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उतरखण्ड ] - • साभ्रमती-तटके बालार्क, दुधर तथा खङ्गधार आदि तीचोकी महिमाका वर्णन •
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उसका नामांधारणमात्रसे मनुष्य बड़े-बड़े पापोंसे भी है। यदि मनुष्य मेरे स्थानपर जाकर विशेषरूपसे मेरा छुटकारा पा जाता है। साभ्रमती नदीका जल जहाँ पूर्वसे पूजन करता है तो उसका सारा पाप तत्काल नष्ट हो पश्चिमकी ओर वहता है, वह स्थान प्रयागसे भी अधिक जाता है। जो इस तीर्थमें मेरी मिट्टीकी मूर्ति बनाकर पूजते पवित्र, समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाला और महान् हैं, वे मेरे परमधाममें निवास करते हैं। मेरा विग्रह है। वहाँ ब्राह्मणोंको दिया हुआ गौ, भूमि, तिल, सुवर्ण, कलियुगमें खङ्गधारेश्वरके नामसे विख्यात होता है। वस्त्र, अन्न, शय्या, भोजन, वाहन और छत्र आदिका सत्ययुगमें मैं 'मन्दिर' कहलाता हूँ और त्रेतामें गौरव' । दान, अभिमें किया हुआ हवन, पितरोंके लिये किया द्वापरमें मेरा 'विश्वविख्यात' नाम होता है और कलियुगमें गया श्राद्ध तथा जप आदि कर्म अक्षय हो जाता है। उस 'खनेश्वर' या 'खगधारेश्वर' । इस तीर्थके दक्षिण भागमें तीर्थमे मनुष्य जिस-जिस वस्तुकी कामना करता है, मेरा स्थान है-यह जानकर जो विद्वान् वहीं मेरी मूर्ति वह-वह उसे महेश्वरकी कृपा तथा तीर्थके प्रभावसे प्राप्त बनाता और नित्य उसकी पूजा करता है, उसे मनोवाञ्छित होती है।
फलकी प्राप्ति होती है। वह मानव धर्म, अर्थ, काम और अब दुर्धर्षेश्वर नामक एक दूसरे उत्तम तीर्थका मोक्ष-चारों पुरुषार्थीको प्राप्त कर लेता है। देवेश्वरि ! जो वर्णन करता हूँ। उसके स्मरण करनेमात्रसे पापी भी लोग लोकनाथ महेश्वरको धूप, दीप, नैवेद्य तथा चन्दन पुण्यवान् हो जाता है। देवासुर-संग्रामकी समाप्ति और आदि अर्पण करते हैं, उन्हें कभी दुःख नहीं होता। दैत्योंका संहार हो जानेपर भृगुनन्दन शुक्राचार्यने वहाँ खङ्गधार तीर्थसे दक्षिणकी ओर परम पावन कठोर व्रतका पालन करके लोक-सृष्टिके कारणभूत दुग्धेश्वर तीर्थ बताया गया है, जो सब पापोंका नाश दुर्धर्ष देवता महादेवजीकी समाराधना की और उनसे करनेवाला है। उस तीर्थमे नान करके दुग्धेश्वर शिवका दैत्योंके जीवनके लिये मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की। दर्शन करनेपर मनुष्य पापजनित दुःखसे तत्काल तबसे यह तीर्थ भूमण्डलमें उन्हींके नामपर विख्यात छुटकारा पा जाता है। साभमतीके सुन्दर तटपर जहाँ हुआ। काव्यतीर्थमें स्रान करके दुर्धर्षेश्वर नामक परम पुण्यमयी चन्द्रभागा नदी आकर मिली है, महर्षि महादेवका पूजन करनेसे मनुष्य सब पापोंसे छुटकारा पा दधीचिने भारी तपस्या की थी। वहां किये हुए नान, जाता है।
दान, जप, पूजा और तप आदि समस्त शुभ कर्म साभ्रमती नदीके तटपर खड्गधार नामसे विख्यात दुग्धतीर्थक प्रभावसे अक्षय होते हैं। कि एक परम पावन तीर्थ है, जो अब गुप्त हो गया है और दुग्धेश्वर तीर्थसे पूर्वकी ओर एक परम पावन तीर्थ जहाँ प्रसङ्गवश भी कभी अचानक सान और जलपान है, जहाँ साभ्रमतीमें चन्द्रभागा नदी मिली है। वहाँ कर लेनेपर मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो रुद्रलोकमें पुण्यदाता चन्द्रेश्वर नामक महादेवजी नित्य विराजमान प्रतिष्ठित होता है। वहाँ कश्यपके पीछे जाती हुई पवित्र रहते हैं। जो सम्पूर्ण लोकोको सुख देनेवाले, परम महान् साभ्रमती नदीको पातालकी ओर जाते देख रुद्रने उसे और सर्वत्र व्यापक हैं, वे ही भगवान् 'हर' वहाँ निवास अपने जटाजूटमें धारण कर लिया तथा वे रुद्र खड्गधार करते हैं। उस तीर्थमें चन्द्रमाने दीर्घकालतक तप किया नामसे विख्यात होकर वहीं रहने लगे। देवेश्वरि ! वहाँ था और उन्होंने ही चन्द्रेश्वर नामक महादेवकी स्थापना स्नान करनेसे पापी भी स्वर्गमें चले जाते हैं। पार्वती! की थी। वहाँ स्नान, जलपान और शिवकी पूजा माघमें, वैशाखमें तथा विशेषतः कार्तिककी पूर्णिमाको करनेवाले मनुष्य धर्म और अर्थ प्राप्त करते हैं। जो लोग जो वहाँ स्नान करते हैं, वे मुक्त हो जाते हैं। वसिष्ठ, वहाँ विशेषरूपसे वृषोत्सर्ग आदि कर्म करते हैं, वे पहले वामदेव, भारद्वाज और गौतम आदि ऋषि वहाँ सान स्वर्ग भोगकर पीछे शिवधामको जाते हैं। जो दूसरे तटपर तथा भगवान् शिवका दर्शन करनेके लिये आया करते जाकर समस्त पापोंका नाश करनेवाले चन्द्रेश्वर नामक