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उत्तरखण्ड ]
. अशक्तावस्थामें कार्तिक-ग्रतके निर्वाहका उपाय .
पापी कितने कष्ट भोगते हैं और किस प्रकार इधर-उधर रहे हैं। इस नरकके भी विगन्ध आदि छ: भेद हैं। क्रन्दन करते फिरते है। यह चौथा नरक तो और भी धनेश्वर ! अब इधर दृष्टि डालो। यह भयङ्कर दिखायी भयानक है। इसका नाम अर्गला है। देखो, यमराजके देनेवाला सातवाँ नरक कुम्भीपाक है। यह तेल आदि दूत नाना प्रकारके पाशोंसे बाँधकर इन पापियोंको मुद्गर द्रव्योंके भेदसे छः प्रकारका है। यमराजके दूत आदिसे पीट रहे हैं और ये जोर-जोरसे चीख रहे हैं। जो महापातकी पुरुषोंको इसीमें डालकर औटाते हैं और वे साधु पुरुषों और ब्राह्मण आदिको गला पकड़कर या और पापी इसमें अनेक हजार वर्षातक डूबते-उतराते रहते हैं। किसी उपायसे कहीं आने-जानेसे रोकते हैं, वे पापी देखो, वे भयानक नरक सब मिलाकर बयालीस हैं। यमराजके सेवकोंद्वारा यहाँ यातनामे डाले जाते हैं। वध बिना इच्छाके किया हुआ पातक शुष्क कहलाता है और
और भेदन आदिके द्वारा इस नरकके भी छः भेद है। अब इच्छापूर्वक किये हुए पातकको आर्द्र कहा गया है। आई पाँचवें नरकपर दृष्टिपात करो। इसका नाम कूटशाल्मलि और शुष्क आदि भेदोंसे प्रत्येक नरक दो प्रकारका है। है। यहाँ जो ये सेमल आदिके वृक्ष खड़े हैं, ये सभी इस प्रकार ये नरक पृथक्-पृथक् चौरासीको संख्यामे जलते हुए अंगारेके समान हैं। इसमें पापियोंको यातना स्थित हैं।, प्रकीर्ण, अपाङ्क्तेन्य, मलिनीकरण, दी जाती है। परायी स्त्री और पराये धनका अपहरण जातिभ्रंशकर, उपपातक, अतिपातक और महापातककरनेवाले तथा दूसरोंसे द्रोह करनेवाले पापी सदा ही यहाँ ये सात प्रकारके पातक माने गये हैं। इनके कारण पापी कष्ट भोगते हैं। यह छठा नरक और भी अद्भुत है। इसे पुरुष उपर्युक्त सात नरकोंमें क्रमशः यातना भोगते हैं। रक्तपूय कहते है-इसमें रक्त और पीब भरा रहता है। तुम्हें कार्तिक-व्रत करनेवाले पुरुषोंका संसर्ग प्राप्त हो इसकी ओर देखो तो सही, इसमें कितने ही पापी मनुष्य चुका था; इसलिये अधिक पुण्यराशिका सञ्चय हो जानेसे नीचे मुँह करके लटकाये गये हैं और भयानक कष्ट भोग नरकोंके कष्टसे छुटकारा मिल गया। रहे हैं। ये सब अभक्ष्य-भक्षण और निन्दा करनेवाले भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-सत्यभामा ! इस तथा चुगली खानेवाले हैं। कोई डूब रहे हैं, कोई मारे जा प्रकार प्रेतराज धनेश्वरको नरकोंका दर्शन कराकर उसे रहे हैं। ये सब-के-सब डरावनी आवाजके साथ चीख यक्षलोकमें ले गया तथा वहाँ जाकर वह यक्ष हुआ।
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अशक्तावस्थामें कार्तिक-व्रतके निर्वाहका उपाय
सूतजी कहते हैं-महर्षियो ! भगवान् वासुदेव मासके पाँच नियम है।* इन पाँचों नियमोके पालनसे अपनी प्रियतमा सत्यभामाको यह कथा सुनाकर कार्तिकका व्रत करनेवाला पुरुष पूर्ण फलका भागी सायंकालका सन्ध्योपासन करनेके लिये अपनी माता होता है। वह फल भोग और मोक्ष देनेवाला बताया देवकीके भवनमें चले गये। इस पापनाशक कार्तिक गया है। मासका ऐसा ही प्रभाव बतलाया गया है। यह भगवान् ऋषि बोले-रोमहर्षणकुमार सूतजी! आपने विष्णुको सदा ही प्रिय है तथा भोग और मोक्षरूपी फल इतिहाससहित कार्तिक मासको विधिका भलीभाँति वर्णन प्रदान करनेवाला है। रातमें भगवान् विष्णुके समीप किया। यह भगवान् विष्णुको प्रिय लगनेवाला तथा जागना, प्रातःकाल स्नान करना, तुलसीकी सेवामें संलग्न अत्यन्त उत्तम फल देनेवाला है। इसका प्रभाव बड़ा ही रहना, उद्यापन करना और दीप-दान देना-ये कार्तिक आश्चर्यजनक है। इसलिये इसका अनुष्ठान अवश्य
•हरिजागरण
प्रातःस्रानं
तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं अतान्येतानि कार्तिके॥ (११७॥३)