ्च जानीहि पञ्चाध्यायाननुक्रमात् ॥
दशाध्यायान्भुजाश्चैकमुदर दौ पदाम्बुजे । एवमष्टादशाध्यायी वाङ्गयी मूर्तिरवरी ॥ (१७१ । २७-२८)