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• अर्चयस्व हपोकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
होनेवाला जो कुछ भी दुष्कर्म या दुःस्वप्न होता है, वह वाद्य आदि माङ्गलिक उत्सवोंके साथ भगवानके समीप कार्तिक-व्रतमें लगे हुए पुरुषको देखकर तत्काल नष्ट हो जागरण करना चाहिये। जो भगवान् विष्णुके समीप जाता है। इन्द्र आदि देवता भगवान् विष्णुको आज्ञासे जागरणकालमें भक्तिपूर्वक गान करते हैं, वे सौ जन्मोंकी प्रेरित होकर कार्तिकका व्रत करनेवाले पुरुषको निरन्तर पापराशिसे मुक्त हो जाते हैं। भगवान् विष्णुके निमित्त रक्षा करते रहते हैं-ठीक उसी तरह, जैसे सेवक जागरणकालमें गीत-वाद्य करनेवालों तथा सहस्र गोदान राजाकी रक्षा करते है। जहाँ सबके द्वारा सम्मानित करनेवालोको भी समान फलको ही प्राप्ति बतलायी गयी वैष्णव-व्रतका अनुष्ठान करनेवाला पुरुष नित्य निवास है। जो रात्रिमें वासुदेवके समक्ष जागरण करते समय करता है, वहाँ ग्रह, भूत, पिशाच आदि नहीं रहते। भगवान् विष्णुके चरित्रोंका पाठ करके वैष्णव पुरुषोंका
राजन् ! अब मैं कार्तिक-व्रतके अनुष्ठानमें लगे हुए मनोरञ्जन करता है तथा मनमानी बातें नहीं करता, उसे पुरुषके लिये उत्तम उद्यापन-विधिका संक्षेपसे वर्णन प्रतिदिन कोटि तीर्थोक सेवनके समान पुण्य प्राप्त होता है। करता हूँ। तुम एकाग्रचित होकर सुनो। व्रती मनुष्य रात्रि-जागरणके पश्चात् पूर्णिमाको प्रातःकाल अपनी कार्तिक शुरूपक्षकी चतुर्दशीको व्रतकी पूर्ति तथा शक्तिके अनुसार तीस या एक सपत्नीक ब्राह्मणको भगवान् विष्णुकी प्रसन्नताके लिये उद्यापन करे। भोजनके लिये निमन्वित करे । उस दिन किया हुआ दान, तुलसीजीके ऊपर एक सुन्दर मण्डप बनाये, जिसमें चार होम और जप अक्षय फल देनेवाला माना गया है; अतः दरवाजे बने हों; उस मण्डपमें सुन्दर बंदनवार लगाकर व्रती पुरुष खीर आदिके द्वारा ब्राह्मणोंको भलीभाँति भोजन उसे पुष्पमय चैवरसे सुशोभित करे। चारों दरवाजोंपर कराये। 'अतो देवाः' आदि दो मन्त्रोंसे देवदेव भगवान् पृथक्-पृथक् मिट्टीके चार द्वारपाल-पुण्यशील, विष्णु तथा अन्य देवताओंकी प्रसन्नताके लिये पृथक्सुशील, जय और विजयकी स्थापना करके उन सबका पृथक् तिल और खोरको आहुति छोड़े। फिर यथाशक्ति पूजन करे। तुलसीके मूलभागमें वेदीपर सर्वतोभद्र दक्षिणा दे उन्हें प्रणाम करे । इसके बाद भगवान् विष्णु, मण्डल बनाये, जो चार रंगोंसे रञ्जित होकर सुन्दर देवगण तथा तुलसीका पुनः पूजन करे । कपिला गायकी शोभासम्पन्न और अत्यन्त मनोहर प्रतीत होता हो। विधिपूर्वक पूजा करे और व्रतका उपदेश करनेवाले सर्वतोभद्रके ऊपर पञ्चरत्नयुक्त कलशकी स्थापना करे। सपत्नीक आचार्यका भी वस्त्र तथा आभूषणों आदिके द्वारा उसके ऊपर नारियलका महान् फल रख दे। इस प्रकार पूजन करे। अन्तमें सब ब्राह्मणोंसे क्षमा-प्रार्थना कलश स्थापित करके उसके ऊपर समुद्रकन्या करे-'विप्रवरो! आपलोगोंकी कपासे देवेश्वर भगवान् लक्ष्मीजीके साथ शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाले विष्णु मुझपर सदा प्रसन्न रहें। मैंने गत सात जन्मोमें जो पीताम्बरधारी देवेश्वर श्रीविष्णु की पूजा करे । सर्वतोभद्रके पाप किये हों, वे सब इस व्रतके प्रभावसे नष्ट हो जायें। मण्डलमें इन्द्र आदि लोकपालोंका भी पूजन करना प्रतिदिन भगवान्के पूजनसे मेरे सम्पूर्ण मनोरथ सफल हों चाहिये। भगवान् द्वादशीको शयनसे उठे, त्रयोदशोको तथा इस देहका अन्त होनेपर में अत्यन्त दुर्लभ देवताओंने उनका दर्शन किया और चतुर्दशीको सबने वैकुण्ठधामको प्राप्त करूं।' उनकी पूजा की; इसीलिये इस समय भी उसी तिथिको इस प्रकार क्षमायाचना करके ब्राह्मणोंको प्रसन्न इनकी पूजा की जाती है। उस दिन शान्त एवं शुद्धचित्त करनेके पश्चात् उन्हें विदा करे और गौसहित भगवान् होकर भक्तिपूर्वक उपवास करना चाहिये तथा आचार्यकी विष्णुकी सुवर्णमयी प्रतिमा आचार्यको दान कर दे। आज्ञासे देवदेवेश्वर श्रीविष्णुकी सुवर्णमयी प्रतिमाका तत्पश्चात् भक्त पुरुष सुहृदों और गुरुजनोंके साथ स्वयं भी षोडशोपचारद्वारा नाना प्रकारके भक्ष्य-भोज्य पदार्थ भोजन करे । कार्तिक हो या माघ, उसके लिये ऐसी ही प्रस्तुत करते हुए पूजन करना चाहिये । रात्रि गीत और विधि बतायी गयी है। जो मनुष्य इस प्रकार कार्तिकके