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उत्तरखण्ड ]
. अमितीर्थ, हिरण्यासंगमतीर्थ, धर्मतीर्थ आदिकी महिमा .
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का अनितीर्थ, हिरण्यासंगमतीर्थ, धर्मतीर्थ आदिकी महिमा
.. महादेवजी कहते हैं-पार्वती ! साभ्रमतीके पास रूपमें उत्पन्न हुआ। जबतक उसने राज्य किया, कभी ही ईशान-कोणमें पालेश्वर नामक तीर्थ है, जहाँ मन और क्रियाद्वारा भी पुण्य कर्म नहीं किया था चण्डीदेवी प्रतिष्ठित हैं। वह योगमाताओंका पीठ है, जो इसलिये दैवात् मृत्यु होनेपर वह प्रेतराज हुआ। सूखा समस्त सिद्धियोंका साधक है। वहाँ जगत्पर अनुग्रह हुआ मुँह, कङ्काल शरीर, पीला रंग, विकराल रूप और करने और सब देवताओंका कार्य सिद्ध करनेके लिये गहरी आँखे-यही उसकी आकृति थी। वह महापापी माताएँ परम यत्नपूर्वक स्थित हैं। उस तीर्थमें दृढ़तापूर्वक प्रेत अन्य दुष्ट प्रेतोंके साथ रहता था। उसके रोएँ व्रतका पालन करते हुए तीन रात निवास करके मनुष्य ऊपरको उठे हुए थे। जटाओंसे युक्त होनेके कारण वह चण्डीपति भगवान् शङ्करके समीप जा उनका दर्शन करे भयङ्कर जान पड़ता था। उसे इस रूपमें देखकर
और उनके निकट साभ्रमती नदीमें स्नान करके समाधि- आश्रमवासी ब्राह्मण कहोड व्याकुल हो उठे। विधिसे युक्त हो मातृ-मण्डलके दर्शन के लिये जाय; ऐसा करनेसे मनुष्य सहस्र गोदानोंका फल पाता है। अग्रितीर्थमें स्रान करके चामुण्डाका दर्शन करनेपर मनुष्यको राक्षस, भूत और पिशाचोंका भय नहीं रहता।। पार्वती ! साभ्रमतीमें जहाँ गोक्षुरा नदी मिली है, वहाँ सहस्रों तीर्थ हैं। वहाँ तिलके चूर्णसे श्राद्ध करना चाहिये। उस तीर्थ में पिण्डदान करके ब्राह्मणोंको भोजन करानेसे अक्षय पदकी प्राप्ति होती है। का पूर्वकालमें कुकर्दम नामक एक पापिष्ठ एवं दुर्धर्ष राजा रहता था, जो बड़ा ही खल, मूढ, अहङ्कारी, ब्राह्मणोंका निन्दक, गोहत्यारा, बालघाती और सदा उन्मत्त रहनेवाला था। पिण्डार नामक नगरमें वह राज्य करता था। एक समय अधर्मके ही योगमे उसकी मृत्यु हो गयी। मरनेपर वह प्रेत हुआ। उसे हवातक पीनेको नहीं मिलती थी; अतः वह अनेक प्रेतोंके साथ करुणस्वरमें रोता और हाहाकार मचाता हुआ इधर-उधर भटकता फिरता था। एक समय दैवयोगसे वह अपने कहोड बोले-राजन् ! यह अग्निपालेश्वर तीर्थ गुरुके आश्रमपर जा पहुँचा। पूर्वजन्ममें उसने कुछ है। मैं इस परम अद्भुत, मनोरम एवं रमणीय स्थानमें पुण्य किया था, जिसके योगसे उसे गुरुका सत्सङ्ग प्रतिदिन निवास करता हूँ। तुम तो मेरे यजमान हो। फिर प्राप्त हुआ।
इस प्रकार प्रेतराज कैसे हो गये? - पार्वती ! पूर्वजन्ममें वह वेदपाठी ब्राह्मण था और प्रेत बोला-देव ! मैं वही पिण्डारपुरका कुकर्म प्रतिदिन महादेवजीकी पूजा तथा अतिथियोंका स्वागत- राजा हूँ। वहाँ रहकर मैंने जो कुछ किया है, उसे सुनिये। सत्कार करके ही भोजन करता था। उस पुण्यके वाहाणोंकी हिंसा, असत्यभाषण, प्रजाओंका उत्पीड़न, प्रभावसे वह श्रेष्ठ ब्राह्मण पिण्डारपुण्ड्रमें राजा कुकदर्मके जीवोंकी हत्या, गौओंको दुःख देना, सदा बिना स्नान