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उत्तरखण्ड]
• भगवत्पूजन, दीपदानादि कत्य, गोवर्धन-पूजा,यमद्वितीयाके कृत्योंका वर्णन •
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नमः, सर्वभूतक्षयाय नमः, औदुम्बराय नमः, दनाय 'पृथ्वीको धारण करनेवाले गोवर्धन ! आप नमः, नीलाय नमः, परमेष्ठिने नमः, वृकोदराय नमः, गोकुलके रक्षक हैं। भगवान् श्रीकृष्णने आपको अपनी चित्राय नमः, चित्रगुप्ताय नमः।
भुजाओंपर उठाया था। आप मुझे कोटि-कोटि गौएँ देवताओंका पूजन करके दीपदान करना चाहिये। प्रदान करें। लोकपालोंको जो लक्ष्मी धेनुरूपमें स्थित हैं इसके बाद रात्रिके आरम्भमें भिन्न-भिन्न स्थानोंपर मनोहर और यज्ञके लिये घृत प्रदान करती है, वह मेरे पापको दीप देने चाहिये। ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदिके दूर करे । मेरे आगे गौएँ रहें, मेरे पीछे भी गौएँ रहें, मेरे मन्दिरोंमें, गुप्त गृहोंमें, देववृक्षोंके नीचे, सभाभवनमें, हृदयमें गौओंका निवास हो तथा मैं भी गौओंके बीचमें नदियोंके किनारे, चहारदीवारीपर, बगीचेमें, बावलीके निवास करूं।' तटपर, गली-कूचोंमें, गृहोद्यानमें तथा एकान्त कार्तिक शुक्लपक्षकी द्वितीयाको पूर्वाह्नमें यमकी अश्वशालाओं एवं गजशालाओंमें भी दीप जलाने पूजा करे । यमुनामें स्रान करके मनुष्य यमलोकको नहीं चाहिये । इस प्रकार रात व्यतीत होनेपर अमावास्याको देखता। कार्तिक शुक्ला द्वितीयाको पूर्वकालमें यमुनाने प्रातःकाल स्रान करे और भक्तिपूर्वक देवताओं तथा यमराजको अपने घरपर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। पितरोंका पूजन और उन्हें प्रणाम करके पार्वण श्राद्ध करे; उस दिन नारकी जीवोंको यातनासे छुटकारा मिला और फिर दही, दूध, घी आदि नाना प्रकारके भोज्य पदार्थों- उन्हें तृप्त किया गया। वे पाप-मुक्त होकर सब बन्धनोंसे द्वारा ब्राह्मणोंको भोजन कराकर उनसे क्षमा-प्रार्थना करे। छुटकारा पा गये और सब-के-सव यहाँ अपनी इच्छाके तदनन्तर भगवान्के जागनेसे पहले स्त्रियोंके द्वारा अनुसार संतोषपूर्वक रहे। उन सबने मिलकर एक महान् लक्ष्मीजीको जगाये। जो प्रबोधकाल (ब्राह्ममुहूर्त) में उत्सव मनाया, जो यमलोकके राज्यको सुख पहुँचानेलक्ष्मीजीको जगाकर उनका पूजन करता है, उसे धन- वाला था। इसीलिये यह तिथि तीनों लोकोमें सम्पत्तिकी कमी नहीं होती। तत्पश्चात् प्रातःकाल यमद्वितीयाके नामसे विख्यात हुई: अतः विद्वान् पुरुषोंको (कार्तिक शुक्ला प्रतिपदाको) गोवर्धनका पूजन करना उस दिन अपने घर भोजन नहीं करना चाहिये। वे चाहिये। उस समय गौओं तथा बैलोको आभूषणोंसे बहिनके घर जाकर उसीके हाथसे मिले हुए अन्नको, जो सजाना चाहिये। उस दिन उनसे सवारीका काम नहीं पुष्टिवर्धक है, स्नेहपूर्वक भोजन करें तथा जितनी बहिने लेना चाहिये तथा गायोंको दुहना भी नहीं चाहिये। हों, उन सबको पूजा और सत्कारके साथ विधिपूर्वक पूजनके पश्चात् गोवर्धनसे इस प्रकार प्रार्थना करे- सुवर्ण, आभूषण एवं वस्त्र दें। सगी बहिनके हाथका
गोवर्धन घराधार गोकुलत्राणकारक ॥ अन्न भोजन करना उत्तम माना गया है। उसके अभावमें विष्णुबाहुकृतोच्छाय गवां कोटिप्रदो भव। किसी भी बहिनके हाथका अन्न भोजन करना चाहिये। या लक्ष्मीलोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता ॥ वह बलको बढ़ानेवाला है। जो लोग उस दिन सुवासिनी घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु। बहिनोंको वस्त्र-दान आदिसे सन्तुष्ट करते हैं, उन्हें एक अप्रतः सन्तु मे गावो गावो मे सन्तु पृष्ठतः। सालतक कलह एवं शत्रुके भयका सामना नहीं करना गावो मे हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥ पड़ता। यह प्रसङ्ग धन, यश, आयु, धर्म, काम एवं
(१२४ । ३१-३३) अर्थकी सिद्धि करनेवाला है।