________________
उत्तरखण्ड ]
प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्व, भीष्मपाक-व्रतकी विधि.
७८३
कार्तिकके शुक्लपक्षमें एकादशीको विधिपूर्वक स्रान करे। फिर 'ॐ नमो वासुदेवाय' इस मन्त्रका एक सौ करके पांच दिनोंका व्रत ग्रहण करे। व्रती पुरुष प्रातः- आठ बार जप करे तथा उस षडक्षर मन्त्रके अन्तमें स्नान के बाद मध्याह्रके समय भी नदी, झरने या पोखरेपर 'स्वाहा' पद जोड़कर उसके उच्चारणपूर्वक घृतमिश्रित जाकर शरीरमें गोबर लगाकर विशेषरूपसे स्रान करे। तिल, चावल और जौ आदिसे अग्निमें हवन करे। फिर चावल, जौ और तिलोंके द्वारा क्रमशः देवताओं, सार्यकालमें सन्ध्योपासना करके भगवान् गरुडध्वजको ऋषियों और पितरोंका तर्पण करे। मौनभावसे स्रान प्रणाम करे और पूर्ववत् षडक्षर मन्त्रका जप करके करके धुले हुए वस्त्र पहन दृढ़तापूर्वक व्रतका पालन व्रत-पालनपूर्वक पृथ्वीपर शयन करे। इन सब करे। ब्राह्मणको पञ्चरत्न दान दे। लक्ष्मीसहित भगवान् विधियोंका पाँच दिनोंतक पालन करते रहना चाहिये। विष्णुका प्रतिदिन पूजन करे। इस पञ्चकवतके एकादशीको सनातन भगवान् हषीकेशका पूजन अनुष्ठानसे मनुष्य वर्षभरके सम्पूर्ण व्रतोंका फल प्राप्त कर करके थोड़ा-सा गोबर खाकर उपवास करे। फिर लेता है। जो मनुष्य निम्नाङ्कित मन्त्रोंसे भीष्मको जलदान द्वादशीको व्रती पुरुष भूमिपर बैठकर मन्त्रोचारणके साथ देता और अर्घ्यके द्वारा उनका पूजन (सत्कार) करता है, गोमूत्र पान करे। त्रयोदशीको दूध पीकर रहे। वह मोक्षका भागी होता है। मन्त्र इस प्रकार है- चतुर्दशीको दही भोजन करे। इस प्रकार शरीरकी
वैयाघ्रपद्यगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च। शुद्धिके लिये चार दिनोंका लङ्घन करके पांचवें दिन अनपत्याय भीष्माय उदकं भीष्पवर्मणे॥ नानके पश्चात् विधिपूर्वक भगवान् केशवकी पूजा करे वसूनामवताराय शन्तनोरात्पजाय च। और भक्तिके साथ ब्राह्मणोंको भोजन कराकर उन्हें अयं ददामि भीष्माय आजन्यब्रह्मचारिणे ॥ दक्षिणा दे। पापबुद्धिका परित्याग करके बुद्धिमान् पुरुष
(१२५ ॥ ४३-४४) ब्रह्मचर्यका पालन करे। शाकाहारसे अथवा मुनियोंके "जिनका गोत्र वैयाघ्रपद्य और प्रवर सांकृत्य है, उन अन्न (तिनीके चावल) से इस प्रकार निर्वाह करते हुए सन्तानरहित राजर्षि भीष्मके लिये यह जल समर्पित है। मनुष्य श्रीकृष्णके पूजनमें संलग्न रहे । उसके बाद रात्रिमें जो वसुओंके अवतार तथा राजा शन्तनुके पुत्र हैं, उन पहले पञ्चगव्य पान करके पीछे अन्न भोजन करे। इस आजन्म ब्रह्मचारी भीष्मको मैं अर्घ्य दे रहा हूँ।' प्रकार भलीभाँति व्रतकी पूर्ति करनेसे मनुष्य शास्त्रोक्त
तत्पश्चात् सब पापोंका हरण करनेवाले श्रीहरिका फलका भागी होता है। इस भीष्प-व्रतका अनुष्ठान पूजन करे। उसके बाद प्रयत्नपूर्वक भीष्मपञ्चक-व्रतका करनेसे मनुष्य परमपदको प्राप्त करता है। स्त्रियोंको भी पालन करना चहिये। भगवान्को भक्तिपूर्वक जलसे अपने स्वामीकी आज्ञा लेकर इस धर्मवर्धक व्रतका नान कराये। फिर मधु, दूध, घी, पञ्चगव्य, गन्ध और अनुष्ठान करना चाहिये। विधवाएँ भी मोक्ष-सुखकी चन्दनमिश्रित जलसे उनका अभिषेक करे। तदनन्तर वृद्धि, सम्पूर्ण कामनाओंकी पूर्ति तथा पुण्यको प्राप्तिके सुगन्धित चन्दन और केशरमें कपूर और खस मिलाकर लिये इस व्रतका पालन करें। भगवान् विष्णुके चिन्तनमें भगवान्के श्रीविग्रहपर उसका लेप करे । फिर गन्ध और लगे रहकर प्रतिदिन बलिवैश्वदेव भी करना चाहिये। यह धूपके साथ सुन्दर फूलोंसे श्रीहरिकी पूजा करे तथा आरोग्य और पुत्र प्रदान करनेवाला तथा महापातकोका उनकी प्रसन्नताके लिये भक्तिपूर्वक घी मिलाया हुआ नाश करनेवाला है। एकादशीसे लेकर पूर्णिमातकका जो गूगल जलाये। लगातार पाँच दिनोतक भगवान्के समीप व्रत है, वह इस पृथ्वीपर भीष्मपञ्चकके नामसे विख्यात दिन-रात दीपक जलाये रखे। देवाधिदेव श्रीविष्णुको है। भोजनपरायण पुरुषके लिये इस व्रतका निषेध है। नैवेद्यके रूपमें उत्तम अन्न निवेदन करे। इस प्रकार इस व्रतका पालन करनेपर भगवान् विष्णु शुभ फल भगवान्का स्मरण और उन्हें प्रणाम करके उनकी अर्चना प्रदान करते हैं।