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• अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
किये ही रहना, सज्जन पुरुषोंको कलङ्क लगाना, भगवान् विष्णु और वैष्णवोंकी सर्वदा निन्दा करना - यही मेरा काम था। मैं दुराचारी और दुरात्मा था। जहाँ जीमें आता, वहीं खा लेता। कभी भी शौचाचारका पालन नहीं करता था । द्विजराज ! उसी पापकर्मके योगसे मैं मृत्युके बादसे प्रेतयोनिमें पड़ा हूँ यहाँ नाना प्रकारके दुःख सहन करने पड़ते हैं। जिसके माता, पिता, स्वजन एवं बन्धु बान्धव नहीं है। उसके लिये गुरु ही माता हैं और गुरु ही उत्तम गति हैं। ब्रह्मन् ! ऐसा जानकर मुझे मोक्ष प्रदान कीजिये।
कोडने कहा- राजन् ! मैं तुम्हारी प्रार्थना पूर्ण करूँगा। तुम्हारे साथ जो ग्यारह प्रेत और हैं, इन्हें भी इस तीर्थमें मुक्ति दिलाऊँगा ।
पार्वती ! यों कहकर ब्राह्मण कहोडने सबके साथ तीर्थमें जाकर तिलसहित पिण्डदान एवं जलदानका कार्य किया। तीर्थमें मास और तिथिका कोई विचार नहीं है। वहाँ जाकर सदा ही श्राद्धादि कर्म करने चाहिये। यह बात पूर्वकालमें ब्रह्माजीने मुझसे कही थी। ब्राह्मणके द्वारा श्राद्धकी क्रिया पूर्ण होनेपर उस श्रेष्ठ तीर्थमें वे सभी
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
प्रेत मुक्त हो गये और उत्तम विमानपर बैठकर मेरे धामको चले गये। सुरेश्वरि ! जहाँ साभ्रमतीके साथ गोक्षुरा नदीका संगम हुआ है, वहाँ स्नान और दान करनेसे करोड़ यज्ञोंका फल होता है। कपालेश्वर क्षेत्रमें जहाँ अग्नितीर्थ है, वहाँ साभ्रमती नदी मुक्ति देनेवाली बतायी गयी है।
देवि! अब मैं दूसरे तीर्थ हिरण्यासंगमका वर्णन करता हूँ। वह महान् तीर्थ है। पूर्वकालमें जब साश्रमती गङ्गा सात धाराओंमें विभक्त हुई, उस समय वह ब्रह्मतनया सप्तस्रोताके नामसे विख्यात हुई। उसके सातवे स्त्रोतको ही हिरण्या कहते हैं। ऋक्ष और मझुमके बीचमें सत्यवान् नामक पर्वत है। उससे पूर्व दिशामें हिरण्यासंगम नामक महातीर्थ है, जिसमें स्नान और जलपान करनेसे मनुष्य शुभगतिको प्राप्त होता है। वहाँसे वनस्थलीमें जाय और पापहारी भगवान् नारायणका दर्शन करे। यह वही स्थान है, जहाँ भगवान् नर और नारायणने उत्तम तपस्या की थी। एक हजार कपिला गौओंके दानसे जो फल मिलता है, दशाश्वमेधतीर्थमें चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहणके समय स्नानसे जो पुण्य होता है तथा तुलापुरुषके दानसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, उसी पुण्यफलको मनुष्य हिरण्यासंगममें स्नान करके प्राप्त कर लेता है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र – जो भी हिरण्यासंगममें स्नान करते हैं, वे शिवधामको जाते हैं।
देवि ! अब मैं हिरण्यासंगमके बाद आनेवाले धर्मतीर्थका वर्णन करता हूँ, जहाँ साभ्रमती गङ्गाके साथ धर्मावती नदीका संगम हुआ है। वहाँ स्नान करके मनुष्य धन्य हो जाता है और निश्चय ही स्वर्गलोकको प्राप्त होता है। जो वहाँ धर्मद्वारा स्थापित तीर्थका दर्शन करता है, वह पुण्यका भागी होता है। जो लोग वहाँ श्राद्ध करते हैं, वे पितृऋणसे मुक्त हो जाते हैं। वहाँसे मधुरातीर्थकी यात्रा करे, जहाँ सब पापोंका नाश हो जाता है। मधुरातीर्थमें स्नान करके मधुर संज्ञक श्रीहरिका दर्शन करना चाहिये। कंसासुरका वध हो जानेके पश्चात् जब भगवान् श्रीकृष्ण द्वारकापुरीको जाने लगे, उस समय