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उत्तरखण्ड साभपती-तटके कपीश्वर, एकधार, सप्तधार और ब्रह्मवल्ली आदि तीर्थोकी महिमाका वर्णन .
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उन्होंने चन्दना नदीके तटपर सात राततक निवास किया। मनुष्य तीर्थमें स्रान करके मधुर नामसे विख्यात भगवान् उसके बाद भोज, वृष्णि और अन्धक-वंशियोसे घिरे हुए सूर्यकी पूजा करता है और माधके शुक्लपक्षकी सप्तमीको वे समस्त यादव-वीरोंके साथ मधुरातीर्थमें आये और कपिला मौका दान करता है, वह इस लोकमें दीर्घकालवहाँ विधिपूर्वक स्रान करके द्वारकापुरीको गये। जो तक सुख भोगनेके पश्चात् सूर्यलोकको जाता है। का
1 -*साभ्रमती-तटके कपीश्वर, एकधार, सप्तधार और ब्रह्मवल्ली आदितीथोकी महिमाका वर्णन
का महादेवजी कहते हैं-पार्वती ! मनुष्य इसलिये यह सप्तधार तीर्थ कहलाता है। सात लोकोंमें कम्बुतीर्थमें स्नान और पितृतर्पण करके रोग-शोकसे जो गङ्गाजीके सात रूप सुने जाते हैं, वे सभी इस रहित देवदेवेश्वर भगवान् नारायणका पूजन करे। फिर सप्तधार नामक तीर्थमें अपने पवित्र जलको प्रवाहित ब्राह्मणोंको विधिपूर्वक दान दे। ऐसा करनेपर वह उस करते हैं । सप्तधार तीर्थमें किया हुआ श्राद्ध पितरोंको तृप्ति तीर्थके प्रभावसे श्रीविष्णुधामको प्राप्त होता है। उसके प्रदान करनेवाला होता है। बाद कपीश्वर नामक तीर्थकी यात्रा करे। वह रक्तसिंहके देवेश्वरि ! वहाँसे ब्रह्मवल्ली नामक महान् तीर्थको समीप है और महापातकोंका नाश करनेवाला है। यात्रा करे। उस तीर्थके स्वरूपका वर्णन सुनो। जहाँ पूर्वकालमें श्रीराम-रावण-युद्धके प्रारम्भमें जब समुद्रपर साभ्रमती नदीका जल ब्रह्मवल्लीके जलसे मिला है, वह पुल बाँधा जा रहा था, उस समय इस पर्वतका शिखर स्थान ब्रह्मतीर्थ कहलाता है। उसका महत्त्व प्रयागके लेकर कपियोंने इसका विशेषरूपसे स्मरण किया। समान माना गया है। ब्रह्माजीका कथन है कि वहाँ उन्होंने यहाँ कपीश्वरादित्य नामक उत्तम तीर्थकी स्थापना पिण्डदान करनेसे पितरोंको बारह वर्षातक तृप्ति बनी की। उस तीर्थमें स्नान और पितृतर्पण करके कपीश्वरा- रहती है। विशेषतः ब्रह्मवल्लीमें पिण्डदानका गयादित्यका दर्शन करनेपर मनुष्य ब्रह्महत्यासे मुक्त हो जाता श्राद्धके समान पुण्य माना गया है। पुष्कर, गङ्गानदी और है। कपीश्वरतीर्थ में विशेषतः चैत्रकी अष्टमीको नान अमरकण्टक क्षेत्रमें जानेसे जो फल मिलता है, वह करना चाहिये । हनुमान्जी आदि प्रमुख वीरोंने इस तीर्थमें ब्रह्मवल्ली में विशेषरूपसे प्राप्त होता है। चन्द्रग्रहण और तीन दिनोंतक स्रान किया था। पार्वती ! इस प्रकार मैंने सूर्यग्रहणके समय जो लोग दान करते है, उन्हें तुम्हारे लिये कपितीर्थक प्रभावका वर्णन किया है। मिलनेवाला फल ब्रह्मवल्लीमें स्वतः प्राप्त हो जाता है। वहाँसे परमपावन एकधार तीर्थको जाना चाहिये। जो बहावल्लीमें स्रान करके गलेमें तुलसीकी माला धारण एकधारमें नान करके एक रात्रि उपवास करता और किये भगवान् नारायणका स्मरण करता हुआ मनुष्य स्वामिदेवेश्वरका पूजन करता है, वह अपनी सौ दिव्य वैकुण्ठधाममें जाता है, जो आनन्दस्वरूप एवं पीढ़ियोंका उद्धार कर देता है। वहाँ सान और जलपान अविनाशी पद है। करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकमें जाता है। तत्पश्चात् तीर्थयात्री तत्पश्चात् वृषतीर्थमें जाय, जो खण्डतीर्थके नामसे पुरुष सप्तधार नामक तीर्थकी यात्रा करे । वह सब तीर्थोंमें भी प्रसिद्ध है। पूर्वकालमें गौएँ वहाँ स्नान करके दिव्य उत्तम तीर्थ है। उस तीर्थको मुनियोंने सप्त-सारस्वत नाम गोलोकधामको प्राप्त हुई थीं। उस तीर्थमें निराहार रहकर दिया है। त्रेतायुगमें महर्षि मङ्किने वहाँ मङ्कितीर्थका जो गौओंके लिये पिण्डदान करता है, वह चौदह इन्द्रोंकी निर्माण किया था। फिर द्वापरमें पाण्डवोंने सप्तधार आयुपर्यन्त सुखी एवं अभ्युदयशाली होता है, करोड़ तीर्थको प्रवृत्त किया। भगवान् शङ्करको जटासे निकला गौओके दानसे मनुष्यको जिस फलकी प्राप्ति होती है, हुआ गङ्गाजल यहाँ सात धाराओंके रूपमें प्रकट हुआ, वह खण्डतीर्थमे निस्सन्देह प्राप्त हो जाता है। जो