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उत्तरखण्ड ]
.वेप्रवती और साभ्रमती (साबरमती) नदीका माहात्म्य . ............................................................................................. महालय तीर्थ, पयोष्णीमें पिङ्गलेश्वर, सिंहिका तथा और गोहत्या करनेवाला पुरुष भी पापमुक्त हो जाता है। सौरवमें रवि तीर्थ, कृत्तिकाक्षेत्रमें कार्तिक तीर्थ, कलियुगमें द्वारकापुरी परम रमणीय है और वहाँके देवता शङ्करगिरिपर शङ्कर तीर्थ, सुभद्रा और समुद्रके संगमपर भगवान् श्रीकृष्ण परम धन्य है। जो मनुष्य वहाँ जाकर दिव्य उत्पल तीर्थ, विष्णुपर्वतपर गणपति तीर्थ, उनका दर्शन करते हैं, उन्हें अविचल मुक्ति प्राप्त होती है। जालन्धरमें विश्वमुख तीर्थ, तार एवं विष्णुपर्वतपर तारक महादेवि ! ऐसे परम धन्य देवता सर्वेश्वर प्रभु श्रीविष्णु तीर्थ, देवदारुवनमें पौण्ड्र तीर्थ, काश्मीरमण्डलमें पौष्क भगवान्का मैं निरन्तर चिन्तन करता रहता है। इस प्रकार तीर्थ, हिमालयपर भौम, हिम, तुष्टिक और पौष्टिक तीर्थ, यहाँ अनेक तीर्थोका नामोल्लेख किया गया है। जो मायापुरमें कपालमोचन तीर्थ, शङ्खोद्धारमें शङ्खधारकदेव, इनका जप करता अथवा इन्हें सुनता है, वह सब पापोंसे पिण्डमें पिण्डन, सिद्धिमें वैखानस और अच्छोद मुक्त हो जाता है। जो इन तीथोंमें स्रान करके पापहारी सरोवरपर विष्णुकाम तीर्थ है, जो धर्म, अर्थ, काम और भगवान् नारायणका दर्शन करता है, वह सब पापोंसे मोक्षको देनेवाला है। उत्तरकूलमें औषध्य तीर्थ, मुक्त हो भगवान् विष्णुके सनातन धामको जाता है। कुशद्वीपमें कुशोदक तीर्थ, हेमकूटमें मन्मथ तीर्थ, जगन्नाथपुरी महान् तीर्थ है। वह सब लोकोंको पवित्र कुमुदमें सत्यवादन तीर्थ, वदन्तीमें आश्मक तीर्थ, करनेवाली मानी गयो है। जो श्रेष्ठ मानव वहाँको यात्रा विन्ध्य-पर्वतपर वैमातृक तीर्थ और चित्तमें ब्रह्ममय तीर्थ करते हैं, वे परम गतिको प्राप्त होते हैं। जो श्राद्ध-कर्ममें है, जो सब तीर्थोंमें पावन माना गया है। सुन्दरि ! इन इन परम पवित्र तीर्थोके नाम सुनाता है, वह इस लोकमें सय तीर्थोंमें उत्तम तीर्थका वर्णन सुनो। भगवान् विष्णुके सुख भोगकर अन्तमें भगवान् विष्णुके सनातन धामको नामकी समता करनेवाला कोई तीर्थ न तो हुआ है और जाता है। गोदान, श्राद्धदान अथवा देवपूजाके समय न होगा। भगवान् केशवकी कृपासे उनका नाम प्रतिदिन जो विद्वान् इसका पाठ करता है, वह लेनेमात्रसे ब्रह्महत्यारा, सुवर्ण चुरानेवाला, बालघाती परमात्माको प्राप्त होता है।
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वेत्रवती और साभ्रमती (साबरमती) नदीका माहात्म्य
श्रीमहादेवजी कहते है-सुन्दरि ! अब मैं आश्रमोंको कलङ्कित किया करता था। वह मूर्ख वेदोकी वेत्रवती (बेतवा) नदीका माहात्म्य वर्णन करता हूँ, निन्दामें ही प्रवृत्त रहनेवाला, निर्दयी, शठ, असत् सुनो। वहाँ मान करनेसे मनुष्यकी मुक्ति हो जाती है। शास्त्रोंमें अनुराग रखनेवाला और परायी स्त्रियोंको दूषित पूर्वकालमें वृत्रासुरने एक बहुत ही गहरा कुआँ खुदवाया करनेवाला था। उसका नाम था विदारुण । वह अत्यन्त था, जिसका नाम महागम्भीर था। उसीसे यह दिव्य नदी पापी था। महान् पाप और ब्राह्मणोंकी निन्दा करनेके प्रकट हुई है। वेत्रवती नदी बड़े-बड़े पापोंकी राशिका कारण राजा विदारुण कोढ़ी हो गया। एक दिन विनाश करनेवाली है। गङ्गाजीके समान ही इस श्रेष्ठ दैवयोगसे वह शिकार खेलता हुआ उस नदीके किनारे नदीका भी माहात्म्य है। इसके दर्शन करनेमात्रसे आ निकला । उस समय उसे बड़े जोरकी प्यास सता रही पापराशि शान्त हो जाती है। पहलेकी बात है, चम्पक थी। घोड़ेसे उतरकर उसने नदीका जल पीया और पुनः नगरमें एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा ही दुष्ट और अपनी राजधानीको लौट गया। उस जलके पीनेमात्रसे प्रजाको पीड़ा देनेवाला था । वह नीच अधर्मका मूर्तिमान् राजाको कोढ़ दूर हो गयी और बुद्धिमें भी निर्मलता आ स्वरूप था। निरन्तर भगवान् विष्णुको निन्दा करता, गयी। तबसे उसके हृदयमें भगवान् विष्णुके प्रति भक्ति देवताओं और ब्राह्मणोंकी घातमें लगा रहता तथा उत्पन्न हो गयी। अब वह सदा ही समय-समयपर वहाँ